मुद्दा : भारत से ज्यादा सहिष्णु नहीं कोई
उत्तर प्रदेश के नोएडा में पुलिस ने पार्कों में मुसलमानों को बिना अनमुति नमाज अदा करने पर रोक क्या लगाई कि हंगामा खड़ा होने लगा।
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इसे अल्पसंख्यकों की धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात कहने वाले हाय-तौबा करने लगे। पर यह क्यों नजरअंदाज कर दिया गया कि धार्मिक अनुष्ठान करने के अधिकार के साथ कुछ दायित्व भी तो जुड़े हैं? यह विवाद गरमाया तो एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ‘यूपी पुलिस कांवड़ियों पर फूल बरसाती है। लेकिन सप्ताह में एक बार नमाज पढ़ने का मतलब शांति और सद्भाव को बाधित करना हो जाता है।’
यूपी पुलिस के एक्शन की प्रशंसा के बजाय निंदा चालू हो गई। क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करवाना गलत हो गया? सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में एक आदेश में साफ कहा है कि सार्वजिनक स्थलों पर धार्मिक-सामाजिक आयोजनों के लिए पुलिस-प्रशासन की अनुमति लेना अनिवार्य है। सवाल है कि क्या पाकरे में नमाज या रामलीला की इजाजत दी जानी चाहिए? ताजा विवाद का एक और शर्मनाक पहलू देखिए। नोएडा के सेक्टर 58 में सार्वजनिक स्थल पर नमाज पर रोक लगाए जाने पर जमकर हंगामा किया गया पर ग्रेटर नोएडा में भागवत कथा के आयोजन पर रोक लगा दी गई तो किसी ने नोटिस तक भी नहीं लिया। क्यों? ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सेक्टर 37 में चल रहे भागवत कथा के पंडाल को ढहा दिया। प्राधिकरण का कहना था कि आयोजन अनुमति बिना चल रहा था। क्यों अब क्या हिंदू भावनाओं को आहत करके धर्मनिरपेक्षता खतरे में नहीं पड़ी? दरअसल, देखने में आ रहा है कि कुछ निहित स्वाथरे से लबरेज तत्व असहिष्णुता के सवाल पर कोहराम मचाए हुए हैं। सोशल मीडिया पर भी हंगामा मचाए रखते हैं। इन्हें नसीरु द्दीन शाह जैसों का साथ भी मिल जाता है, जो बेशर्मी से यह तक कह देते हैं कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है।
अब इन्हें कौन समझाए भला कि पुरातन भारतीय सभ्यता की आत्मा में ही सहिष्णुता बसी है। हिंदू संस्कृति की छांव में बौद्ध, जैन, सिख, पारसी, यहूदी, ईसाइयत के साथ-साथ अरब से आया इस्लाम भी फलता-फूलता रहा। भारत धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि बहुसंख्यक हिंदू मूलत: धर्मनिरपेक्ष है। भारत को असहिष्णु कहने वाले जरा इतिहास के पन्ने खंगाल लें। आंखें खुल जाएंगी। देश ने बाहर से आने वाले धर्मावलंबियों का दिल खोलकर स्वागत ही किया। क्या किसी भी इस्लामिक देश में या ईसाई मुल्क में भी किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को इतनी मनमानी की छूट मिली है? भारत के मालाबार समुद्र तट पर 542 ईसा पूर्व यहूदी पहुंचे थे। आज वे भारत में अमन-चैन से गुजर-बसर कर रहे हैं। ईसाइयों का भारत में आगमन चालू हुआ 52 ईसवीं में। फिर पारसी भी जहाज में लदकर आए। वे कट्टरपंथी मुसलमानों से जान बचाकर ईरान से भागकर साल 720 में गुजरात के नवासरी समुद्र तट पर आए। इस्लाम भी केरल के रास्ते भारत आया। लेकिन इस्लाम के मानने वाले बाद के दौर में शरण लेने के इरादे से नहीं आए थे। उनका लक्ष्य भारत को लूटना और राज करना था। वे क्रूर आक्रमणकारी थे।
भारत में सबसे अंत में आने वाले विदेशी हमलावर अंग्रेज थे। उन्होंने 1757 में पलासी के युद्ध में विजय पाई। लेकिन चतुर-चालाक गोरे पहले के आक्रमणकारियों की तुलना में कुछ समझदार थे। समझ गए थे कि भारत में सीधे तौर पर धर्मातरण करवाने से ब्रिटिश हुकूमत का विस्तार संभव नहीं होगा। भारत से कच्चा माल ले जाकर ही वे अपने देश में औद्योगिक क्रांति की नींव रख सकेंगे। इसलिए ब्रिटेन, जो एक प्रोटेस्टेंट देश है, ने भारत में अपनी हुकूमत के प्रारंभिक सालों के शासनकाल में धर्मातरण शायद ही कभी किया हो। बात मुगलों की करें तो उन्होंने चार तरह से धर्मातरण करवाया। पहला, वंचितों को धन इत्यादि का लालच देकर। दूसरा, मुगल कोर्ट में अहम पद देने का वादा करके। तीसरा, इस्लाम स्वीकार करने के बाद जजिया टैक्स से मुक्ति। और उपरोक्त कुछ भी न मानने पर क्रूरतापूर्वक कत्लेआम करके। क्या कोई इन तथ्यों को चुनौती दे सकता है? कदापि नहीं।
तथ्य तो यह है कि भारत के कण-कण में सभी धर्मो, उनके महापुरुषों, का आदर-सम्मान का भाव है। जरा पड़ोस को भी एक नजर देख लीजिए। पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की दर्दनाक स्थिति देख लीजिए तो समझ आ जाएगा कि यहां अल्पसंख्यक तो जन्नत में रहते हैं। हां, कोई देश में और असंतोष भड़काने पर आमादा है, तो सख्ती करनी होगी क्योंकि कोई भी नागरिक देश से बड़ा नहीं हो सकता। भारत के सामने विश्व भर के सभी देश बौने ही नजर आएंगे ‘सहिष्णुता’ के मामले में।
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