मुद्दा : डराते हैं प्रदूषण के आकंड़े

Last Updated 10 Dec 2018 06:07:40 AM IST

प्रदूषण पर आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रही हैं।


मुद्दा : डराते हैं प्रदूषण के आकंड़े

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में जितने लोगों की मौत वायु प्रदूषण से होती है, उनमें भारत पहले और चीन दूसरे नंबर पर है। स्वास्थ्य जर्नल लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। ताजा अध्ययन के मुताबिक देशभर में पिछले साल वायु प्रदूषण के चलते 12.4 लाख लोगों की मौत हो गई जो कि 70 वर्ष से कम उम्र के थे। आंकड़ों की मानें तो देश में तंबाकू इस्तेमाल से अधिक बीमारियां खराब हवा के कारण हुई हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल देश की 77 प्रतिशत जनसंख्या पर दूषित हवा का साया रहा। वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसत आयु करीब 1.7 वर्ष घट गई है। एक आकलन के मुताबिक हर दिन हर व्यक्ति 40 सिगरेट पीने जितना धुआं अपने फेफड़े में भर रहा है। भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां पीएम 2.5 का लेवल हर वर्ष विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा होता है। वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में भारत के बाद चीन का स्थान है। साफ है, आज के समय दुनिया में सबसे ज्यादा बीमारियां पर्यावरण प्रदूषण की वजह से हो रही है। मलेरिया, एड्स और तपेदिक से हर साल जितने लोग मरते हैं, उससे ज्यादा लोग प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण सांस लेने वाली हवा और जल स्रोतों के साथ जमीन की मिट्टी तक प्रदूषित हो जाती है, जिससे मानव शरीर में कई तरह के संक्रमणों का खतरा पैदा हो जाता है। बहरहाल, इस रिपोर्ट के बाद सवाल यही उठता है कि वायु प्रदूषण से हर साल होने वाले मौत को रोकने के लिए सरकार की तरफ से क्या कदम उठाए जा रहे हैं? दशकों से यह बात सरकार और समाज सबको मालूम है लेकिन इसको लेकर दोनों उदासीन बने हुए हैं। न तो सरकार इस समस्या को लेकर गंभीर दिखती है और न ही समाज। ऐसा नहीं है कि इस मामले में अदालत गंभीर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कई बार फटकार लगा चुकी है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) पर वायु प्रदूषण रोकने में नाकाम रहने पर दिल्ली सरकार पर 25 करोड़ का जुर्माना लगाया है। हालांकि, एनजीटी भी समय-समय पर वायु प्रदूषण की हालत को लेकर चिंता प्रकट करता रहता है। फिर भी हम प्रदूषण से निपटने में असफल रहे। बहरहाल, ऐसा लगता है कि इसके बावजूद लोग अपने त्रासदीपूर्ण भविष्य को लेकर पूरी से तरह से बेखबर हैं। या तो लोग प्रदूषण के सामाजिक-आर्थिक खतरों से वाकिफ नहीं हैं या उन्होंने सांस लेने के जहरीले माहौल को अपनी किस्मत मानते हुए इस समस्या को लेकर हथियार डाल दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हमारी सरकार कर क्या रही है? पानी प्रदूषित, नदियां प्रदूषित, मिट्टी प्रदूषित और हवा प्रदूषित। लगता है सरकार का पूरा जोर केवल चुनाव लड़ने से सरकार बनाने तक का ही है। ऐसे में देश में बढ़ते प्रदूषण का मिजाज इसी तरह से बना रहा तो आने वाले दिनों में मानव सभ्यता का ही नाश हो जाएगा। गौर करने वाली बात यह है कि आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा नुकसान भारत का ही होने वाला है, लिहाजा भारत को अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझते हुए तत्काल कुछ सार्थक व ठोस उपाय करना होंगे। वास्तव में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी जटिल होती जा रही है कि भविष्य अंधकारमय होता प्रतीत हो रहा है। वस्तुत: आज मनुष्य भोगवादी जीवन शैली का इतना आदी और स्वार्थी हो गया है कि अपने जीवन के मूल आधार समस्त वायु को दूषित कर रहा है। भौतिकतावादी जीवन शैली और विकास की अंधी दौड़ में आज मनुष्य यह भी भूल गया है कि वायु प्रदूषण भी कुछ है।
मानवीय सोच में इतना अधिक बदलाव आ गया है कि भविष्य की जैसे मानव को कोई चिंता ही नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमानवीय कृत्यों के कारण आज मनुष्य प्रकृति को रिक्त करता चला जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण असंतुलन के चलते भूमंडलीय ताप, ओजोन क्षरण, अम्लीय वष्रा, बर्फीली चोटियों का पिघलना, सागर के जल-स्तर का बढ़ना, नदियों का सूखना, उपजाऊ भूमि का घटना और रेगिस्तान बढ़ रहे हैं। यह सारा किया-कराया मनुष्य का है और आज विचलित व चिंतित भी स्वयं मनुष्य ही हो रहा है। हकीकत तो यह है कि स्वच्छ वायु जीवन का आधार है और वायु प्रदूषण जीवन के अस्तित्व के सम्मुख प्रश्निचह्न लगा देता है। वायु जीवन के प्रत्येक पक्ष से जुड़ा हुआ है। इसीलिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने वायु के प्रति जागरूक रहे और इस प्रकार वायु का स्थान जीवन की प्राथमिकताओं में सर्वाधिक महत्तवपूर्ण कार्यों में होना चाहिए, लेकिन अफसोस की बात है कि हम चेत नहीं रहे हैं।

रविशंकर


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