उत्तर प्रदेश : स्वेटर नहीं स्कूली बच्चों को

Last Updated 06 Jan 2018 04:15:46 AM IST

पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि हमारे इस देश के सबसे अच्छे दिमाग स्कूलों में क्लासरूम की आखिरी बेंच पर भी मिल सकते हैं... यानी क्लास रूम की आखिरी पंक्ति पर बैठने वाले बच्चों की प्रतिभा को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.


उत्तर प्रदेश : स्वेटर नहीं स्कूली बच्चों को

मगर संसाधनविहीन यूपी के सरकारी स्कूल मिसाइलमैन के इस स्वप्न को आखिर, कैसे साकार कर पाएंगे जब वे स्कूली बच्चों को मूलभूत सुविधाएं ही मुहैया नहीं करवा पा रहे हैं.
बताते चलें कि 3 अक्टूबर, 2017 को उत्तर प्रदेश सरकार ने यह आदेश दिया कि राज्य के सरकारी स्कूलों में  पढ़ने वाले बच्चों को स्वेटर, जूते और मोजे दिए जाएंगे ताकि बच्चों को ठंड से बचाया जा सके. जानना दिलचस्प होगा कि सरकार ने इस योजना को लागू करने के लिए 300 करोड़ रुपये का बजट भी तैयार कर लिया, लेकिन स्वेटर व मोजे बच्चों तक अभी भी नहीं पहुंच पाए हैं जबकि सर्दी पूरे चरम पर पहुंच चुकी है. प्रतीत होता है कि आलस वाली ठंड और लापरवाही से भरी सर्द हवाओं ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली को जाम कर दिया है, तभी शिक्षा विभाग के अधिकारी अपनी सरकार के दिए हुए आदेश को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. इस योजना को अमली जामा पहनाने में जिस तरह की देर हो रही है, उसे देखकर लगता है कि इन स्कूली बच्चों को जब तक स्वेटर तब मिलेंगे जब तक सर्दियां शायद जा चुकी होंगी.

अब सवाल यह है कि गर्मियों में स्वेटर देने से बच्चों को क्या फायदा होगा! उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के  बेसिक शिक्षा विभाग के करीब डेढ़ लाख स्कूल हैं, और इन स्कूलों में करीब 1 करोड़ 48 लाख बच्चे पढ़ते हैं. अगर समय पर इन बच्चों को स्वेटर, जूते और मोजे उपलब्ध करवा दिए जाते तो उन्हें इस ठंड से थोड़ी राहत मिल जाती. सर्दी का मौसम में आम तौर पर कमजोर लोगों के लिए सावधानी बरतने वाला होता है, फिर स्कूल जाने वाले नन्हें मुन्ने बिना पूरी यूनीफार्म के स्कूल कैसे जाएं! शायद इसीलिए ठिठुरती सर्दी में सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या भी खासी कम नजर आ रही है.
पिछले छह वर्षो में उत्तर प्रदेश की सरकारें छह लाख बच्चों को किताबें उपलब्ध करवाने में भी नाकाम रही हैं. पिछले छह  वर्षो में 97 लाख बच्चों को स्कूल की यूनिफार्म भी पूरी उपलब्ध नहीं करवाई गई है. यही नहीं, इन बच्चों के लिए स्कूलों में बेंचों की भी बड़ी संख्या में दरकार है. विचार करने वाली बात है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराए बिना क्या हम सर्व शिक्षा अभियान को सार्थक कर पाएंगे!  
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में वर्ष 2011 से लेकर 2016 के बीच आठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते एक करोड़ 21 लाख से ज्यादा बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया.   इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के 8 करोड़ 40 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पाते. उत्तर प्रदेश के बहुत से सरकारी स्कूलों में बेंच ही उपलब्ध नहीं हैं. स्कूलों में स्वच्छता व शौचालय की स्थिति भी काफी दयनीय है. हालिया मुद्दे की बात करें तो सरकार, बच्चों को सर्दी से बचाने के लिए, सही समय पर स्वेटर तक का इंतजाम भी नहीं कर पाई है. इसे लापरवाही और लालफीताशाही न कहें तो और क्या कहें.
गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश अगर अलग से कोई देश होता तो इसकी जनसंख्या दुनिया में पांचवे नम्बर पर होती यानी इस राज्य को आप एक देश के बराबर मान सकते हैं.  ऐसे में किसी देश में अगर शिक्षा व्यवस्था का यह हाल हो तो फिर इस मुद्दे को हल्के में कतई नहीं लिया जाना चाहिए. अब आप खुद ही सोचिए कि विगुरु बनने का सपना देखने वाले देश में बच्चे किन स्थितियों में स्कूल छोड़ रहे हैं, और हमारा सिस्टम कैसे लापरवाही में डूबा हुआ है.  एक और सरकार पूरा जोर लगाकर ‘स्कूल चलो’ का नारा बुलंद करती है, लेकिन जब बुनियादी सुविधाएं ही नहीं होंगी तो बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे? कैग की रिपोर्ट बताती है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था की नींव कितनी खोखली है. और जब नींव ही खोखली होगी तो उस पर एक मजबूत इमारत की कल्पना कैसे की जा सकती है! बच्चे देश का भविष्य होते हैं, लेकिन उनका वर्तमान इतना कष्टदायक नहीं होना चाहिए क्योंकि कष्ट में पलने वाले बच्चे अक्सर बड़े होकर कठोर हो जाते हैं. इसीलिए हमें इस तस्वीर को बदलना होगा. यह काम मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं.

पूनम नेगी


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