मीडिया : इक्कीसवीं सदी के ‘तोता-मैना’
एक अंग्रेजी चैनल का एंकर कंगना और रितिक के आरोप-प्रत्यारोपों पर मुकदमा चला रहा है.
![]() मीडिया : इक्कीसवीं सदी के ‘तोता-मैना’ |
कंगना वाले कंगना को फिल्मी दुनिया में हावी पुरुषत्ववादी मानसिकता की ‘शिकार’ बता रहे हैं तो रितिक वाले रितिक को कंगना की ‘ज्यादतियों’ का शिकार. दूसरे अंग्रेजी चैनल का एंकर रितिक रौशन के साथ ढाई घंटे का इंटरव्यू करके लाया है, और यह कह कर बेचे जा रहा है कि साल का सबसे बड़ा साक्षात्कार है. कंगना और रितिक की ‘निजी फाइट’ दिखाने के लिए अंग्रेजी चैनलों में बड़ा कंपटीशन है. हिंदी वाले चैनल तो ऐसी कहानी कहने में पहले ही एक्सपर्ट हैं. ऐसी कहानियां अच्छी टीआरपी दिया करती हैं.
‘प्रेम और विरह’ की इस कहानी में सब कुछ है : एक हीरो और हीरोइन के अंतरंग किस्से हैं, ‘ब्रेक-अप’ है, दोषारोपण हैं,‘फाइट’ है, और दोनों खुद को एक दूसरे का शिकार बताकर हमदर्दी भी चाह रहे हैं. बॉलीवुड के सितारों की बिंदास जीवन शैली के बारे में यों तो एक से एक रसीली गप्पें मीडिया में छपती रहती हैं. वे इन्हें खुद भी प्लांट कराने में आगे रहते हैं ताकि चरचा में बने रहें और रिलीज होने वाली फिल्म तक दर्शक आ सकें. इसी क्रम में सेल्फ प्रमोशन का नया तरीका है कि खुद को ‘शिकार’ बनाकर पेश करें और हमदर्दी बटोरें ताकि फिल्म चल सके. रिलीज से पहले हीरो-हीरोइन चैनलों में आकर आपसी ‘ग्रेट केमिस्ट्री’ की बातें करते नहीं अघाते और चैनलों के एंकर हीरो-हीराइनों की आरती उतारते रहते हैं.
अपना मीडिया न गरीबी दिखाता है, न जनता की बेरोजगारी और परेशानियां. यथार्थ दिखाने की जगह अपराध कथाएं जमके दिखाता है. उसके लिए आम जनता एक ‘अपराध’ भर है. अपने चैनल देशभक्ति बेचने में माहिर हैं, और जब वह भी नहीं बिकती तो फिर तुच्छ राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं और सेलीब्रिटीज के अंतरंग किस्से, सनसनी और सेक्स बेचने लगते हैं. मीडिया ने सेक्स सनसनी और सेलीब्रिटीज का एक बड़ा मार्केट बनाया है.
पहले हीरो-हीरोइन निकटता, फिर अतिनिकटता, फिर झगड़े, फिर ‘ब्रेक-अप’, फिर ‘पैच-अप’ की और फिर ‘ब्रेक-अप’. मीडिया इसी में खुश रहता है. और, इन दिनों ‘रिलेशनशिप’ के मुकाबले ‘ब्रेक-अप’ ज्यादा बिकता है. अब कोई खलनायक प्रेमी प्रेमिका के बीच र्थड पार्टी बनकर नहीं आता. अब तो प्रेमी प्रेमिका ही आपस में लड़ने लगते हैं और मीडिया पलक पांवड़े बिछाकर उनकी फाइट को उत्तेजक और मसालेदार भाषा में बेचने लगता है. यों आम आदमी को क्या लेना देना कि कंगना सही है रितिक? लेकिन मीडिया जनता के नाम पर इसे राष्ट्रीय महत्त्व का मुद्दा बना चुका है, और बनाता रहेगा.
यह ऐसा लाइव सीरियल है, जिसमें ‘सेक्सिज्म’ है, अनेक गोपनीय प्रसंगों की अमित संभावनाएं निहित हैं, और दर्शकों की कल्पना को उत्तेजित करने का सारा सामान मौजूद है. यह महीनों चलने वाला ऐसा ‘सेक्सिस्ट’ सीरियल है, जो हनीप्रीत के सीरियल से कुछ आगे का है. बाबा राम रहीम और हनीप्रीत की कहानी में सेक्स है, सनसनी है लेकिन रहस्य-रोमांच और आपराधिकता भी है. ग्रेड की फिल्म की तरह है जबकि रितिक कंगना की कहानी बड़े बजट की फिल्म की तरह रिलीज की तरह दी जा रही है. बॉक्स ऑािफस पर दोनों फ्लॉप लेकिन टीवी में दोनों हिट हैं.
सच है कि कंगना ने ही अपनी कहानी पहले ‘पब्लिक’ की. अपनी फिल्म ‘सिमरन’ की रिलीज से पहले उसने लगभग सब अंग्रेजी चैनलों पर लंबे-लंबे इंटरव्यू दिए. इनमें भी उसने ‘सिमरन’ के प्रोमो की जगह अपने ‘पुरुष मित्रों’ द्वारा किए गए अतिचारों का जिक्र अधिक किया. वह शायद हमदर्दी पैदा करके लोगों का ध्यान फिल्म की ओर खींचना चाहती थी. लेकिन फिल्म ‘सिमरन’ बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी. और ठीक इसी वक्त आरोपों से आहत पूर्व मित्रों ने कंगना से हिसाब करने की ठानी. मानहानि के दो-दो केस कर दिए गए.
यह किस्सा सिद्ध करता है कि स्त्री ही किसी पुरुष के अतिचार का ‘शिकार’ नहीं मानी जा सकती, एक पुरुष भी किसी स्त्री के अतिचार का ‘शिकार’ हो सकता है. कहानी के इस मोड़ ने चले आते ‘स्त्रीत्ववाद’ (फेमिनिज्म) के ‘पूर्व निश्चित विशेषाधिकार’ का अंत कर दिया है. कंगना रितिक की कहानी इक्कीसवीं सदी के ‘तोता-मैना’ के किस्से की तरह है. पुराने किस्से के ‘तोता-मैना’ एक दूसरे की ‘बेवफाई’ के किस्से कहते थे, लेकिन ये फिल्मी ‘तोता-मैना’ निजी किस्सों को ही सड़क पर सुखाने में लगे हैं, और मीडिया इनकी अलगनी बना हुआ है.
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