नजरिया : साख बनाए रखने की कोशिश
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर हमला नया नहीं है. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर जीएसटी से लेकर नोटबंदी तक बार-बार हल्ला बोला जाता रहा है.
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लेकिन अब तक यह शोर-शराबा विपक्ष की तरफ से होता रहा है. इसलिए इसे परंपरागत विपक्षी दस्तूर मान कर हमेशा नजरअंदाज कर दिया गया. यहां तक कि इन आलोचनाओं के जवाब किसी पार्टी प्रवक्ता के हवाले करके मामले की इतिश्री कर ली जाती थी. बहुत हुआ तो वित्त मंत्री ने विपक्ष पर कोई व्यंग्य कर दिया या कुछ आंकड़े पेश करके अपनी सफाई दे दी. बस!
लेकिन यह पहली बार है कि आग घर के भीतर से उठी है. इसलिए पहले से ही आर्थिक मोचरे पर लड़ रही सरकार के लिए यह हमला न सिर्फ अप्रत्याशित है बल्कि गंभीर भी. खास कर अगले साल चार राज्यों के विधानसभा चुनाव और फिर 2019 में मोदी की वापसी के लिए लड़े जाने वाले लोक सभा चुनाव को देखते हुए.
लिहाजा, जीएसटी के पैटर्न में बदलाव और कारोबारियों के लिए राहत लेकर वित्त मंत्री अरु ण जेटली सामने आए हैं. सोना कारोबारियों के लिए भी राहत की खबर है. इसके अलावा, लाखों फर्जी कम्पनियों को भी बंद किया गया है, जिन्हें भ्रष्टाचार मिटाने की पहल के तहत नोटबंदी के दौरान गलत करते हुए बैंकों ने पकड़ा था. इनमें से हर खबर और ऐसी ही अन्य खबर देश को सुकून पहुंचा रही है. और, ऐसा तब हो रहा है, जब आर्थिक मोर्चे पर 40 महीनों में अब तक के सबसे बड़े हमले का सामना मोदी सरकार कर रही है. पूर्व एनडीए सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और फिर पत्रकार-अर्थशास्त्री अरु ण शौरी ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया, तो जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री को खुद मैदान में उतरना पड़ा.
सही समय का इंतजार करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मौका मिला इंस्टीट्यूट ऑफ कम्पनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया के गोल्डन जुबली कार्यक्रम में. प्रधानमंत्री ने न केवल अपनी सरकार की आर्थिक नीतियों का बचाव किया, बल्कि आलोचना करने वालों को निराशावादी बता कर उन्हें सिरे से खारिज कर दिया. मोदी ने जोर देकर कहा कि वर्तमान के लिए भविष्य को दांव पर नहीं लगाया जा सकता. गौरतलब है कि बीजेपी सरकार अपनी आर्थिक नीतियों को दीर्घकालिक परिणाम देने वाला बताती रही है, जिसकी यह कह कर आलोचना की जाती रही है कि जब वर्तमान ही नहीं बचेगा तो भविष्य किसके लिये होगा?
तीन साल की उपलब्धियों की बखान करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि देश में 56 फीसद लाइफ टाइम निवेश इसी दौरान हुआ है. यह एक ऐसी उपलब्धि है, जो हर विरोध का मुंहतोड़ जवाब है. उन्होंने 3 साल में सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने का भी दावा किया है. इसका अगर मतलब निकाला जाए तो जाति-धर्म से ऊपर उठते हुए उन्होंने विकास की मुख्यधारा से गरीब तबके को जोड़ा है, ऐसा वह कहना चाहते हैं. चाहे उज्ज्वला योजना से गरीब माताओं के आंसू पोंछने की बात हो या हर घर में बिजली और हर सिर पर छत की पहल की बात, मोदी सरकार ने निश्चित रूप से युगप्रवर्तनकारी पहल की है. करोड़ों लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ना, जीडीपी की 9 फीसद कैश से देश को चलाकर दिखाना कोई मामूली बात नहीं है.
मोदी सरकार पर हमला आंकड़ों के हथियार से किया गया है. इसलिए प्रधानमंत्री ने आंकड़ों से ही अपना जवाब दिया. उन्होंने यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार के अंतिम तीन सालों और अपनी सरकार के शुरुआती तीन सालों की आर्थिक उपलब्धियों का ब्योरा रखा. मोदी ने कहा कि यूपीए सरकार के छह सालों के दौरान आठ बार जीडीपी की दर 5.7 प्रतिशत या उससे भी नीचे दर्ज की गई.
