तुगलकी सोच में डूबी राजधानी
हर साल जिस तरह निरुद्देश्य दो-तीन दिनों के लिये उत्तराखण्ड विधानसभा का सत्र गैरसैण और भराड़ीसैण में किया जा रहा है, उसे तुगलकी सोच का नतीजा ही कहा जा सकता है,
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क्योंकि पहाड़ के लोग गैरसैण में सत्ता का केन्द्र मांग रहे हैं. लोगों का मानना है कि इस पहाड़ी भूभाग की सत्ता लखनऊ से चल कर देहरादून तो अवश्य आ गयी मगर उसका लाभ पहाड़ों तक नहीं पहुंच पा रहा है. बात वहां ग्रीष्मकालीन राजधानी की भी हो रही है मगर सरकार वहां कुछ छोटे-मोटे दफ्तर तक नहीं खुलवा पा रही है. राज्य सरकार के इस असमंजस के कारण देहरादून के रायपुर में प्रस्तावित विधानसभा भवन अधर में है.
उत्तराखण्ड में सन् 2014 से लगातार राजधानी का तामझाम कुछ दिनों के लिये विधानसभा सत्र के दौरान देहरादून से गैरसैण जा रहा है और एक सप्ताह से भी कम समय वहां गुजार कर सारा लाव लश्कर वापस देहरादून लौट रहा है. राजधानी को केवल विधानसभा के एक सत्र के लिये फुटबॉल बनाये जाने से लगभग 45 हजार करोड़ रुपये कर्ज के बोझ तले तथा विकास कार्यों के लिये पूरी तरह केन्द्र की दया पर निर्भर उत्तराखण्ड राज्य के हर साल इस राजनीतिक तमाशे पर करोड़ों रुपये बरबाद हो रहे हैं.
जन भावनाओं के दबाव में पिछली कांग्रेस सरकार ने सन् 2012 में ही गढ़वाल और कुमाऊं के मध्य में स्थित गैरसैण में राजनीतिक और शासकीय गतिविधियां शुरू कर दी थीं. गैरसैण में 3 नवम्बर 2012 को तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की अध्यक्षता में मंत्रिमण्डल की ऐतिहासिक बैठक आयोजित हुई. उसके बाद 9 नवम्बर 2013 को गैरसैण के भराड़ीसैण में विधानसभा भवन के लिये भूमि पूजन हुआ. 14 जनवरी 2013 को भराड़ीसैंण (गैरसैण) में विधानभवन का शिलान्यास किया गया.
तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिह कुंजवाल एवं मुख्यमंत्री ने विधानभवन के साथ ही वहां विधायक ट्रांजिट हॉस्टल, अधिकारी ट्रांजिट हॉस्टल तथा कर्मचारी ट्रांजिट हॉस्टल का भी शिलान्यास किया. बाद में मुख्यमंत्री हरीश रावत की अध्यक्षता में अल्मोड़ा में आयोजित राज्य कैबिनेट की बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार पहली बार गैरसैंण में 9 जून से 12 जून 2014 तक विधानसभा का ग्रीष्मकालीन सत्र टेंटों में आयोजित हुआ.
गैरसैण में 2 नवम्बर 2015 से विधानसभा का दूसरा सत्र शुरू हुआ मगर यह पूरी पांच दिन की अवधि तक चलने के बजाय 3 नवम्बर को ही विपक्षी भाजपा के भारी हंगामे के कारण अनिश्चितकाल के लिये स्थगित हो गया. अगले साल 2016 में 17 एवं 18 नवम्बर को गैरसैण के निकट ही भराड़ीसैण में विधानसभा सत्र नवनिर्मित विधानसभा भवन में आयोजित हुआ. अब 7 दिसम्बर से भराड़ीसैण में नवनिर्मित विधानभवन में एक और सत्र आहूत होने जा रहा है. अगर राजधानी के नाम पर केवल विधानसभा सत्र आयोजित होने हैं और वहां जनता के कष्टों को दूर करने के लिये स्थाई तौर राजनीतिक शासकों और आला अफसरों ने नहीं बैठना है तो ऐसी केवल तमाशे वाली राजधानी पहाड़ के किस काम की? गैरसैण के निकट भराड़ीसैण में विधानसभा भवन, विधायक निवास, सचिव आवास, उवं अन्य आवश्यक भवनों पर लगभग सवा सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. इनमें केन्द्र सरकार से शुरू में मिले 80 करोड़ रुपये भी शामिल हैं.
विधानसभा सत्र के दौरान इन भवनों में मंत्रियों, विधायकों, अफसरों और कर्मचारियों के ऐशो आराम के लिये पूरी व्यवस्था है. विधानसभा सत्र के बाद इस प्रस्तावित ग्रीष्मकालीन राजधानी के आलीशान बंगलों की छतों और बाल्कनियों में बंदरों और लंगूरों की अफरा-तफरी नजर आयेगी. दरअसल प्रदेश की राजधानी को लेकर दृढ़ निश्चय न होने के कारण अगली पिछली सरकारें हर एक काम आधे अधूरे मन से करती रही हैं. भराड़ीसैण में विशालकाय इमारतें तो बन गयीं मगर वहां जाने के लिये सड़कें इतनी तंग हैं कि कई स्थानों पर दो कारें भी एक दूसरे को क्रॉस नहीं कर सकतीं.
हरीश रावत ने प्रदेश के सभी जिलों से भराड़ीसैण की सीधी कनेक्टिविटी के लिये 6 सड़कें बनाने की घोषणा की थीं, जिनके प्रस्ताव अभी फाइलों से मुक्त नहीं हो पाये. पिछले विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल में भराड़ीसैण विधानसभा के लिये 168 कर्मचारियों की विवादास्पद नियुक्तियां हुई थीं. राज्य सरकार जब इन कर्मचारियों को वहां नहीं भेज सकी तो अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों को सरकार भराड़ीसैण में तैनात कर देगी, जो फिलहाल मुमकिन नहीं लग रहा है.
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