दृष्टिकोण : यह राजधर्म निभाने का समय है

Last Updated 09 Dec 2018 01:46:28 AM IST

नाम बुलंदशहर मगर उलझन ऐसी कि कुछ भी बुलंद नहीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस जिले के मुख्यालय से करीब चालीस किमी. दूर स्याना थाने में भीड़ की हिंसा, आगजनी और पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक अमित नाम के शख्स की मौत को सारी दुनिया देख चुकी है।


दृष्टिकोण : यह राजधर्म निभाने का समय है

तमाम वीडियो भी समय-समय पर सामने आ चुके हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार अभी तक शायद तय नहीं कर पा रही है कि उसे करना क्या है? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कभी उसे साजिश करार देते हैं, तो कभी उन्हें वह एक दुर्घटना लगने लगती है। वारदात की तहकीकात के लिए बनाई गई एसआइटी के अगुआ डीआइजी कहते हैं कि पहले कथित तौर पर गाय के कंकाल मिलने की जांच की जाएगी। उनके लिए वारदात में दो लोगों की मौत मानो गौण घटना है। जनाक्रोश और चारों तरफ मचे हंगामे के बाद शायद पुलिस कुछ हरकत में आई और अब एक फौजी की तलाश रही है जबकि मुख्य आरोपितों के पक्ष में सोशल मीडिया पर अभियान चल पड़ा है। सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार क्या संदेश देने की कोशिश कर रही है? क्या इससे हुड़दंगियों को शह नहीं मिलेगी? पुलिस का मनोबल नहीं गिरेगा?
यह सवाल इसलिए भी अहम है कि देश के दूसरे खासकर अशांत इलाकों में पुलिसिया कार्रवाइयों में कथित अनियमितताओं की आलोचना की जाती है, तो फौरन ये चर्चाएं गरम हो जाती हैं कि इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा। यहां तक कह दिया जाता है कि ये आलोचनाएं देश के हित में नहीं हैं, और ऐसा करने वाले राष्ट्रद्रोही या अर्बन नक्सल हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का यह भी दावा है कि उनके राज में कोई मॉब लिंचिंग या भीड़ की हिंसा नहीं हुई। लेकिन तथ्य तो कुछ और ही गवाही देते हैं। राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद पुलिस वालों के खिलाफ हुड़दंगई की ही जरा इन वारदात पर गौर कीजिए।

