चीन में मुस्लिम : दमन पर चुप क्यों दुनिया?

Last Updated 17 Nov 2018 06:15:44 AM IST

कुछ अर्से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव अधिकार समिति ने चीन के मुसलमानों पर होने वाले जुल्मों के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई थी।


चीन में मुस्लिम : दमन पर चुप क्यों दुनिया?

चीन के उइगर और हुइ मुसलमानों पर जिस तरह के अत्याचार हो रहे हैं, वहा मुस्लिमों पर इतनी पाबंदियां लगाई जा रही है कि लगता है वे गुलामों से भी बदतर जिंदगी जी रहे हैं। मगर चीन पर इन आरोपों का कोई असर नहीं हुआ। वह इसे गपशप या अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप मानता है। इसलिए पश्चिमी देश इन दिनों चीन को  घेरने की बड़ी तैयारी कर रहे हैं। पेइचिंग में पश्चिमी देशों के 15 राजदूतों का एक समूह चीन के अशांत शिनजियांग क्षेत्र में आला अधिकारियों के साथ बैठक करने की योजना बना रहा है।  अब पश्चिमी देशों के राजनियकों ने चीन से इस पर जवाब मांगने की तैयारी की है। इनमें कनाडा की अहम भूमिका है।
चीन सरकार ने मुस्लिम बहुल शिनजियांग को एक तरह से ‘नजरबंदी शिविर’ में तब्दील कर दिया है। समिति की रपट के अनुसार चीन के उइगर प्रांत में लगभग दस लाख मुसलमानों को जेल में बंद करके रखा हुआ है और 20 लाख को पकड़ कर पुनर्शिक्षण या री-एजुकेशन किया जा रहा है। यानी इस्लाम-विरोधी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस सिलसिले में चीन सरकार ने इंटर्नमेंट कैंप बनाए हैं और री-एजुकेशन के लिए बिना किसी आरोप ही मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सामूहिक तौर पर हिरासत में ले लिया जाता है। लगभग सवा करोड़ उइगर मुसलमान चीन के सिक्यांग या शिनजियांग प्रांत में रहते हैं। इस प्रांत की सीमा भारत, पाकिस्तान, मंगोलिया और मध्य एशिया के देशों को स्पर्श करती है। चीन के मुस्लिम समस्या की एक वजह यह है कि चीन साम्राज्यवादी और विस्तारवादी देश है। तिब्बत की तरह उसने शिनजियांग पर भी कब्जा किया हुआ है। चीनी सेना ने 1949 में आक्रमण कर इसको चीन में शामिल किया था।

