सरोकार : इंटरनेट को व्यसन बनाने के खतरे
स्कूली छात्रों में इंटरनेट की उपयोगिता और लोकप्रियता की सामाजिक-शैक्षिक चुनौतियां भी उभरकर आने लगी हैं।
सरोकार : इंटरनेट को व्यसन बनाने के खतरे |
छात्रों को इंटरनेट की उपयोगिता पता है, लेकिन उससे जुड़े खतरे और कानून की जानकारी के अभाव में अनजाने में ही छात्रों के गंभीर अपराध में शामिल हो जाने के भी खतरे हैं। छात्रों को यह पता होना चाहिए कि जो संदेश वह आगे प्रेषित कर रहे हैं, जो फोटो भेज रहे हैं, जो संदेश लिख रहे हैं उनके लिए वही जिम्मेदार हैं। सोशल मीडिया पर जो भी सामग्री प्रेषित की जाती है, डिलीट करने के बाद भी वह किसी न किसी रूप में सार्वजानिक रूप से उपलब्ध हो सकती है। जानकारी के अभाव में छात्र अपनी तस्वीरें और निजी जानकारी भी इंस्टाग्राम-फेसबुक पर सार्वजनिक करते रहते हैं और इन तस्वीरों को दूसरे द्वारा दुरुपयोग भी किया जा सकता है।
आज भी बहुत कम अभिभावकों को यह पता है कि मोबाइल और इंटरनेट का अतिशय प्रयोग एक चिंताजनक संकेत है। बच्चे का मोबाइल के साथ बिताया हुआ समय जैसे-जैसे बढ़ता जाएगा, बच्चों की नींद, एकाग्रता कम होती जाएगी। ऐसा कहा जा रहा है कि टच स्क्रीन वाले फोन को अगर बच्चे एक घंटा गेम के लिए इस्तेमाल करते हैं तो उनकी नींद 16 मिनट कम हो सकती है। 12 से 20 साल की उम्र के बीच के बच्चे और युवक ऑनलाइन व्यसन के ज्यादा शिकार हो रहे हैं।
शिकार छात्र धीरे-धीरे अपनी पढ़ाई से और सामाजिक हकीकतों से दूर होकर,आभासी दुनिया में चले जाते हैं। इंटरनेट की बढ़ती आदत, बच्चों को एकाकीपन की ओर ले जाती है और एक समय के बाद वे अवसाद से घिर जातें हैं। इंटरनेट के अधिक इस्तेमाल से बच्चों के व्यवहार में उग्रता, भाषा में आक्रामकता, घर के खाने में अरुचि, अनिद्रा जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। आज के समय में हम बच्चों को इंटरनेट और मोबाइल से अलग नहीं कर सकते हैं क्योंकि बहुत सी जानकारी, होमवर्क और एक दूसरे से संपर्क में रहने की जरूरत मोबाइल को अनिवार्य करती है। लेकिन अभिभावकों को उन्हें जागरूक करने की जरूरत है और समयबद्ध तरीके से इंटरनेट के इस्तेमाल को सुनिश्चित करना है।
बच्चों में इंटरनेट के दुरुपयोग के बढ़ते खतरे की गंभीरता को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के मानसिक रोग विभाग में अब इंटरनेट व्यसन के रोगियों के लिए एक चिकित्सा केंद्र खोला गया है। यह केंद्र शनिवार को मानसिक रोग विभाग में ऐसे मनोरोगियों को परामर्श के लिए बुलाता है, जिनको जो ऑनलाइन गेम के लिए घंटों-घंटों इंटरनेट का उपयोग करते हैं और इंटरनेट -मोबाइल-गेम के बिना बेचैन हो जाते हैं।
इंटरनेट और सोशल मीडिया से संबंधित कानून में सुधार और उनके बारे में व्यापक जागरूकता की जरूरत है। नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स और नेशनल कॉउन्सिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग जैसी संस्थाओं ने माता-पिता, स्कूल के कर्मचारियों और बच्चों की सुरक्षा और इंटरनेट के प्रति जागरूकता के लिए सामग्री तैयार की है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल करते समय छात्रों को पता होना चाहिए कि क्या करें और क्या न करें! आज इंटरनेट एक अनिवार्यता है लेकिन जागरूक छात्र ही, तकनीकी का बेहतर इस्तेमाल अपने हित में कर सकते हैं। हम जिस तकनीक का रोज इस्तेमाल कर रहे हैं, उसके संभावित खतरे से तो हमें सजग रहना ही होगा।
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