क्रिकेट : सीरीज जीत कर बढ़ाया मान

Last Updated 09 Jan 2019 05:39:08 AM IST

सिडनी क्रिकेट मैदान पर पिछले एक दशक में हुए मुकाबलों पर निगाह दौड़ाएं तो हमें स्टीव वॉ को विदाई देने वाला टेस्ट, हरभजन सिंह और सायमंड्स के बीच विवाद वाला मंकी गेट टेस्ट, 2012 में महेंद्र सिंह धोनी की अगुआई में सीरीज में क्लीन स्वीप, 2015 के विश्व कप सेमीफाइनल में भारत की हार याद आते हैं।


क्रिकेट : सीरीज जीत कर बढ़ाया मान

लेकिन विराट सेना ने इन सभी यादों को धुंधलके में पहुंचाकर भारत की ऑस्ट्रेलिया में पहली टेस्ट सीरीज जीत को भारतीयों के दिमाग पर चढ़ा दिया है। यह मैदान अब भारत को 71 सालों बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसके घर में पहली बार सीरीज जिताने के तौर पर याद रखा जाएगा। इंद्र देवता की मेहरबानी से इस मैदान पर खेला गया चौथा टेस्ट परिणाम नहीं दे सका अन्यथा भारत के सीरीज जीतने का अंतर 2-1 के बजाय 3-1 रहने वाला था।
पिछले 71 सालों में कई भारतीय कप्तानों ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया और हताशा के साथ उन्हें लौटते देखा गया। वजह उनका सीरीज जीतने में विफल होना था। कई कप्तान सीरीज जीतना तो दूर टेस्ट तक नहीं जीत सके। भारत ने 1947-48 में पहली बार लाला अमरनाथ की अगुआई में ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया। सभी टेस्ट में हार का सामना करना पड़ा। भारत ने ऑस्ट्रेलिया टेस्ट संबंध स्थापित होने के 30 साल बाद पहला टेस्ट जीता और इसके 41 साल बाद सीरीज जीतने को मिली है। भारतीय कप्तान विराट कोहली खुद भी दो सीरीज हारने वाली टीमों के हिस्सा रहे हैं। खास बात यह है कि चार साल पहले विराट ने इस सिडनी क्रिकेट मैदान पर ही पहली बार कप्तानी संभाली थी, और अब इस मैदान पर ही भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहली बार सीरीज जिताने वाले कप्तान बन गए हैं। 

विराट की बात करें तो उनमें हर सीरीज के बाद परिपक्वता आती जा रही है। आपको याद होगा कि पिछले साल की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका दौरे पर केपटाउन में पहले टेस्ट में अजिंक्य रहाणो की जगह रोहित शर्मा को खिलाने और उनके असफल रहने पर भी सेंचुरियन में दूसरे टेस्ट में भी रहाणो की अनदेखी करने पर जब पत्रकारों ने उनसे इस पर सवाल किया तो उन्होंने चयन का बचाव करते हुए पत्रकारों से अपनी टीम चुन लेने की बात कह दी थी। लेकिन सिडनी टेस्ट आने तक विराट में साफ बदलाव दिख रहा है। सही है कि वह मनमाने फैसले करते हैं। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया दौरे के पर्थ टेस्ट में चार पेस गेंदबाजों को उतार दिया और एक भी स्पिनर को एकादश में जगह नहीं दी। सीरीज में ऑस्ट्रेलिया ने सिर्फ इसी टेस्ट को जीता। इस जीत में उनके स्पिनर नाथन लायन ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने 108 रन देकर आठ विकेट निकाले। विराट को अपनी गलती का अहसास होने पर भी इसे नहीं माना। लेकिन सेंचुरियन टेस्ट की तरह अपने फैसले का बचाव नहीं किया। विराट के टीम इंडिया को सीरीज जिताकर इतिहास रचने से पहले भारत ने 11 ऑस्ट्रेलियाई दौरों पर सिर्फ तीन बार सीरीज ड्रा कराई थी। देखने को मिला है कि जब भी टीम का तीसरे नंबर का बल्लेबाज अच्छा खेलता है, तब ही उसका प्रदर्शन भी अच्छा रहता है। 2003-04 में भारत ने चार टेस्ट की सीरीज 1-1 से ड्रा खेली थी, उस समय राहुल द्रविड़ ने 619 रन बनाए थे। इस बार चेतेर पुजारा ने बल्लेबाजी की धाक जमाई और तीन शतकों से 521 रन बनाए। और टीम इंडिया पहली बार सीरीज जीतने में सफल हो गया है।
पिछले 71 सालों से बिना सीरीज जीते लौटने वाली टीमों और मौजूदा टीम में प्रमुख अंतर गेंदबाजों का है। पहली टीमों में लगातार 20 विकेट निकालने की क्षमता नहीं थी, मौजूदा टीम में है। बुमराह, शमी, ईशांत, अिन, जड़ेजा और कुलदीप के अटैक में यह क्षमता है। बुमराह की अगुआई वाले भारतीय अटैक ने तीन टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के 20-20 विकेट निकाले। भारतीय अटैक चौथी बार भी ऐसा करने की स्थिति में था। दो दिन बारिश से खेल बर्बाद नहीं हुआ होता तो चौथी बार भी 20 विकेट हो जाते। विराट के बारे में माना जाता है कि मनमर्जी से फैसले लेते हैं और वह सही साबित नहीं हों, इसकी भी उन्हें परवाह नहीं रहती। इस साल के मध्य में टीम इंडिया जब इंग्लैंड से टेस्ट सीरीज हारी तब पूर्व कप्तान माइक ब्रियरली ने कहा कि विराट का जरूरत से ज्यादा दबदबा बन जाने की वजह से टीम में एकजुटता नजर नहीं आ रही है। विराट का व्यक्तित्व ज्यादा बड़ा हो जाने से टीम का कोई अन्य खिलाड़ी उनकी बात को काटता नहीं है, भले ही वह गलत हों। कहते हैं कि 2017 में अनिल कुंबले के कोच पद से इस्तीफा देने पर यह स्थिति बनी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में टीम के प्रदर्शन से भारतीय टीम का भविष्य उज्जवल नजर आता है। हां, इतना जरूर है कि इस दौरे की यंग ब्रिगेड ऋषभ पंत, मयंक अग्रवाल, कुलदीप यादव पर भरोसा बनाए रखना होगा। मयंक के साथ दूसरे ओपनर के तौर पर पृथ्वी शॉ को आजमाने की जरूरत है।

मनोज चतुर्वेदी


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