जम्मू-कश्मीर : आने वाले दिनों में बढ़ेगा संघर्ष
सांप को कितना भी दूध पिलाओ, डसना नहीं छोड़ेगा। इस कहावत का अभिप्राय कश्मीर के अलगाववादी संगठन हुर्रियत के नेताओं को अब अच्छे से समझ में आ रहा होगा।
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बात 28 दिसम्बर, 2018 की है जब श्रीनगर की जामिया मस्जिद के भीतर आइएस के झंडे फहराए गए। यूं तो घाटी की सड़कों पर कुछ युवक आइएस के झंडे दिखाते रहे हैं, लेकिन पहली बार हुआ कि आइएस के झंडे घाटी की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित मस्जिद के भीतर दिखाए गए।
आइएस समर्थक युवकों ने 1394 में बनी जामिया मस्जिद की उस गद्दी पर चढ़ कर झंडा फहराया, जहां पर बैठ कर मीरवाइज धर्मोपदेश देते हैं। खास बात यह है कि जामिया मस्जिद के मीरवाइज अलगाववादी समूह ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मौलवी उमर फारूक हैं। यह उनकी पुश्तैनी गद्दी है। शुक्रवार 28 दिसम्बर को मौलवी उमर फारूक के जाने के तुरंत बाद आइएस से प्रेरित युवाओं ने हॉल में प्रवेश करके आइएस के झंडे लहराने शुरू कर दिए। उनमें से एक गद्दी पर बैठ गया।
नकाबपोश युवा नारे लगाने लगे। आम तौर पर घाटी में नारेबाजी या तो आजादी के लिए होती है, या पाकिस्तान के समर्थन में। लेकिन आइएस प्रेरित युवक सिर्फ इस्लाम और आइएस के लिए नारेबाजी कर रहे थे। मौलवी उमर इस घटना से सकते में आ गए होंगे क्योंकि नाग अब उस हाथ को काट रहा है, जो उन्हें खिला-पिला रहा है। हालांकि हुर्रियत भारतीय खुफिया एजेंसियों पर घाटी में आइएस का जिन्न पैदा करने का आरोप लगाता है। तथ्य यह है कि अक्सर घाटी में शुक्रवार की नमाज के बाद आइएस के झंडे लहराए जाते हैं। श्रीनगर के जिस क्षेत्र में जामिया मस्जिद है, वह उमर फारूक का पारंपरिक इलाका रहा है, लेकिन अब यहां आईएस और जाकिर मूसा समूहों को उभरते देखा जा रहा है।
मीरवाइज उमर फारूक और हुर्रियत के बाकी नेता आइएस की विचारधारा की निंदा करते हैं। उन्होंने आइएस की गतिविधियों को ‘आतंकवाद’ करार दिया है। लेकिन सच्चाई यह है कि हुर्रियत घाटी में अलगाववाद के लिए हो रही आतंकवादी हिंसा का समर्थन करता आया है। हुर्रियत नेता पाकिस्तान से मदद पाते हैं। उन पर घाटी में आतंकी नेटवर्क बनाने और चलाने के आरोप हैं। एनआईए की जांच में हुर्रियत के कई नेता गिरफ्तार किए जा चुके हैं। हुर्रियत को आंतकवादी संगठनों का राजनीतिक चेहरा माना जाता है। हुर्रियत के नेता पाकिस्तान में रह रहे आतंकवादी हाफिज सईद के संपर्क में रहते हैं। आतंकवादी हिंसा ने घाटी में रह रहे अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया। सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी कराने का आरोप भी हुर्रियत पर लगता है। हुर्रियत ने घाटी में ऐसा माहौल बनाया है, जो आइएस या अल कायदा के लिए लुभावना हो गया है। मौलवी उमर फारूक इसी हुर्रियत की कोर टीम का हिस्सा हैं। सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि भारत में आइएस की मौजूदगी नहीं है। लेकिन बात यह भी है कि आइएस से प्रेरित युवा अक्सर घाटी में झंडे लहराते और नारे दिखाई देते हैं। नवम्बर, 2018 में आइएस की विचारधारा से प्रभावित संगठन, इस्लामिक स्टेट जम्मू-कश्मीर (आईएनएसजे) से जुड़े तीन आतंकवादी दिल्ली में गिरफ्तार किए गए।
घाटी में युवाओं का रेडिक्लाइजेशन तेजी से बढ़ रहा है, और इसकी जिम्मेदार हुर्रियत है। पिछले तीन दशक से घाटी में चल रहे आंतकवाद की निंदा हुर्रियत ने कभी नहीं की। लेकिन आज यही युवा उनकी कट्टरता का दूसरा चेहरा दिखाने लगा है। आइएस की विचारधारा से प्रेरित कुछ कश्मीरी युवक घाटी में इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं। इस विचारधारा को अब लोगों में फैलाने के लिए जामिया मस्जिद जैसी प्रसिद्ध मस्जिद का इस्तमाल कर रहे हैं। घाटी में अब तक प्रमुख आतंकी समूहों में लश्कर, जेईम, हिजबुल मुजाहिद्दीन आदि हैं, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन प्राप्त है। ये समूह आइएस के विरोधी हैं क्योंकि आइएस उन्हें गैर-इस्लामी मानता है। आइएस हुर्रियत के नेताओं का भी विरोध करता आया है। घाटी में अब आइएस बनाम अन्य आतंकी समूहों की लड़ाई हो रही है। जामिया मस्जिद में जो कुछ देखा गया, उसे इस वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। यह वही जामिया मस्जिद है, जहां जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारी अयूब पंडित की 22 जुलाई, 2017 को बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। हत्या के समय मौलवी उमर इसी गद्दी पर बैठकर उपदेश दे रहे थे, जिस पर आइएस का झंडा फहराने की कोशिश की गई। इन घटनाओं को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दिन घाटी में और संघर्ष दिखेगा।
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