कनाडा : ट्रूडो का विवादित दौरा
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की एक सप्ताह की भारत यात्रा में जो भी समझौते हुए उनका औपचारिक महत्त्व जो भी हो, पर देश का ध्यान दो बातों की ओर ज्यादा रहा.
कनाडा : ट्रूडो का विवादित दौरा |
एक, खालिस्तान समर्थक व्यक्ति के साथ मुंबई में उनकी पत्नी की तस्वीर और उच्चायोग द्वारा दिए गए रात्रिभोज में उसे आमंत्रित किया जाना. दूसरा, कनाडाई मीडिया का यह आरोप कि भारत ने उनके प्रधानमंत्री को वैसा महत्त्व नहीं दिया जैसा वे अन्य देशों के नेताओं को देते हैं. वास्तव में ट्रूडो के स्वागत के लिए मुंबई में कनाडाई उच्चायोग की तरफ से दिए गए रात्रिभोज में काफी पहले घोषित खालिस्तानी आतंकवादी जसपाल अटवाल को आमंत्रित किया गया था. भारत की कड़ी आपत्ति के बाद इस निमंतण्रको रद्द कर दिया गया. विवाद तूल पकड़ने के बाद स्वयं ट्रूडो ने बयान दिया कि अटवाल को यह निमंतण्रनहीं मिलना चाहिए था.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मुलाकात में उन्होंने साफ किया कि कनाडा एकीकृत भारत का समर्थन करता है और यहां की विविधता की इज्जत भी. दोनों नेताओं की संयुक्त पत्रकार वार्ता में मोदी ने जिस सख्त लहजे में देश तोड़ने की कामना रखने वालों के लिए कोई जगह नहीं होने की बात कही थी, उससे साफ था कि वो कनाडा के प्रधानमंत्री को क्या संदेश देना चाहते हैं? कहा जा सकता है कि भारत की भूमि पर कनाडा के प्रधानमंत्री से हमने जो चाहा उनको कहना पड़ा, लेकिन इसके साथ कई सवाल खड़ा होते हैं, जिनका जवाब ढूंढा जाना आवश्यक है. जस्टिन ट्रूडो के बारे में माना जाता कि अपने देश की राजनीति के कारण वे खालिस्तान भावना के प्रति सहानुभूति रखते हैं. उनकी सरकार में चार सिख मंत्री हैं. हालांकि 1980 के दशक में उभरा हिंसक खालिस्तान आंदोलन अब समाप्तप्राय है, लेकिन कुछ अवशेष अभी जहां बचे हुए हैं, उनमें कनाडा एक है. यह बात यहां जानना जरूरी है जैसा कनाडा की ओर से स्पष्ट किया गया कि अटवाल प्रधानमंत्री के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा नहीं था.
अटवाल ने कहा भी कि वह अपने स्तर पर भारत आया है. ट्रूडो की पत्नी सोफिया के साथ उसकी तस्वीर में जो निकटता दिख रही है, उससे इतना तो लगता है कि उस परिवार तक किसी तरह उसकी पहुंच है. एक अन्य तस्वीर में वह ट्रूडो के मंत्री अमरजीत सोही के साथ भी दिखाई दिया. उसी तरह कनाडाई उच्चायोग का निमंतण्रभी साबित करता है कि वहां की सत्ता में उसका कुछ दखल तो है. हालांकि कनाडा के ही एक सांसद रणदीप एस. सराय की सिफारिश पर ट्रूडो के रात्रिभोज में अटवाल को आमंत्रित किया था. उन्होंने इसे स्वीकार करते हुए माफी भी मांगी है. जाहिर है, इस पर विवाद उभरने के बाद कनाडा का प्रधानमंत्री कार्यालय तेजी से सक्रिय हुआ और उसकी पूरी जानकारी ली, बयान जारी किया और यह मानने का पर्याप्त आधार है कि रणदीप सराय को भी स्पष्टीकरण देने और माफी मांगने के लिए तैयार किया होगा. भारत का इस मामले में कड़ा स्टैंड बिल्कुल उचित है. अगर आप हमारे साथ रिश्ता रखना चाहते हैं तो हमारी भावनाओं का ध्यान आपको रखना होगा. नहीं रख सकते तो फिर संबंध का कोई मायने नहीं है.
