मुद्दा : संसद, विधानसभाओं में भूतबाधा!

Last Updated 06 Mar 2018 02:56:12 AM IST

देश में वैज्ञानिक चिंतन के प्रति प्रतिबद्धता जारी रखने के लिए संसद ने भले ही साठ साल पहले संविधान में धारा 51 ए को जोड़ा हो, भले ही यह राज्य पर वैज्ञानिक एवं तार्किक सोच को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी डालता हो, मगर उसी मुल्क की अलग अलग विधानसभाओं या उनाके सदस्यों में इन दिनों भूत-प्रेत की सायाओं की चर्चा जोर पकड़ती दिख रही है.


मुद्दा : संसद, विधानसभाओं में भूतबाधा!

मध्य प्रदेश विधानसभा में 3 दिसम्बर, 2017 को 14वीं विधानसभा के चार सालों में 9 सदस्यों के असमय निधन की चर्चा करते हुए सदस्यों ने विधानसभा भवन में ‘वास्तुदोष’ की चर्चा की. किसी ने यह भी याद दिलाया कि इसी विधानसभा में 21 जुलाई, 2016 को सीहोर जिले में हुई आत्महत्याओं पर प्रस्तुत सवाल के लिखित उत्तर में सरकार ने बताया था कि इन आत्महत्याओं में से ‘कुछेक लोगों ने भूत-प्रेत के कारणों से आत्महत्या की है.’ मध्य प्रदेश में उठी चर्चा थमी ही थी कि बिहार सरकार के पूर्व काबिना मंत्री तेजप्रताप ने यह कह कर सनसनी फैला दी कि उनके बंगले में ‘भूत छोड़े गए हैं’ जिसके लिए उन्होंने सरकार को जिम्मेदार ठहराया. राजस्थान विधानसभा में कुछ सदस्यों ने तो बाकायदा कहा कि ‘विधानसभा में बुरी आत्माओं का साया है. तभी तो आज तक सदन में 200 विधायक एक साथ नहीं रहे. कभी किसी की मौत हो जाती है, कभी किसी को जेल. आत्माओं की शांति के लिए हवन और पंडितों को भोजन कराने की जरूरत है.’ एक वरिष्ठ सदस्य ने कमेटी बना कर भूत-प्रेतों की जांच कराने की मांग की. यह सलाह भी दी कि रात के बारह बजे के बाद यहां पर चर्चा जारी न रखी जाए क्योंकि उसके बाद ‘भूत-प्रेत विचरने लगते हैं’ तो किसी अन्य सदस्य ने बाकायदा एक तांत्रिक को बुला कर चार घंटे तक उससे विधानसभा भवन का मुआयना करवाया और उससे सलाह ली.

राजस्थान, मध्य प्रदेश के अपने सहमना विधायकों के एक कदम आगे जाने का काम कुछ माह पहले गुजरात के तत्कालीन शिक्षा मंत्री भूपेन्द्र सिंह चूडासमा और तत्कालीन सामाजिक न्याय मंत्री आत्माराम परमार के नाम दर्ज रहेगा, जो पिछली गुजरात सरकार में मंत्री थे. 2017 के मध्य में उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें भरी सभा के सामने तांत्रिक अपना कारनामा दिखा रहे थे, पीछे संगीत की धुन चल रही थी, वह अपने को लोहे की जंजीरों से पीट रहे थे और जनता ही नहीं, बल्कि सूबा गुजरात के उपरोक्त दोनों मंत्री उस नजारे को देख रहे हैं. बाद में दोनों मंत्री ‘झाड़ फूंक करने वालों’ के सम्मान समारोह में-जिसमें वह करीब सौ ओझाओं से हाथ मिलाते भी दिखे. 
स्पष्ट है कि उनका आचरण भारतीय संविधान की मूल भावना के प्रतिकूल था, जो धारा 51 ए /एच/में स्पष्ट करती है कि यह सभी नागरिकों की बुनियादी जिम्मेदारी होगी ‘वैज्ञानिक चिंतन, मानवता और अनुसंधान को विकसित करेंगे.’ बाद में जब हंगामा हुआ तो उन्होंने ‘दैवी शक्ति के उपासकों’ से मिलने की बात कह कर अपना बचाव किया. गनीमत थी कि उनकी इस सहभागिता को लेकर दलितों और अन्य उत्पीड़ित तबकों ने विरोध किया, जिसमें उनका कहना था कि एक तरफ ग्रामीण गुजरात ऐसे हजारों तांत्रिकों/ओझाओं के चंगुल में फंसे हैं-जो अंधश्रद्धा से युक्त तमाम कारनामों को अंजाम देते हैं-वहीं संविधान की कसमें खाए मंत्री उन्हें महिमामंडित करते हैं. भूत-प्रेत पर यकीन या अंधश्रद्धा के मामले में सांसद भी पीछे नहीं दिखते. मिसाल के तौर पर कुछ साल पहले संसद में एक चर्चा में एक तथ्य उजागर हुआ था कि वर्ष 2001 से संसद से महज आधा किमी. दूरी पर बना एक सांसद आवास लगभग सुना पड़ा है. कोई भी सांसद उसमें रहना नहीं चाहता. वजह इसी आवास में सांसद रहते हुए फूलन देवी की हत्या हुई थी. जादूटोना पर पाबंदी विधेयक, 2010 को लेकर संसद में चली चर्चा में यह तथ्य उजागर हुआ था.
वैसे जिस समाज में जनता के चुने सदस्य-संविधान में ली गई शपथ के विपरीत आचरण करते दिखते हों, उस समाज के मानस को बदलने के लिए हमें कितनी मेहनत करनी पड़ेगी, यह विचारणीय मसला है. और संसद विधानसभाएं ही नहीं खुद न्यायपालिका भी कई बार संविधान के बुनियादी उसूलों के हिसाब से स्पष्ट स्टैंड लेने से बचती दिखती है. इस प्रसंग पर लिखे अपने आलेख ‘क्या सरकारी भूमि पूजन उचित है?’ लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता राम पुनियानी ने कुछ महत्वपूर्ण मसले उठाए थे. उनका कहना था कि शासकीय कार्यक्रमों में किसी धर्मविशेष के कर्मकांडों का स्वीकार संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है.

सुभाष गाताडे


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