15 मार्च, 2017 को मेरठ में दुल्हैंडी पर हुड़दंग मचा रहे दो लोगों को सिविल लाइंस पुलिस पकड़कर लाई। उन्हें हवालात में बंद कर दिया। भाजपाई थाने में पुलिस को धमका कर आरोपितों को हवालात से छुड़ा ले गए। एक मई, 2017 को गोरखपुर जिले के चिलुआताल थाना क्षेत्र में भाजपा के सदर विधायक डॉ. राधामोहन दास अग्रवाल की फटकार पर सीओ चारू के आंसू निकल आए थे। 24 जून, 2017 को बुलंदशहर जिले की सीओ (स्याना) श्रेष्ठा ठाकुर के एक जिला पंचायत सदस्या के पति के वाहन का चालान काटने पर भाजपा नेताओं ने सीओ ऑफिस पर जमकर हंगामा किया था। पुलिस जब आरोपित को कोर्ट लेकर पहुंची तो उस पर धावा बोल कर आरोपित को छुड़ा लिया गया था। तीखी नोकझोंक के बाद करीब आधा घंटे बाद प्रमोद लोधी को पुलिस को सौंपा गया। 13 दिसम्बर, 2017 को बाराबंकी की सांसद प्रियंका सिंह रावत ने ट्रेनी आईएएस अजय द्विवेदी से कहा कि जीना मुश्किल कर दूंगी। अवैध कब्जा हटाने के अभियान के दौरान सांसद प्रियंका सिंह रावत ने अभियान रोक दिया था। कहने की जरूरत नहीं है कि अवैध कब्जे का आरोप भाजपा के एक स्थानीय नेता पर ही लगा था। बाइस अगस्त, 2018 लखनऊ में हजरतगंज चौराहे पर कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू का पुतला फूंकने को लेकर भाजयुमो कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच खासी झड़प हो गई थी, जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। मामले में लखनऊ एसएसपी ने इंस्पेक्टर हजरतगंज को लाइन हाजिर कर दिया। बीस अक्टूबर, 2018 को मेरठ में भाजपा के एक पाषर्द ने एक दरोगा को अपने रेस्तरां में पीट दिया था। भाजपा नेताओं के भारी दबाव के बावजूद पुलिस ने पाषर्द के खिलाफ मुकदमा कर जेल भेज दिया, लेकिन जेल से रिहाई के दौरान समर्थकों ने चलती कार से फायरिंग कर सनसनी फैला दी थी।
अगर याद किया जाए तो भाजपा नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषंगिक संगठनों की हुड़दंगई की और भी मिसालें याद आ जाएंगी। गाय को लेकर दलित उत्पीड़न की घटनाएं भी कम नहीं हुई हैं। फिर सहारनपुर में जाति झड़प भी याद की जा सकती है, जिसमें भीम आर्मी के सुपीमो चंद्रशेखर आजाद रावण को लंबे समय तक रासुका में बंद रखा गया। ऐसा नहीं है कि राज्य में इसके पहले की सरकारों के दौरान अपराध या सत्ताधारी पार्टी की हुड़दंगई की वारदात नहीं हुई हैं।  लेकिन भाजपा या एनडीए सरकार का चुनावों में एक बड़ा वादा राज्य को अपराध मुक्त करना भी था। राज्य को अपराध मुक्त करने के लिए योगी सरकार ने बड़े पैमाने पर एनकाउंटरों का आदेश दिया। एनकाउंटरों की छड़ी भी लग गई। जिनकी पुष्टि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट देख लेने भर से हो जाती है। रिपोर्ट को देखने लेने भर से योगी सरकार की एनकाउंटर नीति की कई नहीं, बल्कि ढेरों शिकायतें मिल जाएंगी। विपक्षी पार्टयिां समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पाटी (बसपा) की ओर से ये आरोप भी उछले कि सरकार उनके लोगों को निशाना बना रही है। और जब-जब एनकाउंटर नीति की आलोचनाएं हुई तो सरकार की ओर से कहा गया कि अपराधी तत्वों का बचाव और पुलिस का मनोबल गिराने की कोशिश हो रही है।
इसलिए क्या बुलंदशहर मामले में भी पुलिस का मनोबल बढ़ाने या कम से कम न्याय के खातिर ही अपराधियों को फौरन गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए था? लेकिन इसके बदले हुआ यह कि राज्य सरकार की ओर से जारी पहली प्रेस विज्ञप्ति में पुलिस वाले के मारे जाने का जिक्र तक नहीं था। यही नहीं, उसमें साजिश का सूत्र सीधे सरकार के शीर्ष से तलाशा जा रहा था। साजिश का सूत्र जब प्रबल नहीं हुआ तो दुर्घटना बताया जाने लगा। अब घटना के लिए पुलिस की लापरवाही को दोषी बताकर जिले के एसएसपी, इलाके के सीओ और थानाध्यक्ष को बदल दिया गया है। दरअसल, साजिश के सूत्र की तलाश में यह फैलाने की कोशिश हुई कि घटनास्थल स्याना से करीब चालीस किमी दूर बुलंदशहर में तबलीगी समाज की बैठक चल रही थी, जिसमें घटना का कोई सूत्र हो सकता है। ये अटकलें भी उछाली गई कि वहां लाखों लोगों की भीड़ जुटी थी। लगता है कि ये अटकलें इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश का हिस्सा थीं। इसी से कुछ हलकों से उठ रही इस शंका पर भी नजर जाती है कि इसका मकसद राजस्थान विधानसभा चुनावों को प्रभावित करना था।
ये शंकाएं उसी तरह बेमानी हो सकती हैं, जैसे दूसरी ओर से उठ रही अटकलें हैं, या थीं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सरकार की इस पर प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए? क्या किसी ऐसी घटना को दुर्घटना बताई जा सकती है, जिसमें भीड़ थाने पर हमला करती, पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले करती दिखती हो और जिसमें दो लोगों की मौत हो गई हो? क्या संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति को ऐसा बयान देना चाहिए जिससे हुड़दंगियों को शह मिले। यहां आप याद करेंगे तो विपक्ष में रहते भाजपा नेताओं के पूर्व सरकारों या सत्ताधारी पार्टयिों के नेताओं के ऐसे बयानों की घोर आलोचनाएं याद आ जाएंगी। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार में कई वारदात पर भाजपा नेता तृणमूल कार्यकर्ताओं की हुड़दंगई का मामला जोर-शोर से उठाते रहे हैं।
ये सब बातें याद दिलाने का यहां मकसद यही है कि कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करना है तो एकपक्षीय बातों से परहेज करना ही होगा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की वह हिदायत याद रखनी होगी कि राजधर्म अपनाया जाना चाहिए। गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने यह बात 2002 में गुजरात दंगों के संदर्भ में कही थी। अगर राजधर्म नहीं पालन किया गया तो उसके भीषण नतीजे क्या होते हैं यह देश 2002 में गुजरात में ही नहीं, दिल्ली में 1984 में सिख विरोधी दंगों में भी देख चुका है। इसलिए अब राजधर्म पालन करने की सीख उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को भी दी जानी चाहिए।

हरिमोहन मिश्र


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