स्वास्थ्य बीमा
किसी भी देश का मानव संसाधन सर्वाधिक सशक्त, सक्षम और उपयोगी तभी हो सकता है, तब वह स्वस्थ होने के साथ-साथ अपने व अपने परिवार के सुरक्षित भविष्य के प्रति भी आश्वस्त हो.
स्वास्थ्य बीमा |
सम्भवत: इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट 2018 के अन्तर्गत एक महात्वाकांक्षी ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ की रूपरेखा प्रस्तुत की है. प्रस्तावित योजना के अंतर्गत लगभग 10 करोड़ निर्धन व संसाधनहीन परिवारों को प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक की चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के प्रावधान हैं. एक तरह से यह पहले से ही उपलब्ध ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ का विस्तारित संस्करण प्रतीत होती है.
तथापि, दो स्तरों पर यह ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ से भिन्न होगी. ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ के अंतर्गत सिर्फ बीपीएल रेखा के नीचे के परिवारों को लाभार्थी परिवारों के रूप में चयनित किए जाने का प्रावधान था, तो वहीं प्रस्तावित योजना के अंतर्गत देश की कुल जनसंख्या के लगभग 40 प्रतिशत लोगों को सम्मिलित करने का लक्ष्य है, जो भारत के कुल बीपीएल परिवारों की संख्या से प्राय: 10 प्रतिशत अधिक है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना को कई देशों ने भी थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ सैद्धांतिक व व्यावहारिक प्रारूप में अपनाया है. परंतु विडम्बना रही कि 2008 में शुरू की गई तथा 31 मार्च, 2017 तक 36,332,475 सक्रिय स्मार्ट कार्ड्स और 14,084,587 चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने वाली यह बीमा योजना विभिन्न कारणों से प्राय: 2014 से ही निरंतर पतन का शिकार रही. विभिन्न राज्यों में इसकी सफलता का स्तर अलग-अलग रहा है परंतु आम तौर पर इसने देश में सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में आशाओं व संभावनाओं की अलख तो जगा ही दी थी. इस योजना ने जिन चुनौतियों तथा समस्याओं का सामना किया है, उनमें तकनीकी समस्याओं के साथ-साथ भ्रष्टाचार, कुछ चिकित्सालयों व लाभार्थियों द्वारा स्मार्ट कार्ड्स का गलत उपयोग, योजना में सम्मिलित बीमा कंपनियों, चिकित्सालयों व तृतीय पक्ष संस्थाओं (टीपीए/र्थड पार्टी ऐजेंसीज) के बीच तारतम्य व समन्वय का अभाव, कुछ राज्य सरकारों व संबद्ध विभागों में योजना के क्रियान्वयन के प्रति इच्छाशक्ति व उत्साह की कमी, ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्रों में जरूरी आधारभूत ढांचे का अभाव, यातायात हेतु सड़कों व परिवहन के साधनों की कमी इत्यादि प्रमुख रही हैं. इनके आलोक में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को व्यापक स्तर पर ठोस ढंग से लागू करने के लिए जरूरी है कि उपरोक्त योजनाओं की असफलता के लिए उत्तरदायी रहीं चुनौतियों व समस्याओं की व्यवहारपरक समीक्षा करते हुए सकारात्मक वातावरण का निर्माण करने के बाद ही इसका क्रियान्वयन किया जाए.
प्रस्तावित योजना का विशाल कलेवर देखते हुए हम इसके लिए जरूरी वित्तीय संसाधनों के बारे में अनुमान लगाएं तो बीमा बाजार में उपलब्ध स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के आधार पर कम से कम प्रति परिवार प्रति वर्ष 3000 रुपये के प्रीमियम की जरूरत होगी. इस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर 10 करोड़ परिवारों के लिए प्रति वर्ष लगभग 300 अरब रुपये के भारी भरकम बजट की जरूरत होगी जिसमें से 40 प्रतिशत या 120 अरब रुपये राज्य सरकारों को वहन करने होंगे. परंतु इसे सफलतापूर्वक लागू किया जा सके तो निश्चित तौर पर यह योजना प्रति वर्ष निर्धनता रेखा के नीचे चले जाने वाले परिवारों के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक भविष्य बेहतर ढंग से सुरक्षित बनाने में सक्षम है क्योंकि मध्यम, निम्न मध्यम तथा निम्न वगरे के आर्थिक-सामाजिक उत्थान में नियमित व आकस्मिक चिकित्सकीय खच्रे बड़ी बाधा रहे हैं.
2017 तक के संस्थागत आंकड़े बताते हैं कि भारतीय परिवारों को 62 प्रतिशत से अधिक चिकित्सा खर्च स्वयं ही वहन करना होता है, जबकि यूरोपीय संघ सहित अमेरिका व ब्रिटेन में यह मात्र 20-25 प्रतिशत है. 15 मार्च 2017 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अपनाई गई राष्ट्रीय स्वास्थ नीति, 2017 में देश के प्रत्येक नागरिक को स्वास्थ्य सुरक्षा चक्र के दायरे में ले आते हुए गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएं उप्लब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था. 2018 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को प्रस्तुत करना इस संदर्भ में मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है. ऐसे में ऐसा विश्वास किया जा सकता है कि आने वाले समय में भारत स्वास्थ्य सेवाओं तथा इनके माध्यम से सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में शेष विश्व के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने में सक्षम होगा.
| Tweet |