मीडिया : नया माइंड मैनेजर

Last Updated 09 Dec 2018 01:43:05 AM IST

अब आपसे ऐसे सवाल पूछने की जरूरत नहीं। आप अपने फेसबुक के जरिए, ऑनलाइन खरीद के जरिए और व्हाट्सऐप से अपनी पसंद-नापंसद से जाहिर कर चुके हैं।


मीडिया : नया माइंड मैनेजर

-आप क्या खाते-पीते हैं?
-आप किस ब्रांड के कपड़े पहनते हैं?
-किस ब्रांड की कार से चलते हैं?
-कौन-सा अखबार पढ़ते हैं
-कौन-सा खबर चैनल कौन-सा मनोरंजन चैनल देखते हैं?
-कितनी देर फेसबुक पर होते हैं, क्या लिखते हैं, और किस तरह के संदेश पसंद करते हैं?
आपकी ऑनलाइन खरीद हो या फेसबुक पोस्ट हो या आप दूसरों के कुछ मैसेज पसंद करते हों-ये सारी बातें आपकी एक ‘पॉलिटकल प्रोफाइल’ को बताती हैं, जिनको जानकर कुछ निहित स्वार्थ अपनी इच्छानुसार आपको हांक सकते हैं।
यह एक नई सचाई है, जो ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ के डाटा चोरी कांड के बाद उजागर हुई है। कहा जाता है कि एनालिटिका ने फेसबुक के डाटा से लोगों की फैशन अभिरुचियों को विश्लेषित कर डाटा को अपने आर्थिक लाभ के लिए बेच दिया। इससे अमेरिकी चुनाव प्रभावित हुआ और एक खास तरह का नेता और दल जीता। 1973 में हरबर्ट शिलर ने ‘द माइंड मैनेजर्स’ नामक चर्चित पुस्तक लिखकर बताया कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे टीवी हमारे दिमागों पर राज करता है। शिलर का कहना था कि अमेरिका के ‘मीडिया मैनेजर’ हमारे विश्वासों और व्यवहारों को संचालित करने के लिए तरह-तरह की छवियों और सूचना-संदेशों को दिन-रात संप्रेषित करते  रहते हैं। ऐसे संदेश प्रसारित करते हैं, जो यथार्थ से मेल नहीं खाते, लेकिन हम उनसे प्रभावित होते हैं-ऐसे मीडिया मैनेजर्स को ‘माइंड मैनेजर्स’ कहा जाता है। 

आज का युग सोशल मीडिया का है, जो एक ही वक्त में आपको पंवार करता है, और अराजक भी बनाता है, और आपकी सारी सूचनाएं किसी निहित स्वार्थी  को भी बेचता है..कैंब्रिज एनालिटिका के एक व्हिसल ब्लोअर ने बताया है कि  पिछले अमेरिकी चुनाव में फेसबुक के डाटा को विश्लेषित करके मतदाताओं के मन को प्रकारांतर से एक खास तरफ मोड़ा गया और एक खास दल को जिताया गया। जिस व्यक्ति ने कैंब्रिज एनालिटिका के खेल को खोला है, उसका नाम है किस्टोफर विली। उसने बताया है कि किस तरह आम अमेरिकी नागरिकों के कपड़ों की पसंद को विश्लेषित कर, उनके राजनैतिक रुझान को पकड़ा गया और किस तरह उनके  मन को, नये संदेश सप्रेषित कर, एक खास दल और नेताओं को पसंद करने की दिशा में मोड़ा गया। कैंब्रिज एनालिटिका के फेसबुक डाटा के जरिए पहले अमेरिकी मतदाता की ‘प्रोफाइलिंग’ की गई। प्रोफाइलिंग का मतलब व्यक्ति की रुचियों, विचारों और व्यवहार का अनुमान लगाना और उसकी रुचि को किसी इच्छित दिशा में मोड़ने के तरीके खोजना। इसे कहते हैं ‘मति फेरना’!
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि  फैशन, किसी खास ब्रांड के कपड़े, नाच-गाने आदि व्यक्ति की राजनीतिक रुचियों के भी संकेतक होते हैं। विली बताते हैं कि फेसबुक और ऑनलाइन खरीद करने वाले नागरिकों का वर्गीकरण करके उनकी आदतों का विश्लेषण करके तय पाया गया कि किस अभिरुचि का प्राणी किस तरह की राजनीति पसंद कर सकता है, और फिर ऐसे लोगों को तरह-तरह के प्रतीकों और तरह-तरह के संदेशों के जरिए एक खास दल को जिताने को प्रेरित किया गया। किस तरह एक खास ब्रांड की जीन्स पसंद करने वालों को रूढ़िवादी विचार का माना जा सकता है, और दूसरे ब्रांड की जीन्स को पसंद करने वालों को उदारतावादी माना जा सकता है, और उनके दिमागों को बदलने के लिए किस तरह के संदेश दिए जा सकते हैं कि वे वही करें जो आप चाहते हैं। ऐसा ही किया गया।
अपना देश न अमेरिका है, न किसी कैंब्रिज एनालिटिका ने अपनी राजनीति को लेकर कोई तहलका मचाया है। अपना राजनीतिक वातावरण भी सूचना तकनीक की  ऐसी ‘हेराफेरी’ के लिए खुला है। हमने व्हाट्सऐप के द्वारा बिना सोचे-समझे फॉर्वड किए गए अनेक प्रकार के घृणा संदेशों के दुष्परिणाम देखे हैं.. व्हाट्सऐप के जरिए आगे भेजे गए घृणामूलक और उत्तेजक संदेशों ने कई जगह कई मानसिकता तैयार की हैं। गलत-सलत संदेशों से जनता को उत्तेजित करने वाले तत्व भी हमारी रुचियों में हेरा फेरी करते हैं। वे भी नये प्रकार के माइंड मैनेजर और अभिरुचि मैनेजर हैं। हमें इन अभिरुचियों के इन नये मैनेजरों से सजग रहना चाहिए।

सुधीश पचौरी


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