बीसीसीआई : वाडा ने कसा शिंकजा

Last Updated 31 Oct 2017 02:59:02 AM IST

देश में क्रिकेट को दीवानगी की हद तक प्यार किया जाता है. देशवासी सोच भी नहीं सकते कि उनके सुपर स्टार कभी शक्तिवर्धक दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं.


बीसीसीआई : वाडा ने कसा शिंकजा

लेकिन अन्य खेलों में पिछले कुछ सालों में डोपिंग के मामले सामने आने से वर्ल्ड एंडी डोपिंज एजेंसी (वाडा) भारतीय खिलाड़ियों को संदिग्ध जनरों से देखती है. चाहती है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) भी उसकी लाइन में लग जाए. 
वाडा चाहता है कि भारत में अन्य खिलाड़ियों की तरह ही क्रिकेटरों का भी डोप टेस्ट हो. इसके लिए उसने खेल मंत्रालय का सहयोग मांगा है. ऐसा नहीं होने पर बीसीसीआई की मान्यता खत्म करने की चेतावनी दे दी है. बीसीसीआई सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति, जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू कराने में प्रयासरत है, इसलिए उसके एजेंडे पर क्रिकेटरों के डोप टेस्ट का मामला नहीं है. लेकिन मौजूदा स्थिति में नाडा के किए अनुसार करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है. वैसे भी वि क्रिकेट की संचालक संस्था आईसीसी ने वाडा कोड को माना हुआ है. बीसीसीआई आईसीसी की सदस्य होने के नाते इसके अंतर्गत आती है. वाडा का ध्यान इस मामले में इस साल अप्रैल माह में गया, जब वह अपने एंटी डोपिंग कार्यक्रम का ऑडिट कर रही थी. उसने देखा कि बीसीसीआई नाडा को मानती ही नहीं और न ही उससे क्रिकेटरों का डोप टेस्ट कराती है. खेल मंत्रालय ने नाडा से कहा है कि वह क्रिकेटरों का भी डोप टेस्ट करना चाहती है, लेकिन वे इससे मना करते हैं. सवाल है कि जब नाडा का बीसीसीआई से कोई अनुबंध है ही नहीं तो वह किस हैसियत से क्रिकेटरों का डोप टेस्ट करने जाएगी. बेहतर हो कि बीसीसीआई को वाडा कोड मानने के लिए तैयार किया जाए. वैसे भी बीसीसीआई के इससे भागने का कोई कारण नजर नहीं आता. देश के खेलों को नुकसान से बचाने के लिए इस तरफ गंभीरतापूर्वक प्रयास करने की जरूरत है.

बीसीसीआई ने क्रिकेटरों के डोप टेस्ट के लिए प्राईवेट एजेंसी-इंटरनेशनल डोप टेस्ट और मैनेजमेंट नामक एजेंसी पहले से रखी हुई है. यह एजेंसी नियमित तौर पर क्रिकेटरों के खून और मूत्र के नमूने लेकर टेस्ट करती रही है. पर दिक्कत है कि यह एजेंसी नाडा से मान्यता प्राप्त नहीं है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भाग लेने वाले क्रिकेटरों का डोप टेस्ट होता ही रहता है. 
असल में भारतीय क्रिकेटरों को वाडा कोड के एक क्लॉज पर ऐतराज है. यह ऐतराज कोई नया नहीं है पर इसके समाधान के कभी प्रयास ही नहीं किए गए बल्कि इसके सहारे वाडा कोड लागू करने से बीसीसीआई अपने को बचाए रहा. यह क्लॉज है कि क्रिकेटर वह जहां जाएं नाडा को इसकी जानकारी देनी होगी ताकि जरूरत पड़ने पर एक घंटे के नोटिस पर उनका डोप टेस्ट किया जा सके.
भारतीय क्रिकेटर इसे निजता के नियम का उल्लंघन मानते हैं. उन्हें लगता है कि वे अपनी मौजूदगी का खुलासा करेंगे तो उनकी सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है. पर यह ऐतराज रोजर फेडरर से लेकर उसैन बोल्ट जैसे तमाम खिलाड़ियों का रहा है. लेकिन उन्होंने इस पर ऐतराज जताते हुए वाडा कोड को भी अपना लिया. ऐसा ही भारतीय क्रिकेटर भी कर सकते हैं. खेलों में स्वच्छता के हामी सभी होंगे, इसलिए बीसीसीआई को इसके समाधान के लिए आगे आना होगा. वैसे भी क्रिकेट डोपिंग की आंच से बचा नहीं रह सका है. पिछले साल आईपीएल के दौरान कोलकाता नाइट राइडर्स के पेस गेंदबाज प्रदीप सांगवान को स्टीरायड्स स्टेनोजोल के इस्तेमाल का दोषी पाए जाने पर 18 माह की पाबंदी लगाई गई थी.
इस बार मामला थोड़ा टेड़ा है, और बीसीसीआई में वाडा कोड लागू करे बिना बात बनने वाली नहीं. वाडा ने चेताया है कि बीसीसीआई में वाडा कोड लागू करने में असमर्थ रहता है, तो उसकी मान्यता खत्म कर दी जाएगी. इस स्थिति में देश में वाडा से मान्यता प्राप्त कोई संस्था नहीं रहेगी. इस स्थिति में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने को जाने वाले खिलाड़ियों को बिना डोप टेस्ट के भेजने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. साथ ही, देश में खेलों को साफ-सुथरा बनाने के अभियान को भी करारा झटका लगेगा. सही है कि वाडा की चेतावनी का मकसद बीसीसीआई को इसके अंतर्गत लाने के लिए गंभीर प्रयास करने को प्रेरित करना है. मुझे नहीं लगता कि इस दिशा में पहल करने पर भी परिणाम नहीं निकलने पर वाडा नाडा की मान्यता खत्म करने जैसा कोई सख्त कदम उठाएगा. पर इतना जरूर है कि क्रिकेटरों को भी वाडा कोड के अंतर्गत लाना जरूरी है.

मनोज चतुर्वेदी


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