क्रिकेट : ..तो ऐसे ही हारेंगे

Last Updated 20 Jan 2018 06:36:30 AM IST

वेस्टइंडीज और उपमहाद्वीप में लगातार नौ टेस्ट सीरीज जीतने वाली विराट कोहली की अगुआई वाली टीम इंडिया के सामने साल की पहली चुनौती दक्षिण अफ्रीका में पहली बार सीरीज जिताना था पर इस लक्ष्य को पाने में टीम इंडिया असफल हो गई है.


..तो ऐसे ही हारेंगे

भारतीय टीम सेंचुरियन टेस्ट हारने के साथ तीन टेस्ट की सीरीज में से पहले दो टेस्ट गंवाकर सीरीज हार चुकी है.
हार की निराशा में भले ही कप्तान मैच के बाद के संवाददाता सम्मेलन में पत्रकार से बहस में उलझ गए हों, पर इस सच को झठलाया नहीं जा सकता है कि विराट टीम चयन में मनमानी करते रहे हैं. यही नहीं भारतीय बल्लेबाजों ने एक बार फिर दिखाया कि दक्षिण अफ्रीका जैसे विकेट पर खेलने के लिए हम अब तक तैयार नहीं हो सके हैं. भारतीय टीम को तैयारी मैच से तैयार होने का मौका मिला था पर उसने इस मैच को ही रद्द करा दिया. यह मन में अहम आने का परिणाम है. अनुकूल माहौल में एक के बाद एक जीत हासिल करने से कप्तान कोहली और कोच रवि शास्त्री के मन में यह गुमान आ गया कि वह जो भी फैसला करेंगे वह सही है. उपमहाद्वीप में खेले टेस्ट मैचों में टीम चयन में किए गए मनमाने फैसले सही साबित हो गए. लेकिन दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के फैसले टीम के लिए घातक साबित हुए. पहले शायद ही कभी हुआ हो कि जिस खिलाड़ी को टेस्ट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी माना जाता हो और उसका अंतिम एकादश में चयन ही न हो. अजिंक्य रहाणे टेस्ट के विशेषज्ञ खिलाड़ी माने जाते हैं और उन्हें पहले टेस्ट में नहीं खिलाया गया. हद तब हो गई, जब पहले टेस्ट में हारने के दौरान उनकी जगह खिलाया गया खिलाड़ी असफल रहने पर भी उन्हें दूसरे टेस्ट में भी बाहर बैठाए रखा गया. यही नहीं भारतीय तेज गेंदबाजों में भुवनेश्वर कुमार ने पहले टेस्ट में सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी की पर उन्हें दूसरे टेस्ट में बैठा दिया गया.

विराट ने यदि इन गलतियों से सीख नहीं ली तो इस साल ही इंग्लैंड दौरे पर भी टीम को पापड़ बेलने पड़ सकते हैं. दशकों से सुनते आ रहे हैं कि भारतीय बल्लेबाज दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के मूव करने वाले विकेट पर अच्छी बल्लेबाजी नहीं कर पाते हैं और लगता है कि स्थिति वैसी ही बनी हुई है. विराट सेना के शूरवीरों से यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि भारतीय बल्लेबाजों के बारे में बनी इस धारणा को इस बार वह बदल देंगे. लेकिन लगता है कि हालात में कोई सुधार नहीं हो सका है. पहले टेस्ट में तेज और उछाल वाले विकेट पर मूव होती गेंद के सामने हम मामूली लक्ष्य को भी नहीं पा सके थे. सेंचुरियन का विकेट तो उपमहाद्वीप जैसा ही था, इस पर भी हम कमाल नहीं दिखा सके. चेतेर पुजारा के बारे में कहा जाता है कि वह विकेट पर लंगर डालकर खेलते हैं. पर वह दोनों पारियों में अपनी गलती से रन आउट होकर एक असफल सिपाही का ठप्पा लगा बैठे हैं. पहले टेस्ट में ओपनर के तौर पर शिखर धवन को खिलाने और फिर दूसरे में उन्हें बैठाने दोनों ही फैसलों की जमकर आलोचना हुई. वजह पहले तो उन्हें मौका देना बनता नहीं था और यदि दे दिया था, तो उन्हें साबित करने का मौका तो देते. भारतीय टीम दूसरे टेस्ट के आखिरी दिन 287 रन के लक्ष्य को पा लेने के लिए खेल रही थी, उस समय पुजारा और पार्थिव पटेल के खेलने के अंदाज से गेंदबाजों में निराशा थी और लग रहा था कि विराट के आउट हो जाने के बाद भी लक्ष्य को पाया जा सकता है. लेकिन पुजारा एक बार फिर अपनी कमजोरी का शिकार बन गए. वह बेवजह तीसरा रन लेने के चक्कर में रन आउट हो गए. द. अफ्रीकी टीम पूरी तरह से योजना बनाकर खेल रही थी. शुरुआत में सफलता मिलती नहीं देखकर उन्होंने शॉर्ट गेंदें फेंकने की रणनीति अपनाई और पार्थिव पुल करके कैच आऊट हो गए. इस दो विकेट से द. अफ्रीकी गेंदबाजों का भरोसा लौट आया और उन्होंने इसके सहारे भारतीय पारी को ढहा दिया.
भारतीय बल्लेबाजों में लक्ष्य पाने का जो जज्बा दिखा करता था, यह यहां नदारद था. भारतीय टीम में पिछले कुछ समय से खिलाड़ियों की फिटनेस को लेकर खासी चर्चा होती रही है. लेकिन द. अफ्रीका में टीम कैचों को लेने के मामले में बहुत कमजोर साबित हुई. इस टेस्ट के दौरान आठ कैच छोड़े गए. साहा के चोटिल होने पर खिलाए गए पटेल की विकेटकीपिंग को लेकर अच्छी धारणा कभी नहीं रही. अब टीम इंडिया के सामने 24 जनवरी से जोहांसबर्ग में शुरू होने वाले तीसरे टेस्ट में इज्जत बचाने का आखिरी मौका होगा. मगर इसके लिए विराट को सही टीम का चयन करना होगा, जिसमें रहाणे और भुवनेश्वर के साथ दिनेश कार्तिक को लेने की जरूरत पड़ेगी.

मनोज चतुर्वेदी


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