मुद्दा : आतंक से मुक्त हो दुनिया
दुनिया दो समस्याओं से जूझ रही है; एक आतंक तो दूसरा जलवायु परिवर्तन. गौरतलब है कि विगत तीन दशकों से भारत, पाकिस्तान प्रायोजित आतंक से लहूलुहान होता रहा और यह अभी भी जारी है.
मुद्दा : आतंक से मुक्त हो दुनिया |
विश्व के अन्य देश व अनेक देश तब तक इसे लेकर संजीदगी नहीं दिखाई, जब तक इसके खौफ के साये से वे बचे रहे.
वर्ष 2001 में जब अल कायदा ने अमेरिका पर हमला किया तब अमेरिका जैसे सभ्य देशों को यह पता चला कि आतंक की पीड़ा कितनी बड़ी और आहत करने वाली होती है. लंदन मेट्रो में जब आतंकियों ने बम ब्लास्ट किया तब उन दिनों यूरोप भी इससे सिहर गया था.
क्या पूरब, क्या पश्चिम और क्या उत्तर, क्या दक्षिण पृथ्वी के मानचित्र पर अब शायद ही कोई देश बचा हो जो आतंकवाद से परिचित न हो. पड़ताल बताती है कि आतंकवादियों के सैकड़ों संगठन दुनिया में संकट पैदा कर रहे हैं और ताबड़तोड़ हमलों से अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सभ्य समाज को चिढ़ा भी रहे हैं.
गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा जारी सौ आतंकी संगठनों में 83 को इस्लामिक संगठन बताया गया था. इसी प्रकार की पुष्टि संयुक्त अरब अमीरात ने भी की थी, जिससे निपटने के लिए अनेक राष्ट्राध्यक्ष सम्मेलनों एवं अंतरराष्ट्रीय बैठकों में रणनीति भी बनाते रहे हैं. खास यह भी है कि आतंक का जिस गति से विस्तार हुआ उससे पार पाने के लिए वैश्विक रणनीति कारगर नहीं रही है.
प्रधानमंत्री मोदी अपने कार्यकाल से ही वैश्विक मंचों पर आतंक की पीड़ा से जूझ रहे भारत की स्थिति दुनिया के सामने रखते रहे. जिसका नतीजा यह है कि पाक आज शेष दुनिया से अलग-थलग हो गया है. देखा जाय तो पिछले कुछ सालों से आतंकवाद पर खुल कर चर्चा हो रही है और आतंकी संगठन तुलनात्मक रूप से सशक्त होने की रणनीति में भी मशगूल रहे हैं और शायद अभी भी इसी काम में लगे हैं. जिस तर्ज पर आतंकवादियों ने पिछले कई सालों से अपनी ताकत को परवान चढ़ाया है, उसकी तुलना में बड़े से बड़ा देश भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके सुरक्षा कवच को वे भेद नहीं सकते.
गौरतलब है कि अमेरिका और ब्रिटेन से लेकर तमाम ऐसे कद्दावर देश इस जद में पहले आ चुके हैं और कई देश भले ही हमले से बचे हों पर दहशत से मुक्त नहीं हैं. इतना ही नहीं, ब्रिटेन सहित शेष यूरोप भी इसकी पीड़ा भोग चुका है. ध्यातव्य है कि साल 2015 में पेरिस के शार्ली आब्दो के दफ्तर पर हुए आतंकी हमले और पुन: उसी पेरिस में दोबारा आतंकी हमला पूरे यूरोप को भय से भर दिया था और इस हमले में फ्रांस में व्यापक पैमाने पर जान-माल का नुकसान भी हुआ.
हालांकि फ्रांस ने इस मामले को प्रमुखता देते हुए आतंकी ठिकानों पर हमले भी तत्काल शुरू कर दिये थे. खास यह भी है कि जिस पेरिस में 2015 के नवम्बर के पहले पखवाड़े में यह हमला हुआ था उसी पेरिस में इसी माह के आखिरी दिनों में पेरिस जलवायु सम्मेलन को लेकर दुनिया के राट्राध्यक्ष को इकट्ठा होना था. कचोटने वाला प्रश्न यह है कि दुनिया की दो समस्याओं में एक जलवायु परिवर्तन पर जहां चिंतन किया जाना था वहीं आतंकवाद को लेकर नई चिंता का विकास हो गया था.
निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि दुनिया में तबाही का मंसूबा रखने वाला आईएस तेजी से सिकुड़ रहा है यदि उसे इस समय कोई अतिरिक्त ऊर्जा नहीं मिली तो उसका भरभराना सम्भव है. ताजा दृष्टिकोण यह है कि इराक जहां आईएस के सरगना बगदादी का जन्म हुआ अब वही इराक उसके चंगुल से मुक्त हो गया है. ताजा प्रकरण यह है कि बगदाद समेत पूरे इराक पर जहां बगदादी की तूती बोलती थी वहां से अब यह पूरी तरह समाप्त हो चुका है. गौरतलब है कि इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी बीते 10 दिसम्बर को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करते हुए आईएस से इराक के मुक्त होने का जश्न मनाया.
उनका दावा है कि सुरक्षा बलों ने सीरिया से लगे अंतिम इलाके को भी फिलहाल आईएस से मुक्त करा लिया है. यदि यह सूचना पूरी तरह सही है तो इराक आईएस के खिलाफ चल रही लड़ाई को न केवल जीता है बल्कि बगदादी के खौफ से मुक्ति भी पा ली है. इसे देखते हुए ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा ने इराक के आतंक से मुक्ति पर प्रसन्नता तो जाहिर की पर यह भी आगाह किया है कि आईएस का खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है. ऐसा कहने के पीछे सीरिया से लगी सीमा पर इराक की मौजूगी मानी जा रही है. अच्छी बात यह है कि इराक ही नहीं पूरी दुनिया आतंक मुक्त हो और साथ ही दुनिया की जलवायु सभी के रहने योग्य हो.
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