पर्यावरण : आई कृत्रिम बारिश की नौबत

Last Updated 26 Nov 2018 03:08:35 AM IST

आज विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस है। पर्यावरण और जीवन के बीच अटूट संबंध होता है। बावजूद इसके हम इस सच्चाई को नकारते रहे हैं।


पर्यावरण : आई कृत्रिम बारिश की नौबत

इस लिहाज यह दिवस बेमानी सा लगता है। पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति के चलते ऐसी नौबत आ गई है कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पर्यावरण को साफ करने के लिए कृत्रिम बारिश के इंतजाम करने पड़ रहे हैं।
पर्यावरण को विकृत और दूषित करने वाली समस्त स्थितियों तथा कारणों के लिए मानव उत्तरदायी है। बढ़ती जनसंख्या की आवास तथा बेकारी की समस्या को दूर करने के लिए जंगलों, हरे-भरे खेतों, बाग-बगीचों को काटा जा रहा है। नगर-महानगर गंदगी के ढेर बन गए हैं। कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला विषैला धुआं, रेलगाड़ी और मोटर वाहनों के पाइपों-इंजनों से निकलने वाली गैसें, रसायनों की गंध, कचड़ा अवशिष्ट, रासायनिक पानी, परमाणु भट्ठियों से निकलने वाले जहरीले तत्व से वायु तथा जल प्रदूषित हो रहा है। सुख-समृद्धि तभी तक रह सकती है जब तक उनमें पर्याप्त संतुलन बना रहे। लेकिन कुछ सालों से पर्यावरण पूरी तरह से असंतुलित हो गया है। पर्यावरण दिवस मनाने के मायने क्या हैं, इसको समझना इसलिए भी जरूरी हो गया है कि इस दिवस के मौके पर केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से पर्यावरण को बचाने के लिए तमाम योजनाओं का श्रीगणोश किया जाता है। पर दूसरे दिन उन्हें भुला दिया जाता है। यह सब देखकर लगता है कि पर्यावरण दिवस बराये नाम मनाया जाता है।

प्रकृति ने पृथ्वी पर जीवन के लिए प्रत्येक जीव के सुविधानुसार उपभोग संरचना का निर्माण किया है। परन्तु मनुष्य ऐसा समझता है कि इस पृथ्वी पर जो भी पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, नदी-पर्वत, समुद्र आदि हैं, वे सब उसके उपभोग के लिए हैं। मनमाने शोषण का जरिया हैं। यद्यपि इस महत्वाकांक्षा ने मनुष्य को एक ओर उन्नत और समृद्ध बनाया है, तो दूसरी ओर कुछ दुष्परिणाम भी प्रदान किए हैं, जो विकरालता में हमारे सामने खड़े हैं। वर्षा जल के भूमि में न समाने से जल स्त्रोत सूख रहे हैं। नतीजतन, गांवों को पेयजल की किल्लत से जूझना पड़ रहा है, तो सिंचाई के अभाव में परती भूमि का रकबा दिनोंदिन बढ़ रहा है। नमी के अभाव में जंगलों में हर साल बड़े पैमाने पर लगने वाली आग से वन संपदा तबाह हो रही है।
जल ही जीवन है, और इसके बगैर जिंदगी संभव नहीं लेकिन इसके अथाह दोहन ने कई तरह से पर्यावरणीय संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है। कुछ साल पहले कई विशाल जलाशय बनाए गए थे। इनको सिंचाई विद्युत और पेयजल की सुविधा के लिए हजारों एकड़ वन और सैकड़ों बस्तियों को उजाड़कर बनाया गया था। मगर वे अब दम तोड़ रहे हैं। केंद्रीय जल आयोग ने इन तालाबों में जल उपलब्धता के जो ताजा आंकड़े दिए हैं, उनसे जाहिर होता है कि आने वाले समय में पानी-बिजली की भयावह स्थिति सामने आने वाली है। इन आंकड़ों से साबित होता है कि जल आपूर्ति विशालकाय जलाशयों (बांध) की बजाए जल प्रबंधन के लघु और पारंपरिक उपायों से ही संभव है न कि जंगल और बस्तियां उजाड़कर। बड़े बांधों के अस्तित्व में आने से एक ओर तो जल के अक्षय स्त्रोत को एक छोर से दूसरे छोर तक प्रवाहित रखने वाली नदियां खतरे में हैं।
देश के 76 विशाल और प्रमुख जलाशयों की जल भंडारण की स्थिति पर निगरानी रखने वाले केंद्रीय जल आयोग द्वारा कुछ वर्ष पहले तालाबों की जल क्षमता के जो आंकड़े दिए गए हैं, वे बेहद गंभीर हैं। आंकड़ों के मुताबिक 20 जलाशयों में पिछले दस वर्षो के औसत भंडारण से भी कम जल का भंडारण हुआ है। गौरतलब है कि दिसम्बर, 2005 में केवल 6 जलाशयों में ही पानी की कमी थी, जबकि फरवरी की शुरुआत में ही 14 और जलाशयों में पानी की कमी हो गई है। इन 76 जलाशयों में से जिन 31 जलाशयों से विद्युत उत्पादन किया जाता है, उनमें पानी की कमी के चलते विद्युत उत्पादन में कटौती की जा रही है।
पर्यावरण की समुचित सुरक्षा के अभाव में विकास की क्षति होती है। कारखानों से निकलने वाले धुएं से कार्बनमोनोऑक्साइड और कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसें वायु में प्रदूषण फैला रही हैं, जिससे आंखों में जलन, जुकाम, दमा तथा क्षय रोग आदि हो सकते हैं। दिसम्बर, 1984 की भोपाल गैस रिसाव त्रासदी के जख्म अभी भी भरे नहीं हैं। वर्तमान में भारत की जनसंख्या एक अरब तथा विश्व की छह अरब से अधिक पहुंच गई है। इस विस्तार के कारण वनों का क्षेत्रफल घट रहा है। नाभिकीय विस्फोटों से उत्पन्न रेडियोएक्टिव पदाथरे से पर्यावरण दूषित हो रहा है। अस्थि कैंसर, थायरॉइड कैंसर, त्वचा कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो रही हैं। इस विवेचना से स्पष्ट है कि पर्यावरण संबंधी अनेक मुद्दे आज विश्व की चिंता का विषय हैं।

रमेश ठाकुर


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