वैश्विकी : दुत्कार और पुचकार के बीच पाकिस्तान

Last Updated 07 Jan 2018 12:38:55 AM IST

पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी रुख में आए बदलाव से वैश्विक राजनीति के जानकारों को शायद ही अचरज हो.


वैश्विकी : दुत्कार और पुचकार के बीच पाकिस्तान

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव पद के लिए अभियान के दौरान ही इसके पर्याप्त संकेत मिलने लगे थे कि आने वाले दिनों में अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थितियों में अहम बदलाव हो सकते हैं. ताजा बदलाव अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों को परत-दर-परत खोलता भी है, जो सही मायने में अब तक दोनों देशों के रिश्तों को निर्धारित करने वाला कारक काबुल की सुरक्षा संबंधी मसला रहा है. ऐसा होते हुए भी राष्ट्रपति बनने के बाद जब कभी ट्रंप से पाकिस्तान पर चर्चा हुई तो उन्होंने भारतीय नजरिए से ही इस्लामाबाद को देखा.

ट्रंप भारत के इस विश्वास का पूरी तरह आदर करते हैं कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी समूहों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है. सेना और आतंकी संगठनों के बीच सांठगांठ से भी वह बखूबी परिचित हैं. इसीलिए उन्होंने माना है कि पाकिस्तान की करतूतों पर भारत ही लगाम लगा सकता है. यही वजह है कि परमाणु मोच्रे पर भारत और अमेरिका एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. वाशिंगटन परमाणु आपूर्ति समूह में भारत की सदस्यता का समर्थन करता है. दरअसल, अमेरिका भारत को परमाणु आपूर्ति समूह का सदस्य बनवा कर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को निषेध करना चाहता है. उसे इसका डर है कि इस्लामाबाद का परमाणु कार्यक्रम कभी न कभी आतंकी संगठनों के हाथ में जा सकता है. ट्रंप पाकिस्तान की आलोचना करने से पीछे हटते नहीं हैं. उन्होंने नये वर्ष की शुरुआत ही इस्लामाबाद की आलोचना से की और आरोप लगाया कि पिछले 15 वर्षो में 33 अरब डॉलर की सहायता राशि के बदले उसने अमेरिका को झूठ और छल दिया है. उनके इस ट्विट के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 1.25 अरब डॉलर से अधिक की सुरक्षा सहायता राशि पर रोक लगा दी.

यह पाकिस्तान के जले पर नमक छिड़कने जैसा है. अमेरिका के इस आरोप में सचाई है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में सक्रिय हक्कानी नेटवर्क और अफगान तालिबान को संरक्षण देता है. यह और बात है कि पाकिस्तान इन आरोपों को एक सिरे से खारिज करता रहा है. दरअसल, वह इस बात से भी ज्यादा परेशान और चिंतित दिखाई देता है कि भारत यदि परमाणु आपूर्ति समूह का सदस्य बन जाता है, तो इस क्षेत्र का शक्ति-संतुलन बिगड़ सकता है, और यह नई दिल्ली-इस्लामाबाद के बीच पहले से जारी तनाव को और बढ़ाएगा.

अमेरिका का भारत के करीब आना और पाकिस्तान को दरकिनार करने से स्वाभाविक है कि इस्लामाबाद चीन की गोद में जाकर बैठेगा. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण से वह चीन के प्रभाव में पहले से ही आ चुका है. यह ऐसी परियोजना है जिसने भारत को कूटनीतिक और सुरक्षा से संबंधित नीतियों पर नये सिरे से विचार करने के लिए मजबूर किया है. पाकिस्तान को अमेरिकी मदद रुकने के बाद बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच गलबहियां और मजबूत हो सकती हैं. इसका असर भारत की सरहद पर देखा जा सकता है. लेकिन इतना जरूर है कि भारत को सतर्क रहना होगा.

डॉ. दिलीप चौबे


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