मानवाधिकार दिवस : सत्ता का या जनता का

Last Updated 10 Dec 2018 06:15:14 AM IST

मानवाधिकार दिवस पूरी दुनिया में 10 दिसम्बर को मनाया जाता है। वर्ष 1948 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसम्बर को प्रत्येक वर्ष इसे मनाए जाने की घोषणा की गई थी।


मानवाधिकार दिवस : सत्ता का या जनता का

किसी भी देश में गरीबी सबसे बड़ी मानवाधिकार चुनौती है, मानवाधिकार दिवस मनाने का मुख्य लक्ष्य गरीबी का उन्मूलन और जीवन को अच्छी तरह जीने में मदद करना है। महिलाओं, बच्चों, युवाओं, नाबालिगों, गरीबों, दिव्यांगजनों या आमजन का क्या आज सतही तौर पर मानवाधिकार संरक्षण एवं संवर्धन हो पा रहा है? यह अपने आप में सवाल है।
निश्चित रूप से भारत में भी मानवाधिकार के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए ‘मानवाधिकार आयोग’ का गठन किया गया है। इसी तरह से महिलाओं के अधिकार एवं संरक्षण के लिए ‘महिला आयोग’ बालकों के लिए ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग’, अनुसूचित जाति आयोग या ऐसे बहुत सारे आयोग का गठन किया गया कि संबंधित लोगों को उनके अधिकार और सुरक्षा की देखरेख की जा सके। इस वर्ष भी पूर्व की भांति भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में 10 दिसम्बर को ‘मानवाधिकार दिवस’ मनाया जाएगा। मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन की बाते होंगी। बहुत सारे ऐसे कार्यक्रम भी आयोजित होंगे, जिसमें हम ‘शपथ’ तक भी लेंगे कि हम ‘मानवाधिकारों का हनन’ नहीं होने देंगे। यहां यह भी उल्लेखित करना समीचीन प्रतीत होता है कि 2013 में ‘मानवाधिकार की थीम’ थी ‘20 साल अपने अधिकारों के लिए काम’ 2014 में ‘मानवाधिकार के माध्यम से जीवन को बदलने के 20 साल’ 2015 में ‘हमारा अधिकार हमारी स्वत्रंता, हमेशा’ 2016 में ‘आज किसी के अधिकारों के लिए खड़ा था’ 2017 में ‘चलो समानता, न्याय और मानव गरिमा के लिए खड़े हो जाओ।’
इस वर्ष 2018 में मानवाधिकार दिवस पर ‘मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ की 70वीं वषर्गांठ मनाने के संदर्भ में वर्ष भर अभियान चलाया जाएगा। यह दुनिया का सबसे अधिक अनुवादित दस्तावेज है, जो 500 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है।