प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में जब कनाडा का दौरा किया था तो उन्होंने क्यूबेक अलगाववादियों को तो अपने साथ कहीं नहीं रखा. इसका ध्यान जस्टिन ट्रूडो और उनकी यात्रा का कार्यक्रम बनाने वाले अधिकारियों-मंत्रियों को रखना चाहिए था. सवाल यह भी उठता है कि आखिर अटवाल को भारत आने की अनुमति कैसे मिली? यदि भारत की नजर में वह आतंकवादी है तो उसे वीजा नहीं मिलनी चाहिए थी. बिना वीजा के तो कोई भारत में प्रवेश नहीं कर सकता. जब आप वीजा दे देते हैं तो फिर दूसरे देश के नेता और अधिकारी कैसे मान लें कि आपके यहां उसके बारे में क्या धारणा है? विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने इस संबंध में कोई साफ जवाब भी नहीं दिया, केवल यह कहा कि इसकी जांच कराई जाएगी कि उसे वीजा कैसे मिला? अगर भारत में उसके खिलाफ कोई मामला लंबित है तो उसे गिरफ्तार भी किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दरअसल, यह किसी को पता ही नहीं कि उसके खिलाफ कोई मामला है भी या नहीं.
यहां यह जानना जरूरी है कि पंजाब सरकार और एजेंसियों से सलाह लेकर केंद्र खालिस्तान समर्थकों की काली सूची का समय-समय पर पुनरीक्षण करता है. फिलहाल, अटवाल इस सूची में नहीं है. ध्यान रखिए, पिछले कुछ वर्षो में ऐसे 150 लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं, जो कभी हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे थे. एक बार काली सूची से नाम हटाने के बाद कोई दुनिया के किसी भी देश में पूरी आजादी के साथ यात्रा कर सकता है. यहां तक कि वो भारत भी आ सकता है और अटवाल भी इसी कारण भारत आ गया. जाहिर है, हमारे कड़े तेवर तो ठीक हैं, लेकिन हमें भी अपनी नीति की समीक्षा की जरूरत है. अगर हम किसी को काली सूची से हटाते हैं तो फिर उसके बारे में हमारी नीति क्या होगी? इसके बारे में भारत की ओर से दुनिया के सामने साफ किया जाना चाहिए कि फलां-फलां व्यक्तियों को अब हमने काली सूची से हटा दिया है लेकिन उनकी पृष्ठभूमि के कारण संबंध रखने में सतर्कता बरती जाए. यह कार्य कनाडा में रह रहे पूर्व खालिस्तानी सक्रियतावादियों के संदर्भ में नहीं किया गया. बहरहाल, जब से जगे तभी सबेरा की कहावत को ध्यान में रखते हुए भारत को इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए. कनाडा के प्रधानमंत्री को सबक मिल गया है और उम्मीद है अपनी घरेलू राजनीतिक मजबूरियों के बावजूद वे इस मामले में भारत की भावनाओं का ध्यान रखेंगे.
अब आइए दूसरे विवाद की ओर. कनाडा मीडिया ने यह मुद्दा बना दिया कि ट्रूडो जब गुजरात गए तो मोदी उनके साथ वहां नहीं गए थे. यहां तक कि हवाई अड्डे पर अगवानी के लिए भी मोदी नहीं थे. प्रोटोकॉल में कहीं नहीं है कि प्रधानमंत्री हवाई अड्डे पर आने वाले नेता की अगवानी करें या उनकी साथ यात्रा में रहे हीं. ट्रूडो ने अपनी यात्रा को स्वरूप ही ऐसा दिया था, जिसमें मोदी के साथ उनके होने की संभावना अत्यंत कम थी. उनकी यात्रा का सरकारी स्वरूप बनते ही उन्हें राष्ट्रपति भवन में गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने अगुवाई करते हुए ट्रूडो और उनके पूरे परिवार का स्वागत किया. जहां महत्त्व दिया जाना था पूरा दिया गया.
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