आज चीन की कम्युनिस्ट पार्टी शिनजियांग की पहचान को खत्म कर रही है। इसलिए वहां मूल निवासी उइगर मुस्लिमों में संतोष है।  20 वीं सदी में वहां चीन-विरोधी बगावतें होती रही हैं। इस अलगाव को खत्म करने के लिए चीन सरकार ने अपना जाना पहचाना हथकंडा अपनाया है कि तिब्बत की तरह इस प्रांत में इतने हान चीनियों को बसा दिया गया है कि उइगर लोग अपने ही घर में अल्पसंख्यक बन गए। उन पर तरह-तरह की पाबंदियां हैं। यदि कोई उइगर सरकारी कर्मचारी हो तो उसे दाढ़ी नहीं रखने दी जाती। टोपी नहीं पहनने दी जाती। बुर्के पर प्रतिबंध है। कुरान और इस्लामी साहित्य खुले-आम बेचने नहीं दिया जाता। उन्हें ऊंचे पद नहीं दिए जाते। कम्युनिस्ट पार्टी के अफसरों का शिंकजा सर्वत्र कसा रहता है। उइगर में हर साल दंगे होते है, जिसमें सैकड़ों उइगर और चीनी मारे जाते हैं। कम्युनिज्म के संस्थापक कार्ल मार्क्‍स ने कहा था कि धर्म जनता की अफीम है। उसके बाद से तमाम कम्युनिस्ट देश जनता को इस अफीम की लत छुड़ाने की कोशिश करते रहे। चीन एक कम्युनिस्ट देश के नाते उसी लीक पर चल रहा है। वहां सभी धर्मो का दमन हो रहा है। चीन के बौद्ध, मुसलमान और ईसाई दूसरे दर्जे के नागरिकों की तरह जीवन बिता रहे हैं। मगर सबसे बुरी हालत मुसलमानों की है क्योंकि वे केवल दमन सहते नहीं वरन उसका पुरजोर विरोध भी करते हैं।
मुस्लिमों के दमन के बारे में अब तक आने वाली रिपोर्ट्स को चीन  झुठलाता रहा, लेकिन कुछ दिनों पहले चीन की पीड़ित उइगर महिला ने चीन में उइगर मुसलमानों के साथ होने वाले सभी अत्याचारों की पोल खोली दी कि वहां रहने वाले उइगर मुसलमान हमेशा इस डर में जीते हैं कि न जाने कब उन्हें सरकार का कोई शख्स उठाकर ले जाए और परिवार और बच्चों से दूर कहीं नजरबंद कर दे। महिला गुलजान ने अपने लेख में कहा, ‘हमारे पास हमारी अपनी भाषा, अपना संस्कृति और अपना संगीत है, लेकिन हम इस्लाम को मानते हैं और इसी वजह से चीन हम पर अत्याचार करता है।’ वह लिखती हैं कि एक बच्चे की नीति चीन में खत्म होने के बावजूद उइगरों पर विशेष नजर रखी जाती थी और जबरन गर्भपात करवाया जाता था। यह सब 1949 से  शुरू हो गया था। तब सबसे पहले बच्चों को कुरान पढ़ने से रोका गया था, फिर मस्जिद पर जाने में पाबंदी लगाई गई।
उइगर के मुसलमानों का रोना यह है कि वे चीन का बर्बर दमन झेल रहे हैं, मगर कोई भी मुस्लिम देश इसके खिलाफ एक शब्द बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। सारे मुस्लिम मुल्क ने अपने होंठ सी रखे हैं। चीन से उनके हित जुड़े हुए हैं, इसलिए वह चीन के खिलाफ आवाज नहीं उठाता। पाकिस्तान का तो कहना ही क्या? लोग मजाक में उसे चीन का 24वां प्रांत कहने लगे हैं। मुस्लिम देश भले ही चुप हों, मगर अमेरिका के कुछ सांसदों ने आवाज उठाई कि रोहिंग्या मुस्लिमों के समर्थन में वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व करने वाले पाकिस्तान, तुर्की और खाड़ी देशों की चीन में उइगर मुस्लिमों के दमन पर चुप्पी आक्रोशित करने वाली है। कहावत है ‘समरथ को नहीं दोष गुसाई।’ यह चीन के बारे में भी बिल्कुल सच है। हर जगह ‘इस्लाम खतरे में है’ का नारा लगाने वाले मुसलमान चीन के खिलाफ आरोप लगाने की हिम्मत नहीं कर पाते। ‘चीन के ज्यादातर मुस्लिम देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं।
शिनजियांग में जो हो रहा है, उसको लेकर मुस्लिम दुनिया जान-बूझकर मूकदर्शक बनी रहती है। इसलिए भी कि वहां चीन जैसा शक्तिशाली देश है। वहां विरोध का तभी अर्थ है, जब चीन उसको अत्याचार माने। लेकिन म्यांमार में जब रोहिंग्याओं पर अत्याचार होता है, तो पूरे मुस्लिम जगत से लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ की सारी संस्थाएं एकजुट हो जाती है, लेकिन 10 लाख से ज्यादा उइगुर मुसलमानों के खिलाफ जो चीनी बर्बरता बरती जा रही है, इस पर मुस्लिम देश चुप हैं। जाहिर है कि चीन एक उभरती हुई आर्थिक ताकत है, जिसके साथ सबके रिश्ते हैं। दुनिया भर के देशों द्वारा मानवाधिकार पर आलोचना किए जाने को चीन दूसरे देशों के मामले में दखल बताता है। कुछ विदेशी सरकारों ने तो शिनजियांग पर बोलने से इनकार कर दिया है क्योंकि उन्हें डर है कि ज्यादा चर्चा करने या बयानबाजी से चीन नाराज हो सकता है। दरअसल, दुनिया के कई देशों में चीन ने काफी निवेश कर रखा है। इस चुप्पी में पश्चिमी देशों का आवाज उठाना महत्त्वपूर्ण है।

सतीश पेडणेकर


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