गजब की स्वतंत्रता की अजब अभिव्यक्ति

Last Updated 06 Jan 2019 06:59:58 AM IST

गजब की स्वतंत्रता और स्वायत्तता है अपने देश में, यह सोचने का अलग विषय है कि प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक समुदाय, प्रत्येक जन को है कि कुछ खास व्यक्तित्व को इसके लिए छोड़ दिया गया है, अब तो ऐसी भाषा का उपयोग किया जा रहा है जो हम यहां नहीं लिख सकते।


गजब की स्वतंत्रता की अजब अभिव्यक्ति

कोई बंदेमातरम को पाबंद करता है, तो कोई नियम बनाता है कि तुम्हें गाना ही पड़ेगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश आता है सिनेमा हॉल में राष्ट्र गान गाया जाएगा, फिर आदेश आता है कि नहीं गाया जाएगा। कोई देश ही छोड़ना चाहता है। किसी को देश रास नहीं आ रहा है। अजब विडंबना है, और तो और कुछ को तो देश में ही खतरा लग रहा है। ऐसे बयान आते रहे हैं, किसी अनजान को मार दिया जा रहा है, किसी अनजान का इनकाउंटर कर दिया जा रहा है, कोई अपराधी जेल से ही अपना राजकाज चला रहा है, भला ऐसी स्वतंत्रता कहां मिलेगी। कहीं गो हत्या प्रतिबंधित कर दी जाती है, कहीं गो मांस की सप्लाई के बाकायदे सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं, ऐसी स्वतंत्रता मिलेगी किसी देश में?
और आजकल सोशल मीडिया से बढ़कर तो संसद और चैनलों पर डिबेट देखने लायक होती है, कितनी असंसदीय भाषा का उपयोग होता है, है कहीं ऐसी स्वतंत्रता? लोक सभा अध्यक्ष पर कागज फेंके जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधान सभा में मायावती के ऊपर कुर्सियां फेंकी गई, तोड़-फोड़ हुई, गाली-गलौच हुई, पूरा देश शर्म से झुका था उस समय। लेकिन फिर वहीं चीजें दोहरायी जाएं, वही नजीर बने, हम ये क्या कर रहे हैं। अब तो चैनल के स्टूडियो में ही धक्का-मुक्की हो रही है। प्रवक्ता स्टूडियो छोड़ कर भाग जा रहे हैं। बहुत सारे प्रवक्ता स्टूडियो में आ ही नहीं रहे हैं। गजब की स्वतंत्रता और गजब की अभिव्यक्ति है।

भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने की स्वतंत्रता प्राप्त है। लेकिन साथ ही यह भी उल्लेखित है कि नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की यह स्वतंत्रता असीमित रूप से प्राप्त नहीं है। स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत ही विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आज शास्त्ररहित शांतिपूर्ण सम्मेलन की स्वतंत्रता, समुदाय और संघ निर्माण की स्वतंत्रता, भ्रमण की स्वतंत्रता, निवास की स्वतंत्रता, व्यवसाय की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। साथ में यह भी निर्दिष्ट है कि राज्य द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में इसे सीमित किया जा सकता है। परंतु आज यह सब एक अलग लीक पर चल रहा है, जब संविधान में ‘राज्य’ को ऊपर रख कर सारे नियम कानून बनाए गए हैं, तो आज स्तर क्यों गिर रहा है। आज आप किसी भी बहस के मुद्दे उठाकर देख लीजिए जिसमें मुद्दे से अधिक व्यक्तिगत छवि एवं स्व-व्यक्तित्व को लेकर बहस हो रही है। ‘राज्य’ की सुरक्षा, सम्मान, अस्तित्व किसी को याद नहीं रह रहा है। आज का युवा डिबेट/बहस या संसद, विधानसभा की कार्यवाही देख रहा है, तो वो सीख किस दिशा में जा रही है, यह सोचने का विषय है।
हमारी स्वतंत्रता, हमारी अभिव्यक्ति की आजादी हमारे राज्य से ऊपर नहीं है। इस पर सामूहिक पहल करनी होगी, पक्ष-विपक्ष दोनों को इस पर चिंतन करना होगा कि हमें देश देख रहा है, सुन रहा है। हमें क्या बोलना चाहिए, क्या नहीं बोलना चाहिए, इस पर चिंतन करना होगा। आने वाले भविष्य को बतलाना ही होगा कि स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को धनात्मक रूप से हम ‘देश’ के लिए किस तरह संयोजित करें, संरक्षित करें। लेकिन आजकल जो घटित हो रहा है, उस पर चिंतन आवश्यक है।

राजेश मणि


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