ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट : करना होगा आत्ममंथन

Last Updated 06 Mar 2018 03:03:48 AM IST

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रैंकिंग भारत के लिए कोई अच्छी खबर नहीं लाई है. 2017 के लिए दुनियाभर के 180 देशों में भारत को 81वां स्थान मिला है.


ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट : करना होगा आत्ममंथन

कहा जा सकता है कि भारत कम से कम दुनिया के ज्यादा भ्रष्ट 99 देशों से ऊपर तो है. किंतु इसका दूसरा सच यह है कि 2016 की रैंकिंग में भारत को 79वां स्थान मिला था. इस आधार पर देखा जाए तो हम दो अंक और नीचे गिरे हैं. 
इसके कई अर्थ निकाले जा सकते हैं जिनमें सबसे प्रमुख यही है कि सरकार के तमाम दावों व कोशिशों के बावजूद दुनिया की नजर में हमारी छवि अभी भी एक भ्रष्ट देश की है. भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत को 100 में से 40 अंक मिलना भी हमें सांत्वना नहीं दे सकता क्योंकि पिछले साल इसे इतने ही अंक मिले थे. ध्यान रखिए कि जिस देश को जितने ज्यादा अंक मिलते हैं, वह उतना कम भ्रष्ट माना जाता है. निश्चित ही भारतीय होने के नाते हमारी चाहत होगी कि हम भी कभी दुनिया के सबसे कम भ्रष्ट पांच देशों में शुमार हों. किंतु यह मंजिल तब से हम से दूर है, जब से ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने देशों का क्रम व सूचकांक जारी करना शुरू किया. हालांकि कौन देश कितना भ्रष्ट है, इसका एकदम सटीक आकलन नहीं हो सकता.

