विश्लेषण : बढ़े हुए घाटे की चुनौती
यकीनन इस समय कच्चे तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने तथा डॉलर की तुलना में रुपये के 70 के स्तर पर पहुंचने से अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार आएगा लेकिन चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के पिछले 8 माह में जो राजकोषीय और चालू खाते का घाटा ऊंचाई पर पहुंच गया है, उसे पाटा जाना मुश्किल है।
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हाल ही में 21 नवम्बर को भारतीय स्टेट बैंक की शोध शाखा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह लक्ष्य से कम रहने के कारण सरकार की वित्त वर्ष 2018-19 में खर्च करने की क्षमता पर असर पड़ेगा और राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3.3 फीसदी के स्तर पर बनाए रखने के लिए इस वित्त वर्ष में सरकर को 700 अरब रु पये के लगभग पूंजीगत व्यय में कमी करना होगी जोकि वित्त वर्ष 2018-19 के कुल पूंजीगत व्यय का एक चौथाई है। पूंजीगत व्यय में कमी किए जाने का सबसे नकारात्मक असर सड़क तथा बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर पड़ेगा।
गौरतलब है कि विगत 25 अक्टूबर को भारत सरकार के लेखा महानियंत्रक द्वारा प्रकाशित किए आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2018-19 के तहत अप्रैल से सितम्बर, 2018 में ही पूरे वर्ष के लिए निर्धारित 6.24 लाख करोड़ रु पये के लक्ष्य के 95.3 फीसदी पर पहुंच गया। पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही में राजकोषीय घाटा लक्ष्य का 91.3 फीसदी था। यकीनन बढ़ते राजकोषीय घाटे से आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था तक की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। चालू वित्त वर्ष 2018-19 में जहां एक ओर सरकारी आमदनी लक्ष्य के अनुरूप नहीं है, वहीं दूसरी ओर सरकारी खर्च लक्ष्य से अधिक बढ़ते गए हैं। परिणामस्वरूप सरकार के समक्ष राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पूरा करना एक कठिन चुनौती है। सरकार का लक्ष्य है कि 2018-19 के दौरान राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 फीसदी से ज्यादा न हो। लेकिन चालू वित्तीय वर्ष में अप्रत्यक्ष कर संग्रह लक्ष्य से बहुत नीचे है। विनिवेश लक्ष्य प्राप्ति से दूर है। तेल सब्सिडी और अनाज सब्सिडी का अतिरिक्त बोझ स्पष्ट दिखाई दे रहा है। परिणामस्वरूप राजकोषीय घाटा निर्धारित लक्ष्य से कुछ अधिक जीडीपी के 3.5 प्रतिशत पर पहुंच सकता है।
निश्चित रूप से सुस्त जीएसटी संग्रह और अतिरिक्त व्यय प्रतिबद्धताओं की वजह से सरकार नाजुक संतुलन स्थापित करने का काम कर रही है। प्रत्यक्ष कर संग्रह उत्साहजनक है, लेकिन जीएसटी और विनिवेश से आमदनी का निर्धारित लक्ष्य पाना मुश्किल है। उपलब्ध आंकड़ों को देखें तो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के माध्यम से उम्मीद से 1 लाख करोड़ रु पये कम कर आने की संभावना है। इसके साथ ही अतिरिक्त अनुमानित व्यय 28,000 करोड़ रु पये है। केंद्र सरकार के आंतरिक व्यय अनुमान से पता चलता है कि सितम्बर, 2018 में मोटे अनाज और दलहन के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य बाध्यताओं को पूरा करने के लिए 20,000 करोड़ रु पये अतिरिक्त आवंटन की जरूरत होगी। यह बजट में अनुमानित 1.69 लाख करोड़ रु पये खाद्य सब्सिडी के ऊपर होगा। इस साल के लिए ईधन सब्सिडी 25,000 करोड़ रु पये रखी गई है। बहरहाल, कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाने के कारण सरकार को अब इस मद में भी 12,500 करोड़ रु पये अतिरिक्त खर्च करने होंगे। सरकार की घोषणा थी कि सरकारी विमान कंपनी एयर इंडिया को बजट में घोषित 16,300 करोड़ रु पये के धन के अतिरिक्त 2,000 करोड़ रुपये मुहैया कराएगी। वहीं आयुष्मान भारत का बजट 3,500 करोड़ रु पये बढ़ सकता है।
सरकार ने वैश्विक आर्थिक घटनाक्रम के कारण देश के राजकोषीय घाटे की बढ़ती चिंताएं लगातार अनुभव की हैं। यही कारण है कि कमजोर होते रु पये की वजह से सरकार लगातार अपने जमा और खर्च के अकाउंट की समीक्षा कर रही है। इस दौरान कई कम जरूरी चीजों पर इंपोर्ट डय़ूटी भी बढ़ाई गई है। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने 13 अक्टूबर को विदेशी मुद्रा बचाने के मकसद से आयात घटाने की रणनीति के तहत स्मार्टवॉच, मोबाइल फोन के पार्ट्स और टेलीकॉम इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। स्मार्टवाच समेत कुछ वस्तुओं पर आयात शुल्क 10 से बढ़ाकर 20 फीसदी किया गया है। मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाले प्रिंटेड सर्किट बोर्ड समेत कुछ वस्तुओं पर डय़ूटी बढ़ाकर 10 फीसदी तक की गई है। सरकार ने विगत 26 सितम्बर को 19 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाया था। इनमें एसी, फ्रिज और 10 किलो तक क्षमता वाली वॉशिंग मशीन भी शामिल थीं। निस्संदेह आयात में कमी लाने के प्रयासों से चालू खाते के बढ़ते हुए घाटे को कम किया जा सकेगा। अब कुछ और आयातित वस्तुओं के आयातों को नियंत्रण से मुक्त रखा जाना होगा जिनका दवाई निर्माण से संबंध है, और जिनका निर्यात उद्योग से भी संबंध है। चीन और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापार युद्ध से भारत के हितों के संरक्षण के साथ-साथ चालू खाते के घाटे को पाटने के लिए तथा चीन से डंपिंग बढ़ने की आशंका के मद्देनजर कुछ सामानों के आयात पर अंकुश जरूरी दिखाई दे रहा है। अमेरिका में क्रिसमस और छुट्टियों के लिए चीन में जो सामान बनाया जा रहा है, अगर उसे अमेरिका के बाजारों में कम मात्रा में भेजा गया तो उसके भारतीय बाजारों में आने की आशंका बढ़ जाएगी। निश्चित रूप से गैर-जरूरी आयातित वस्तुओं पर आयात शुल्क का दायरा बढ़ने से भी राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखा जा सकेगा।
इसमें दो मत नहीं हैं कि लगातार बढ़ते चालू खाता घाटा पर लगाम के लिए सरकार तमाम प्रयास कर रही है। अब सरकार वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान बचे महीनों में होने वाले गैर-जरूरी खचरे पर लगाम लगाने की रणनीति बना रही है। मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार अपना उधारी कार्यक्रम पहले ही 70 हजार करोड़ घटाकर 6.05 लाख करोड़ रु पये कर चुकी है। यदि सरकार राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के विभिन्न प्रयासों से राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के अनुरूप जीडीपी के 3.3 फीसदी के स्तर पर बनाए रखने पर सफल होगी तो यकीनन यह सरकार की बड़ी उपलब्धि होगी। ऐसे स्तर पर आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था को मुश्किलों से बचाया जा सकेगा।
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