अभियान का  नाम च्च््र¬ग़्क़्छघ्4क्तछग्¬ग़्ङक्ष्क्रक्तच््रच् है। यहां पर पिछले पांच वर्षो के थीम को उल्लेखित किया गया है। अगर सतही तौर पर इसे हम उतारने का प्रयास करते तो आज हम मानवाधिकार से संरक्षण और संवर्धन में बहुत आगे होते। लेकिन एक तरफ तो आयोगों का गठन किया गया; दूसरी तरफ जो कानूनी शक्ति का प्रावधान है, जितना उन्हें मिला वो पर्याप्त नहीं है। ऐसा मानना है। वहीं शुरुआती दौर से ही चाहे वह केंद्र की सरकार रही हो या प्रदेश की सरकार रही हो, ऐसे आयोग में भी सरकार अपने चहेते को ही नियुक्त करती रही है। जिससे कि पारदर्शी रूप जितना आना चाहिए नहीं आ रहा। आयोग भी कोई फैसला लेने में किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाता है या संवैधानिक शक्तियों के अनुरूप नोटिस/सम्मन और जनसुनवाई कर समस्या समाधान करने का प्रयास करता है। बहुत सारे ऐसे मामले भी सामने आते हैं, जिसमें सरकार के लोग जितनी प्राथमिकता देनी चाहिए आयोग को देते नहीं हैं। सोच में है कि, इंसान के पेट भरने का इंतजाम हो जाए इतना ही काफी है। अभी भी देश में हर तरफ महंगाई और बेरोजगारी की मार है।
इंसान का काम सिर्फ  पेट भरने से नहीं चलता। मानव अधिकार के अंतर्गत के सारे अधिकार हैं, जो एक मानव को बुनियादी सुविधाएं और आजादी प्रदान करते हैं। देश में मानवाधिकार के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए शीर्ष संस्था के रूप में स्थापित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग लोगों के मानवाधिकार को बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर कार्य करती है। मुख्यत: जो राष्ट्रीय मानवाधिकार के कार्य धारा 12 के तहत निर्धारित किया गया है। किसी भी पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके सहायतार्थ किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, लोक सेवकों द्वारा उसके मानवाधिकारों के हनन के मामले की शिकायता की सुनवाई करना। किसी लंबितवाद के मामले में न्यायालय की सहमति से उस वाद का निपटारा करना। संविधान और अन्य कानूनों के संदर्भ में मानवाधिकारों के संरक्षण के प्रवाधानों की समीक्षा करना और ऐसे प्रावधानों का प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करने के लिए सिफारिश करना। आतंकवाद या अन्य विध्वंसक कार्य के संदर्भ में मानवाधिकार को सीमित करने की जांच करना।
मानवाधिकार से संबंधित अंतरराष्ट्रीय संधियों एवं अन्य संबंधित अभिसमयों एवं दस्तावेजों का अध्ययन करना और उनके प्रभावी अनुपालन के लिए सिफारिश करना। भारत में मानवाधिकार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध करना। समाज के विभिन्न वगरे में मानवाधिकार से संबंधित जागरूकता बढ़ाना और सेमिनार व अन्य उपलब्ध माध्यमों द्वारा मानवाधिकार को बढ़ावा और संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर लोगों में जागरूकता का प्रसार करना। गैरसरकारी संगठन और अन्य संगठन को बढ़ावा देना, जो मानवाधिकार को बढ़ावा व संरक्षण देने के क्षेत्र में शामिल हैं। ऐसे प्रावधान आयोग के कार्यों में किया गया है। निश्चित रूप से जो मंशा है कि आम जन, दबे-कुचले, शोषित या किसी व्यक्ति का मानवाधिकारों का अगर हनन होता है तो स्वत: संज्ञान लेकर भी ‘मानवाधिकार आयोग’ को आगे आकर उन्हें मानवाधिकार के हनन से बचाना है। बहुत सारे मामलों में ‘मानवाधिकार आयोग’ स्वत: संज्ञान लेता है। फिर भी आज भी देश में बहुत प्राथमिकता के आधार पर जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है।
मीडिया की भूमिका बहुत ही सराहनीय रही है, मानवाधिकार को लेकर। अगर वो फोरम पर ले आते हैं, जो निश्चित रूप से जानकारी हो जाने के बाद आयोग स्वत: संज्ञान ले रहा है। इसी तरह से इसे पंचायत स्तर पर ले जाने की आवश्यकता है कि आम जन जागरूक हो। अगर आम जन जागरूक हो गया तो मानवाधिकार की सुरक्षा और संवर्धन की राह और आसान हो जाएगी। इसके लिए आयोग, सरकार, गैरसरकारी संगठन एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे, जो संस्थान हैं, उनको आगे आना होगा। तब जाकर एक परिणामपरक अपेक्षा पर हम खरा उतर सकते हैं। तब हम यह कहने में सक्षम होंगे कि महिलाओं, बच्चों, युवाओं, नाबालिगों, गरीबों, दिव्यांगजन और बुजुगरे को अपेक्षा के अनुरूप उनके अधिकारों एवं सुरक्षा प्रदान करने में सफल रहे हैं।

राजेश मणि


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