बतंगड़ बेतुक : बुआ-बबुआ चले देश चलाने

Last Updated 20 Jan 2019 06:10:29 AM IST

इधर से सर-सर साइकिल निकली उधर से दुम-दुम हाथी। न इसने कोई संग लिया, न उसने कोई साथी। दोनों के सवारों ने इक-दूजे को नापा-तोला, देखा-परखा और दोनों के चेहरे खिल गये।


बतंगड़ बेतुक : बुआ-बबुआ चले देश चलाने

दोनों अपनी-अपनी सवारियों से उतरे और गले मिल गये। साइकिल सवार का पुराना गोद लिया और अब गोद उतारा चचा बोला, ‘बुआ-बबुआ का गठबंधन हुआ’, उधर छिटक के दूर हुआ सगा चचा बोला,‘गठबंधन नहीं, ठगबंधन हुआ।’ किसी के पेट में मरोड़ उठी तो किसी के दिल में दर्द हुआ। किसी के मुंह से आह निकली तो किसी के मुंह से दुआ। किनारे खड़ा एक भला मानुष बोला-न होता तो क्या बुरा होता, अब हो गया तो अच्छा हुआ। उधर बुआ-बबुआ ने संयुक्त प्रेसनाद किया कि इधर जो देश चला रहे हैं, देश पर संकट ला रहे हैं। देश को बचाना था, इसलिए हमें साथ-साथ आना था। अब चुनाव तक साथ-साथ जाएंगे, सत्तासीनों को सत्ताविहीन करके देश बचाएंगे।
उधर यह देश, न इसके संकट समाप्त होते हैं न खतरे खत्म होते हैं। देश के ऊपर अदृश्य खतरा सबसे ज्यादा उसे दिखाई देता है, जो चुनाव हारकर चित हो जाता है या मन मसोसकर विपक्ष हो जाता है। देश का खतरा तब तक बढ़ता रहता है, जब तक कि अगले चुनाव नहीं आ जाते। चुनाव के ऐन पहले तो खतरा सारी हदें पार कर जाता है। जिसे देखो वह अपना झंडा-डंडा लेकर देश को खतरे से बचाने के लिए दौड़ रहा है। चुनाव बाद जैसे ही नयी सरकार आती है,अगले दिन से यह देश नये सिरे से नये खतरे में पड़ना शुरू हो जाता है। देश का दुर्भाग्य कि वह साल के बारह महीनों और महीनों के तीसों दिन खतरे में पड़ा रहता है। तरह-तरह के बचाने वाले आते रहते हैं और तरह-तरह से बचा-बचाकर जाते रहते हैं। मगर देश है कि कभी खतरे से बाहर ही नहीं निकल पाता। अब तो बेचारे को सतत खतरे में पड़े रहने की आदत सी हो गयी है।

तो अब तक असंभाव्य से दिख रहे से संभाव्य बने गठबंधन की घोषणा हुई और साथ ही देश को बचाने की। दोनों ओर के सिपहसालार जो अब तक ले तेरे की-दे तेरे की, का अनिवार्य रिश्ता बनाये हुए थे और एक-दूसरे को देखते ही आंखें तरेर लेते थे, बाजू चढ़ा लेते थे, जुबान की लगाम खोल देते थे, थोड़ी देर के लिए सकते में आये। फिर बुआ-बबुआ का गठबंधनीय आदेश सिर माथे रख गठबंधित होने के लिए निकल पड़े।
दोनों का आमना-सामना हुआ। एक ने बुआ का जयकारा मारा, दूसरे ने बबुआ का। दोनों के जेहन में एक-दूसरे की कटखनी यादें कुलबुलाईं मगर दोनों ने आगे बढ़कर एक-दूसरे की गर्दनें मालामय कर दीं। फिर गठबंधित नारा लगाया-‘बुआ-बबुआ जिंदाबाद! नवगठबंधन जिंदाबाद!’ दोनों गले मिल गये। मिलते-मिलते एक ने कहा-‘भाई, तूने मुझे बहुत गालियां दी हैं।’ दूसरा बोला-‘भाई, गालियां तो तूने भी मुझेे बहुत दी हैं। पर अब तो गठबंधन हो गया है। देश बचाना है। देश बचाने की खातिर गालियां भूल जाते हैं।’ दोनों फिर गले मिल गये। मिलते-मिलते एक फिर बोला-‘भाई, अपने टाइम में तूने माल बहुत बनाया है। अफसर-ठेकेदारों को खूब दुहा है।’ दूसरे ने जवाब दिया-‘देख भाई, अगर तू भ्रष्टाचार की बात कर रहा है तो तेरे टाइम में भी जमकर हुआ, माल तूने भी जमकर बनाया। कौन सी ऐसी जगह छोड़ी जहां से तूने नहीं कमाया। मगर ये पुरानी बातें हैं। इन पर धूल डालते हैं, देश बचाते हैं।’ दोनों फिर गले लग गये। एक फिर फुसफुसाया-‘यार, तूने जातिवाद बहुत फैलाया था। पूरी राजनीति जातिवाद के नाम पर की। तेरी जाति के लोगों ने हर थाने-तहसील पर कब्जा कर लिया था।’ दूसरे से कहा-‘भाई, राजनीति तो तूने भी जातिवाद के नाम पर की। याद कर, तेरी जाति के लोगों ने क्या गुंडागर्दी मचायी थी। पर अब तो गठबंधन की पुकार है। गुंडागर्दी, निकम्मेपन, घूसखोरी का आरोप मिलकर सत्तावालों पर लगाना है, देश बचाना है।’ दोनों एक बार फिर गले लग गये। एक ने फिर फुसफुसाहट की-‘भाई, सच्ची बात तो ये है कि तूने न तो किसानों की समस्या सुलझायी, न बेरोजगारों की, न व्यापारियों का कुछ भला किया, न गरीबों को कोई उम्मीद बंधाई।’ दूसरा बोला - ‘भाई, ये सब तो तेरे राज में भी हुआ। पर ये सब बातें गठबंधन के भीतर नहीं, गठबंधन के बाहर करनी हैं।’ इससे पहले कि वे फिर गले मिलते, एक फिर फुसफुसाया-‘यार, तूने हमारे मुसलमान वोट बहुत काटे थे, बड़ा नुकसान किया हमारा।’ दूसरा बोला ‘हमारे मुसलमान वोट काटकर तूने भी हमारा कम नुकसान नहीं किया। अब तेरे मुसलमान वोट मेरे हैं और मेरे मुसलमान वोट तेरे हैं। यह वोट कटवा शिकायत का वक्त नहीं है, देश बचाने का है।’
दोनों फिर गले लग गये। दोनों मिलकर नारा लगाते कि एक फिर बोला-‘भाई, देश कांग्रेस भी बचाना चाहती है, चचा ने नयी-नयी दुकान खोली है, वह भी देश बचाना चाहते हैं। और भी छुटभैया पार्टियां हैं जो ..।’ दूसरा फुरककर बोला-‘देख भइया, जिसे ज्यादा खुजली हो रही हो वह कहीं और जाकर मिटाये, देश कहीं और जाकर बचाये। यूपी में तो देश हम ही बचाएंगे, किसी और को नहीं बचाने देंगे।’ दोनों के चेहरे चमक उठे। दोनों ने गला मिलाकर नारा लगाया-‘बुआ-बबुआ जिंदाबाद! गठबंधन जिंदाबाद!’ फिर दोनों हाथ में हाथ डालकर देश बचाने निकल पड़े।

विभांशु दिव्याल


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