कृषि : उम्दा प्रदर्शन जरूरी

Last Updated 16 Nov 2017 05:46:31 AM IST

बिहार में कृषि के लिए प्रथम खाका 2008 में घोषित किया गया था ताकि सामाजिक न्याय और उच्च आर्थिक वृद्धि के दो लक्ष्य हासिल किए जा सकें.


कृषि : उम्दा प्रदर्शन जरूरी

परिणामस्वरूप राज्य को 2011-12 में अब तक के सर्वाधिक 81 लाख मीट्रिक टन चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मन पुरस्कार प्रदान किया गया. बिहार में अब दूसरा और तीसरा कृषि खाका (2012-22) क्रियान्वित किया जा रहा है. इसके तहत उत्पादन संबंधी समस्याओं तथा जल संसाधनों, भू-सुधार, वानिकी, पर्यावरण संरक्षण, खाद्य प्रसंस्करण, सहकारिता, ग्रामीण सड़क, बाढ़ और सूखा जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर तवज्जो दी जाएगी. 

बिहार का कृषि खाका व्यावहारिक तकनीकों के माध्यम से रेनबो क्रांति (यानी खाद्यान्न के लिए ग्रीन रेवोल्यूशन, दुग्ध उत्पादन के लिए व्हाइट रेवोल्यूशन, तिलहनों के लिए येलो रेवोल्यूशन, मत्स्य पालन के लिए ब्ल्यू रेवोल्यूशन, फलों के लिए गोल्डन रेवोल्यूशन, गैर-परंपरागत ऊर्जा के लिए ब्राउन रेवोल्यूशन, अंडों के लिए सिल्वर रेवोल्यूशन, टमाटर/मांस के लिए रेड रेवोल्यूशन तथा उर्वरकों के लिए ग्रे रेवोल्यूशन) को दर्शाता है. न केवल इतना बल्कि दो-चरणीय महत्त्वाकांक्षी पंचवर्षीय खाका भी तैयार किया गया है. वित्तीय वर्षो 2012-17 और 2017-22 के लिए तैयार खाके में कृषि के लिए 2,500 मेगावॉट का ऊर्जा संजाल स्थापित करने का लक्ष्य है. साथ ही, खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाकर 25.2 लाख टन, सब्जी उत्पदान बढ़ाकर 18.6 लाख टन और मत्स्य उत्पादन बढ़ाकर 886.000 टन करने का मंसूबा बांधा गया है. खाद्यान्न की भंडारण क्षमता बढ़ाने की भी बात है. बिहार सरकार ने कृषि खाके के अच्छे से कार्यान्वयन के लिए आठ विभागों को समेकित कर दिया है. राष्ट्रीय किसान आयोग ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की गरज से पूर्वी भारत में कृषि को बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया है.

बीते पांच साल में बिहार के कृषि क्षेत्र का आकलन किया जाए तो हम पाते हैं कि यह क्षेत्र 0.1 की सालाना दर से सिकुड़ा है. 2011-12 और 2015-16 के बीच विनिर्माण क्षेत्र सालाना 8.4 प्रतिशत तथा सेवा क्षेत्र सालाना 9.9 प्रतिशत की दर से बढ़ा. सेवा क्षेत्र का राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 54 से बढ़कर 59 प्रतिशत हो गया जबकि कृषि क्षेत्र का हिस्सा 25 से कम होकर 17 प्रतिशत रह गया. हालांकि कृषि क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, और कृषि उत्पादन के कार्य में राज्य का 77 प्रतिशत श्रम बल नियोजित है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह राज्य सभी राज्यों में सबसे निचले दरजे पर है.

बिहार सरकार द्वारा कृषि उत्पादकता पर बल दिए जाने के बावजूद इसमें तेजी से गिरावट दर्ज की गई है. विभिन्न फसलों की उत्पादकता और लाभप्रदता में गिरावट के चलते छोटे और सीमांत किसानों की दिक्कतें बढ़ी हैं. वे हाशिये पर पहुंच गए हैं. राज्य में कृषि क्षेत्र के समक्ष गंभीर संकट हैं. इतना ही नहीं, बिहार के आर्थिक सर्वे 2016-17 की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में पांच साल तक की आयु के 80 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. महिलाओं (15-49 वर्ष का आयु वर्ग) में करीब 70 प्रतिशत कुपोषण का सामना कर रही हैं. मानव विकास सूचकांक में बिहार सबसे निचले स्थान पर है. दरअसल, ग्रामीण क्षेत्र का कायाकल्प नहीं हो पाने के चलते बिहार का संकट गहराया है.

राज्य सरकार को तमाम चुनौतियां-प्रणालीगत भीतरी के साथ ही बाह्य भी-दरपेश हैं. तमाम उद्यमों, फसलों, औद्यानिकी, दुग्ध, मांस, अंडा और मत्स्य क्षेत्र में कम उत्पादकता ने लोगों की पहले से कम आय और आबादी में गरीबी की उच्च दर को प्रभावित किया है. कृषि उपज में ठहराव,  बढ़ती लागत, कम होता लाभ और कार्यबल का स्थिर अनुपात राज्य में कृषि क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियां हैं.

बिहार को संकट से मुक्ति तीसरे कृषि खाके से समुचित कार्यान्वयन से मिल सकता है, जिसे 9 नवम्बर, 2017 को नये सिरे से आरंभ किया गया है. इससे राज्य की जनसंख्या के लिए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी. किसानों की आय बढ़ेगी. कृषि क्षेत्र में जुटे लोगों को लाभदायक रोजगार मुहैया हो सकेगा. लैंगिक और मानवीय पहलुओं को तवज्जो देते हुए बढ़ने से कृषि क्षेत्र का वास्तविक विकास हो सकेगा. राज्य से पलायन भी थमेगा. बिहार सरकार को कृषि को उद्योग का दरजा देना चाहिए. सब्जियों और फलों की काश्त करने वाले किसानों को वित्तीय सहायता मुहैया करानी चाहिए. कहना न होगा कि बिहार में कृषि नीति की सफलता से राज्य के चहुंमुखी विकास की राहत खुलेगी.

डा. सुबोध कुमार


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