जीडीपी में उतार-चढ़ाव को आर्थिक प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा मानते हुए प्रधानमंत्री ने आलोचकों की तुलना महाभारत में कर्ण के सारथी शल्य से की. मोदी ने किसी का भी नाम लिए बगैर कहा कि उनकी सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोग शल्य की तरह निराशावादी हैं, जिन्हें पहचानने की जरूरत है. लेकिन यशवंत सिन्हा ने प्रधानमंत्री का जवाब देते हुए कहा कि वह शल्य नहीं, भीष्म हैं. महाभारत में भीष्म चुप रह गए थे, लेकिन वह चुप नहीं रहेंगे और अर्थव्यवस्था का चीरहरण नहीं होने देंगे. सिन्हा ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि उनका जवाब देने खुद प्रधानमंत्री आगे आ गए. गौरतलब है कि यशवंत सिन्हा ने अपने आलेख में लिखा था कि नोटबंदी और जीएसटी के साथ वित्तीय कुप्रबंधन ने देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है और वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर निचले स्तर तक गिर गई है.
वैसे तो प्रधानमंत्री से पहले वित्त मंत्री अरु ण जेटली भी यशवंत सिन्हा का जवाब दे चुके हैं, लेकिन उसे गंभीर जवाब न मान कर व्यक्तिगत आक्षेप की तरह देखा गया. इसके बाद यशवंत के पुत्र और मोदी सरकार में मंत्री जयंत सिन्हा को तकरे के साथ उतार कर पिता की आलोचनाओं को काटने की कोशिश की गई, जो असरदार नहीं रही. माना गया कि पार्टी ने पिता का जवाब देने के लिये जानबूझ कर पुत्र को चुना है. खुद यशवंत सिन्हा ने भी कहा कि वह पार्टी की कार्यशैली से वाकिफ हैं, और जयंत उनका जवाब देने क्यों आए, यह वह जानते हैं. यही नहीं, यशवंत ने सवाल किया कि अगर जयंत सिन्हा आर्थिक मामलों के इतने ही जानकार हैं, तो मोदी सरकार ने उन्हें वित्त मंत्रालय से क्यों हटाया? जयंत ने पिता यशवंत सिन्हा के तकरे को खारिज करते हुए कहा कि मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों को दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए.
जयंत ने कहा कि एक या दो तिमाही की जीडीपी या आर्थिक आंकड़ों के आधार पर सुधारों का आकलन नहीं किया जा सकता. जयंत ने दावा किया कि नई अर्थव्यवस्था अगली पीढ़ी के लिए है, जो मजबूत और स्थायी होगी. आर्थिक स्वास्थ्य को लेकर छिड़ी इस बहस में यशवंत के बाद अरु ण शौरी के हमले ने आग में घी का काम किया. यशवंत का हमला कुछ दायरों में बंधा था, जबकि शौरी ने नोटबंदी को देश का सबसे बड़ा घोटाला बताया. उन्होंने नोटबंदी को काले धन को सफेद करने वाली कवायद करार दिया. शौरी ने नोटबंदी को मूर्खतापूर्ण कदम बताते हुए कहा कि नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई.
शौरी ने कहा कि नोटबंदी वह घोटाला है जिसे सरकार ने अंजाम दिया है और जिनके पास काला धन था, उन्होंने इस कवायद में काले धन को सफेद कर लिया. अरु ण शौरी ने कहा कि इस सरकार में देश की आर्थिक नीतियां ढाई लोग मिल कर तय करते हैं. बहरहाल, प्रधानमंत्री ने दोहराया है कि दीर्घकालिक परिणामों वाले आर्थिक सुधारों के लिए वह बड़े फैसले लेने को तैयार हैं. उन्होंने आरबीआई के हवाले से यह भी कहा कि अगली तिमाही में जीडीपी बढ़ कर 7.7 प्रतिशत हो सकती है. निराशावादियों को गंभीरता से न लेने की सलाह देते हुए मोदी ने याद दिलाया कि बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों के होते हुए एक समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को कमजोर अर्थव्यवस्था वाले पांच देशों के समूह में रखा गया था. लेकिन आज भारत सबसे तेज आर्थिक वृद्धि वाले देशों में शुमार है.
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