वैश्विकी : भारत की आलोचना सही
यह दुखद है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा में कोई निर्णय नहीं लिया गया।
वैश्विकी : भारत की आलोचना सही |
अगर चर्चा हो, उसमें बातें रखी जाएं तथा कोई कार्रवाई योजना बने ही नहीं या कम से कम कुछ विरोधी प्रस्ताव तक पारित न हो तो इसका कोई अर्थ नहीं है। भारत ने इस पर क्षोभ प्रकट किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थायी मिशन में काउंसलर एनम गंभीर ने विश्व संस्था के लिए जिस तरह के कड़े वक्तव्य का इस्तेमाल किया है, वह बिल्कुल स्वाभाविक है। भारत ने यह साफ कहा था कि संयुक्त राष्ट्र संघ को तालिबान के नये नेताओं पर प्रतिबंध लगाना चाहिए था। यह बिल्कुल उचित मांग थी। नये तालिबानी नेताओं ने एक ओर से शांति के लिए कतर स्थित अपने कार्यालय के माध्यम से बातचीत के प्रति हामी भरी पर दूसरी ओर वे लगातार हमले भी कर रहे हैं।
पिछले एक सप्ताह के अंदर ही उनके हमलों में 60 लोगों से ज्यादा की मौत हो गई है। जिस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतिम चर्चा थी, उसी दिन अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रांत हेरात में सेना के एक शिविर पर देर रात तालिबान आतंकवादियों ने भीषण हमला कर दिया। इस भीषण हमले में में तत्काल चौदह के करीब सैनिकों के मारे जाने की खबर आई। तालिबान आतंकवादियों की संख्या सैकड़ों में थी। हालांकि हमले में कुछ आतंकवादी भी मारे गए, लेकिन वे कई सैनिकों को उनके हथियारों सहित कब्जे में लेकर अपने साथ ले जाने में सफल रहे।
यह शांति की चाहत रखने वाले किसी संगठन का रवैया तो नहीं हो सकता। तालिबान के कुछ पुराने नेताओं पर तो प्रतिबंध लगा हुआ है, पर पता नहीं यह धारणा कैसे बना दी गई कि तालिबान के अंदर जो नया वर्ग आया है, वह शायद किसी समझौते पर पहुंच कर अफगानिस्तान में शांति का वाहक बन जाए। भारत ने मॉस्को वार्ता में गैर-सरकारी स्तर पर अपने दो पूर्व राजनयिकों को अवश्य भेजा, लेकिन वह केवल इसलिए कि अफगानिस्तान की किसी भी वार्ता से बाहर न हो जाएं। चूंकि रूस के साथ वहां चीन और पाकिस्तान सरकारी स्तर पर शामिल थे, इसलिए भारत उससे बिल्कुल अलग नहीं हो सकता। इस कारण भारत ने अंत में गैर-सरकारी स्तर पर भागीदारी का निर्णय लिया किंतु भारत कभी भी आतंकवाद पर किसी तरह के समझौते के पक्ष में नहीं रहा। इसलिए भारत बार-बार संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से आतंकवाद पर पेश प्रस्ताव को पारित करने के लिए जोर दे रहा है ताकि आतंकवाद की एक परिभाषा तय हो और यह भी तय हो कि कौन आतंकवादी हैं, और इस प्रकार उन्हें औपचारिक रूप से चिह्नित करके उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।
किंतु दुनिया के कई देश कुछ निहित स्वाथरे के कारण इसमें बाधा बन रहे हैं। इसके पारित हो जाने के बाद पाकिस्तान जैसे देश के लिए तो समस्या खासी बढ़ जाएगी। संयुक्त राष्ट्र संघ की चर्चा में भी पाकिस्तान एक आरोपित की तरह खड़ा था। हालांकि उसके प्रतिनिधि ने तकरे से अपनी रक्षा की, लेकिन भारत ने साफ किया कि अफगानिस्तान में तालिबान के ज्यादातर हमलों के पीछे पाकिस्तान की अहम भूमिका है। अफगानिस्तान के प्रतिनिधि ने इसे ज्यादा मुखर होकर रखा। साफ है कि संयुक्त राष्ट्र को तालिबान के उन आकाओं को प्रतिबंधित करना चाहिए था। ऐसा लगता है कि कुछ देश कहीं जाने-आने की इनकी स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहते हैं। यह दुनिया के लिए तो खतरनाक है ही, अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के मार्ग की बहुत बड़ी बाधा भी है। कहना न होगा कि आपने इनको प्रतिबंधित नहीं किया तो दूसरे देशों में इनको पकड़ना संभव नहीं होगा और ये जहां रहेंगे, वहीं से हमलों को नियोजित करते रहेंगे।
ऐसे में अफगानिस्तान की शांति दूर की कौड़ी ही रह जाएगी। आज भी अफगानिस्तान के आधा से ज्यादा क्षेत्र तालिबानों के प्रभुत्व में है। इसको खत्म करना दुनिया की जिम्मेवारी है। वहां आईएसआईएस भी खड़ी हो गई है। सीरिया और इराक से उनके पांव उखड़ गए पर वे उस विचार को लेकर अफगानिस्तान में सक्रिय हो चुके हैं। आईएसआईएस से सुरक्षा बलों के संघर्ष के कारण भारी संख्या में ग्रामीण दूसरी जगह शरण लेने को मजबूर हैं। दोहरे रवैये से अफगानिस्तान का ही नहीं, दुनिया से आतंकवाद का अंत नहीं हो सकता। भारत का यह पक्ष ठीक है कि आतंकवाद के प्रति सभी को बिल्कुल स्पष्ट रवैया अपनाना होगा।
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