सरोकार : समाज ट्रांसजेंडर्स के प्रति बदले व्यवहार

Last Updated 18 Nov 2018 03:40:46 AM IST

हाल में छत्तीसगढ़ की वीणा सेंद्रे ने देश की पहली ट्रांस ब्यूटी क्वीन का खिताब जीता है। इस प्रतियोगिता में अलग-अलग राज्यों से ट्रांसजेडर्स शामिल हुई थीं।


सरोकार : समाज ट्रांसजेंडर्स के प्रति बदले व्यवहार

यह ब्यूटी कॉन्टेस्ट पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की गई। ट्रांसजेंडर्स समुदाय को संवैधानिक मान्यता के बाद से इस स्पर्धा का दायरा बढ़ा है। कुछ समय पहले केरल में ट्रांसजेंडरों के लिए जी-टैक्सी सर्विस शुरू की गई जिसमें टैक्सी के मालिक ट्रांसजेंडर होंगे। इसे चलाने का जिम्मा भी उनका होगा। इससे पहले चैन्नई की वीके पृथिका देश की पहली ट्रांसजेंडर पुलिस सब-इंस्पेक्टर बनीं। पिछले साल गंगा कुमारी राजस्थान पुलिस में पहली ट्रांसजेंडर महिला कांस्टेबल बनीं। हाल में सत्यश्री शर्मिंला देश की पहली ट्रांसजेंडर वकील बनीं। बीते साल जोयिता मंडल देश की पहली ट्रांसजेंडर जज बनी थीं।   
हालिया समय में ऐसे सुखद उदाहरण बताते हैं कि ट्रांसजेंडर्स समाज की मुख्यधारा में सम्मान और अधिकार हासिल करने के लिए अपने बूते पहचान बना रहे हैं। र्थड जेंडर को कानून से जो बराबरी का हक मिला है, उसे धीर-धीरे ही सही सामाजिक स्वीकार्यता मिल रही है। यह रेखांकित किए जाने योग्य बदलाव है कि अनगिनत बाधाओं और भेदभावों के बावजूद र्थड जेंडर के लोग आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि उनके मानवाधिकारों को लेकर दुनियाभर में लंबे समय से बहस जारी है। भारत में 2014 में ऐतिहासिक फैसले में उच्चतम न्यायालय र्थड जेंडर को तीसरी लिंग श्रेणी की मान्यता दी थी। न्यायालय ने ट्रांसजेंडर्स को शिक्षण संस्थाओं और नौकरियों में आरक्षण देने की भी बात कही थी। 

गौरतलब है कि 2011 की जनगणना में इस समुदाय के लोगों की गिनती अन्य में की गई थी, जिसके आंकड़े जारी नहीं किए गए पर गैर-सरकार संगठनों की मानें तो किन्नरों की आबादी 5 लाख तक होने का अनुमान है। वैसे तो हमारे संविधान के जरिए सुनिश्चित है कि धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव ना हो। लेकिन समाज में हमेशा से हाशिये पर रहे इस समुदाय की सामाजिक स्वीकार्यता को लेकर आमजन की मानसिकता में आज भी बड़ा बदलाव नहीं आया है। हालांकि अपनी काबिलियत के बल पर इस समुदाय के लोगों ने भी अपनी अलग पहचान बनाई है। हैदराबाद की शबनम मौसी देश की पहली ट्रांसजेंडर एमएलए तो छत्तीसगढ़ की मधु किन्नर मेयर बन चुकी हैं। कुछ समय पहले एक और नाम सुर्खियों में आया जब र्थड जेंडर समुदाय से आने वाली पद्मिनी प्रकाश ने न्यूज एंकर की नौकरी हासिल की थी। दरससल, र्थड जेंडर के लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाना ही उनको सबसे अधिक पीड़ा देता है। इसलिए समाज की सोच में बदलाव आना जरूरी है। उनके प्रति आमजन का असहयोगी और अशोभनीय व्यवहार देखने को मिलता है। जरूरी है कि समाज के इस वर्ग को भी सामाजिक परिवेश से लेकर कार्यस्थल तक मान और अधिकार मिलें।
समाज के हाशिये पर पड़े इस तबके को भी मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। इसके लिए क्षमता और योग्यता के मुताबिक काम पाने का सहज माहौल मिलना चाहिए। यकीनन, प्रशासनिक सक्रियता और सामाजिक व्यवहार का परिवर्तन ट्रांसजेंडर्स का सम्मान और अधिकार, दोनों बनाए रख सकता है। जिस  हिम्मत के साथ इस समुदाय से कई चेहरे आगे आ रहे हैं, उनका मनोबल बनाए रखने के लिए इतना करना समाज की नैतिक जिम्मेदारी भी है।

डॉ. मोनिका शर्मा


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