शराब : ज्यादा खपत चिंताजनक
चार-पांच वर्षो के अंतराल पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘शराब व स्वास्थ्य’ विषय पर अपनी प्रमाणिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जिसे एक संदर्भ ग्रंथ की तरह उपयोग किया जाता है।
![]() शराब : ज्यादा खपत चिंताजनक |
सितम्बर माह में वर्ष 2018 की रिपोर्ट संगठन ने जारी की है। रिपोर्ट में भारत के बारे में जो जानकारी दी गई है, उससे 15 वर्ष से ऊपर के आयु वर्ग में शराब के उपयोग के बारे में कई महवपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। इस आयु वर्ग में प्रति व्यक्ति शराब की खपत के आंकड़े प्योर अल्कोहल प्रति वर्ष के हिसाब से दिए गए हैं। 2005 में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष प्योर अल्कोहल की खपत 2.4 लीटर थी, जबकि 2010 में यह बढ़कर 4.3 लीटर हो गई और 2016 में यह बढ़कर 5.7 लीटर हो गई। दूसरे शब्दों में, मात्र 11 वर्षो में यह खपत दोगुना से भी कहीं अधिक बढ़ गई जो कि गहरी चिंता का विषय है।
यह औसत खपत 15 वर्ष से अधिक आयु की पूरी जनसंख्या के लिए है, पर यदि मात्र पीने वाले व्यक्तियों की संख्या के आधार पर 2016 की औसत खपत देखी जाए तो यह 5.7 लीटर के स्थान पर 14.6 लीटर है। पंद्रह वर्ष से ऊपर के आयु वर्ग में पाया गया कि देश में 39 प्रतिशत व्यक्ति शराब पीते हैं जबकि 61 प्रतिशत शराब नहीं पीते। पर यदि केवल पुरुषों को देखा जाए तो इस आयु वर्ग में 51 प्रतिशत शराब पीते हैं और 49 प्रतिशत नहीं पीते। दूसरी ओर अच्छी खबर यह है कि भारत में 9 प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं, जो पहले शराब पीते थे पर पिछले 12 महीनों में उन्होंने नहीं पी। इसी श्रेणी में 6 प्रतिशत महिलाएं हैं। पुरुष और महिला मिलाकर देखें तो 7.6 प्रतिशत भारतीय ऐसे हैं, जो पहले शराब पीते थे पर पिछले एक वर्ष में उन्होंने नहीं पी। इससे पता चलता है कि काफी बड़ी संख्या में लोगों ने शराब छोड़ी भी है, फिर चाहे डाक्टर के कहने पर या अन्य कारणों से।
कम समय में अधिक शराब पी लेना भी हानिकारक माना जाता है। अत: आंकड़े एकत्र करते समय पूछा गया कि क्या पिछले एक महीने में कभी एक ही बार में 60 ग्राम से अधिक प्योर अल्कोहल का सेवन किया? 44 प्रतिशत पीने वालों ने कहा कि उन्होंने ऐसा किया (55 प्रतिशत पुरुषों और 21 प्रतिशत महिलाओं ने)। यही सवाल किशोरवय (वर्ग 15-19 वषर्) पीने वालों से पूछा गया तो पाया कि 51 प्रतिशत ने पिछले महीने में कम से कम एक बार इतनी अधिक शराब पी। आइए, देखें कि इसका स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ा? लिवर की मुख्य बीमारी सिरोसिस से पुरुषों में हुई मौतों को देखें तो 60 प्रतिशत में शराब वजह थी, जबकि महिलाओं में इस बीमारी से हुई मौतों में 33 प्रतिशत में शराब वजह थी। सड़क हादसों में मौतों में पुरुषों के संदर्भ में 34 प्रतिशत में शराब की जिम्मेदारी थी, महिलाओं के संदर्भ में 18 प्रतिशत। स्पष्ट है कि शराब से हुई क्षति की बहुत चिंताजनक स्थिति रिपोर्ट से सामने आती है। वैसे तो शराब के प्रतिकूल असर अमीर-गरीब सभी को सहने पड़ते हैं, पर शराब का कहीं अधिक प्रतिकूल असर गरीबों पर पड़ता है। अमीरों के पास शराब की प्रतिकूलता को कुछ कम करने या संभालने के लिए कई तौर-तरीके उपलब होते हैं, जो गरीब लोगों को उपलब्ध नहीं हैं। अमीरों को बुनियादी जरूरतों की पूर्ति शराब पर अपव्यय करने के बाद भी पूरी हो सकती है, पर गरीब व्यक्ति यदि शराब की लत पकड़ लेता है तो फिर उसके परिवार में रोटी, सब्जी और बच्चों के स्कूल की फीस तक उपलब्ध करवाने में कठिनाई हो जाती है। इस कारण परिवार में लड़ाई-झगड़े भी अधिक होते हैं, गरीबों का स्वास्थ्य पहले से कमजोर होता है।
अब यदि हम अमीर और गरीब, दोनों की तुलना करें तो यूरोप के धनी देशों में अफ्रीका के निर्धन देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति शराब की खपत अधिक है, पर स्वास्थ्य और समाज पर दुष्परिणाम अफ्रीकी देशों में यूरोप से भी अधिक देखे जाते हैं। इस तरह शराब की बढ़ती खपत विषमता को भी बढ़ाती है। अधिकांश राज्य सरकारें शराब से अधिक आय कमाने के लालच को छोड़ नहीं पा रही हैं। हाल के समय में केवल बिहार ने शराबबंदी का बड़ा कदम उठाया है। गुजरात में शराबबंदी बहुत पहले से है। केरल और तमिलनाडु में शराब की समस्या बहुत बढ़ जाने के बाद इन दोनों राज्यों की सरकारों ने क्रमबद्ध शराबबंदी की ओर आगे बढ़ने का निश्चय लिया है। कुछ अन्य सरकारों ने समय-समय पर कहा है कि जहां 50 प्रतिशत से अधिक लोग शराब के विरुद्ध हस्ताक्षर करेंगे वहां से ठेकों को हटाया जाएगा। अभी तक के अनुभव से स्पष्ट हुआ है कि केवल कानूनी कार्यवाही से शराब के नशे को दूर नहीं किया जा सकता है, इसके साथ नशे के विरुद्ध व्यापक जन-अभियान चलाने की भी जरूरत है।
| Tweet![]() |