किसी संस्था के सर्वेक्षण करने की सीमाएं हैं. संभव नहीं कि किसी देश की एक-एक संस्था का सविस्तार अध्ययन कर लिया जाए. वास्तव में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की सूची  जटिल है जिसमें अलग-अलग संस्थानों के जरिए जुटाए आंकड़ों के आधार पर भ्रष्टाचार का अनुमान लगाया जाता है. कई बार आकलन करने वालों की अपनी राजनीतिक विचारधारा भी होती है, जिसका कुछ असर तो रिपोर्ट पर पड़ता है. किंतु यह इस समय दुनिया भर में मान्य हो गई है. इसमें विश्व बैंक, विश्व आर्थिक मंच और ऐसे दूसरे संगठनों द्वारा तैयार आंकड़ों के साथ विश्लेषकों, कारोबारियों और विशेषज्ञों के आकलन और अनुभवों को आधार बनाया जाता है. इतना ही नहीं इसमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के लिए काम की आजादी जैसी कसौटियां भी अपनाई जाती हैं. इस तरह यह एक विसनीय रिपोर्ट बन जाती है. हम इस  पर जो भी प्रतिक्रिया व्यक्त करें लेकिन दुनिया इसके प्रिज्म से हमें देख सकती है. इस नाते हर भारतीय के लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि भ्रष्टाचार के विरु द्ध लगातार चोट करने के दावों के बावजूद हमारा क्रम क्यों नहीं सुधर रहा? उतने अंक क्यों नहीं मिल रहे, जिससे दुनिया में हम सिर उठाकर कह सकें कि देखो, हमारे देश में भ्रष्टाचार कितना कम हो गया है? आखिर, वह दिन कब आएगा? ऐसा नहीं है कि भारत सरकार ने भ्रष्टाचार को कम करने की कोशिशें नहीं की हैं. हां, ट्रांसपेरेंसी के आकलन से साफ है कि यह सब पर्याप्त नहीं है. नोटबंदी पर इस संस्था ने पिछले साल ही टिप्पणी कर दी थी. इसका मानना था कि यह भ्रष्टाचार पर कोई असर डाल सकी है, या नहीं, कोई अंदाजा नहीं मिल रहा. कहना न होगा कि ट्रांसपेरेंसी तथा जिन विश्लेषणों और आंकड़ों के आधार पर वह सूचकांक व क्रम बनाती है, उन सबका आकलन यही है. वस्तुत: भारत में भ्रष्टाचार कोई ऐसा छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि किसी रिपोर्ट के आधार पर इसकी पुष्टि हो सके.
भ्रष्टाचार के मामले में आम आदमी के लिए स्थितियां बदल गई हों, ऐसा नहीं है. शीर्ष स्तर पर भी भ्रष्टाचार पर नजर रखने के उद्देश्य से लोकपाल कानून बन गया लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया में विपक्ष के नेता का प्रावधान होने से यह आज तक लटका हुआ है. निकट भविष्य में लोकपाल की नियुक्ति होने के आसार नहीं हैं. आपके अनुभव की बात है कि आम आदमी को सामान्य सरकारी कार्यों के लिए कहां-कहां किस तरह न चाहते हुए घूस देना पड़ती है. हालांकि भारत में विपक्षी नेताओं को काम करने की आजादी में कोई बाधा नहीं है. पत्रकारों को भी स्थानीय स्तरों पर कुछ समस्याएं आती हैं, पर कुल मिलाकर पत्रकारीय आजादी हमारे यहां अन्य अनेक देशों से बेहतर है. इसलिए प्रेस की आजादी के मामले में भारत को कमजोर बताने की बात से पूरी तरह सहमत नहीं हुआ जा सकता. इस मामले में फिलीपींस और मालदीव जैसे देशों की श्रेणी में भारत को रखना भी स्वीकार करने योग्य तथ्य नहीं है. किंतु इसके परे जो कुछ है, उसे नंगी आंखों कोई भी देख सकता है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट पर प्रश्न उठाने वाले क्या इस बात से इनकार कर सकते हैं कि भारत में जिसके पास प्रभाव और पैसा है, उसके लिए किसी काम में कोई बाधा नहीं और जो इससे वंचित हैं, उनके लिए बाधा ही बाधा? तो जब तक यह स्थिति दूर नहीं होगी हमारी रैंकिंग और अंक सुधरेंगे कैसे? क्या सच नहीं है कि हमारे यहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तक को प्रभाव और पैसे वालों ने खोखला कर दिया है? इसी समय जो बैंकिंग घोटाले सामने आ रहे हैं, और जिस तरह डूबत कजरे के आंकड़े आ रहे हैं, उनके आलोक में भारत की कैसी छवि बनेगी? अभी हाल ही में भारत में स्वास्थ्य सेवा पर एक रिपोर्ट आई है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह निजी अस्पताल मरीजों से तय मूल्यों से कई गुणा ज्यादा पैसा ऐंठते हैं. इन सारी स्थितियों के रहते हमारी रैंकिंग और अंक सुधर नहीं सकते.
जाहिर है, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट हमें आत्मसमीक्षा करके भ्रष्टाचार के विरुद्ध समग्र व्यापक अभियान के लिए प्रेरित करने वाली होनी चाहिए. भ्रष्टाचार का एक पक्ष कानूनी अवश्य है जिसमें सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रश्न भी है. भ्रष्टाचार में आचार शब्द है, जिसका आशय हमारे आचरण से है. सब कुछ हमारे आचरण पर निर्भर करता है. कठोर नियम-कानूनों तथा उनको समुचित तरीके से लागू करने वाली एजेंसियों को सक्रिय करने के साथ समाज का मानस बदलने की भी आवश्यकता है. समाज में भ्रष्टाचार के विरु द्ध सामूहिक घृणा का भाव पैदा करने के लिए सतत जनजागरण अभियान चलाना होगा. ऐसा किया गया तो निश्चय मानिए इसी ट्रांसपेरेंसी संस्था को अपनी सूची में भारत को ऊपर लाना होगा. क्या सरकारें तथा हमारे-आपके जैसे जागरूक  नागरिक इसके लिए तैयार हैं?

अवधेश कुमार


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