वैश्विकी : चुनौतियों के बीच चौगुटा

Last Updated 18 Nov 2018 03:50:11 AM IST

भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैनिक और आर्थिक ताकत तथा उसकी क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण पाने के लिए क्वाड समूह-चौगुटा (भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया) के वरिष्ठ अधिकारियों ने सिंगापुर में चतुष्कोणीय वार्ता की।


वैश्विकी : चुनौतियों के बीच चौगुटा

क्वाड समूह की इस तीसरी बैठक में संपर्क, सतत विकास, आतंकवाद निरोध, परमाणु अप्रसार, साइबर और समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग किस तरह बढ़ाया जाए, इस पर व्यापक चर्चा हुई। पूरी बातचीत में चीन का सीधे रूप से नाम नहीं लिया गया, लेकिन जाहिर तौर पर क्वाड समूह के चारों देश इस क्षेत्र के छोटे देशों को साथ लेकर भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए ऐसा ढांचा खड़ा करना चाहते हैं, जिसमें सभी अपने को सुरक्षित महसूस करें। हालांकि वार्ता के बाद चारों देशों ने अलग-अलग विज्ञप्ति जारी की।
क्वाड समूह के तीन देशों-जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने भारत के निकटतम पड़ोसी श्रीलंका और मालदीव के राजनीतिक संकट पर चीन को लक्ष्य करके बातचीत की, जबकि भारत ने इस मसले पर तटस्थता और सावधानी बरतते हुए सामान्य रुख अपनाया। हालांकि ये दोनों देश चीन की विस्तारवादी नीति की चपेट में हैं, फिर भी भारत यह नहीं चाहता कि इस तरह का संदेश जाए कि क्वाड समूह के देश चीन की लामबंदी करना चाहते हैं। लेकिन असलियत तो यह है कि भारत को भी जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की तरह नियम आधारित व्यवस्था पर बातचीत करनी चाहिए थी। यह भारत के हित में था।

क्वाड समूह के बारे में एशियाई देशों ने मिश्रित प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। चीन और रूस ने असंतोष जाहिर किया है। आसियान देशों में भारत के निकटतम रणनीतिक साझेदार वियतनाम समेत अनेक देश चीन की विस्तारवादी नीति से पीड़ित महसूस करते हैं। ये सभी देश भारत प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए किए जाने वाले किसी भी तरह के प्रयास का स्वागत तो करते हैं, लेकिन यह नहीं चाहते कि उनका देश महाशक्तियों के टकराव का मैदान बन जाए। यह सच है कि क्वाड समूह को एक ऐसे तंत्र के रूप में देखा जा रहा है, जो भारत प्रशांत क्षेत्र और पूर्वी एशिया के देशों में चीन के सैनिक वर्चस्व को काबू कर सके। लेकिन यह सैन्य गठबंधन नहीं है, जैसा कि चीन प्रचारित कर रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति से पीड़ित देशों को बीजिंग के इस मिथ्या प्रचार का खंडन करना चाहिए। भारत और जापान के नेताओं ने क्वाड समूह को विश्व के अन्य सहयोगी मंचों में से एक बताया है।
भारत किसी भी तरह के सैन्य गठबंधन से अलग रहते हुए अपना सामाजिक-आर्थिक विकास चाहता है। यह उसकी पारंपरिक विदेश नीति के प्रमुख तत्वों में से एक है। जाहिर है कि क्वाड समूह को सैन्य गठबंधन में बदलने के प्रति उसकी कोई रुचि नहीं है। नई दिल्ली संस्थागत और संचारगत परियोजनाओं के जरिए नागरिक क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने पर जोर देता है। क्वाड समूह के बीच हुई इस बातचीत में भारत ने मजबूत स्वर के साथ विचार व्यक्त किया है कि इन चारों देशों का सहयोग आसियान देशों के विकास पर केंद्रित होगा। अन्य तीनों देशों ने भारत के इस विचार का समर्थन किया। भारत और जापान, दोनों इस बात पर प्रतिबद्ध हैं कि इस नीति को भारत-प्रशांत क्षेत्र में स्वीकार्य बनाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। नई दिल्ली भारत-प्रशांत क्षेत्र को खुला और समावेशी बनाने के साथ-साथ इस क्षेत्र के देशों की संप्रभुता और समानता को अक्षुण्ण बनाए रखना चाहता है। 
प्रधानमंत्री मोदी की पिछले दिनों सिंगापुर में आयोजित तेरहवें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान क्वाड समूह के तीन देशों के साथ हुई बातचीत का विशेष महत्त्व है। ऐसा समझा जा रहा है कि इस समूह को एक आकार देने पर चारों देशों के बीच सहमति बन गई है। लेकिन चीन को यह बताने की भी जरूरत है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र के देशों के पास क्वाड समूह एक विकल्प के तौर पर उभर रहा है। इसके लिए क्वाड समूह के देशों के बीच लगातार संयुक्त नौसैन्य अभ्यास होना आवश्यक है। भारत, जापान और अमेरिका के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में त्रिपक्षीय मालाबार नौसैन्य अभ्यास हो चुका है, लेकिन इसमें ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित नहीं किया गया है। यह रणनीतिक भूल है। नौसैन्य अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल किए बिना क्वाड समूह की ताकत पानी के बुलबुले की तरह साबित होगी।

डॉ. दिलीप चौबे


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