न्यायपालिका : नियुक्तियों में पारदर्शिता हो

Last Updated 09 Oct 2017 04:52:26 AM IST

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति, प्रोन्नति और स्थानांतरण में पारदर्शिता की तरफ कदम बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपने सभी निर्णय और कार्यवाहियां सार्वजनिक करने का फैसला किया है.


नियुक्तियों में पारदर्शिता हो.

आगे से इन ऊपरी अदालतों के न्यायाधीशों की नियुक्ति, प्रोन्नति और स्थानांतरण के सभी मामले शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किए जाएंगे. सर्वोच्च न्यायालय के तकरीबन 64 सालों के न्यायिक इतिहास में यह पहला मौका है, जब न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया सार्वजनिक की जाएंगी. सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों के कॉलेजियम-प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस जे. चेल्मेर, रंजन गोगोई, मदन लोकुर और कुरियन जोसेफ शामिल हैं-ने हाल ही में सर्वसम्मति से ये सभी निर्णय सार्वजनिक करने का फैसला लिया है.

कॉलेजियम की बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘इस प्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और इसके बाद भी गोपनीयता बनाए रखने के इरादे से कलेजियम द्वारा हाईकोर्ट के लिए पदोन्नति, जजों को स्थाई करने की पुष्टि, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर पदोन्नति, चीफ जस्टिस और न्यायाधीशों के तबादले और सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति से संबंधित मामलों में सरकार के पास सिफारिश भेजने के बारे में अब से लिये गए सभी निर्णयों को इनके कारण बताते हुए इन्हें शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा, क्योंकि प्रत्येक मामले में कॉलेजियम द्वारा विचार की गई सामग्री भिन्न होती है.’

न्यायिक नियुक्तियों, प्रोन्नति और स्थानांतरण में बेहतर पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए यह जरूरी भी था. कॉलेजियम ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए अदालत की वेबसाइट पर ‘कॉलेजियम रिजोल्यूशन’ नाम से एक अलग लिंक सृजित किया है, जिसमें कॉलेजियम ने बीते 3 अक्टूबर को केरल और मद्रास हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के तीन प्रस्ताव जो सरकार को भेजे गए, वेबसाइट पर डाल दिए हैं. इसमें उम्मीदवारों के नामों पर की गई चर्चा, संबंधित हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट आए जजों से उनके बारे में ली गई राय और उम्मीदवारों के खुफिया ब्यूरो के मूल्यांकन को भी सार्वजनिक किया गया है.

साल 1993 में संविधान पीठ के एक फैसले से अस्तित्व में आया कॉलेजियम, सर्वोच्च न्यायालय के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों का चयन मंडल होता है, जो उच्च अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति, प्रोन्नति और स्थानांतरण करता है, जिसमें सरकार का कोई दखल नहीं होता. इससे पहले, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास था. एक लिहाज से देखा जाए, तो इस नियुक्ति प्रक्रिया से शक्ति का विकेंद्रीकरण हुआ, लेकिन पहले के सिस्टम और बाद में कॉलेजियम सिस्टम दोनों में भी वक्त के साथ खामियां दिखने लगीं.

चयनमंडल के अधिकार क्षेत्र की मौजूदा प्रक्रिया के दोषपूर्ण होने की सबसे गंभीर मिसाल पिछले कुछ सालों में पहले कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सौमित्र सेन और बाद में जस्टिस पीडी दिनकरन के रूप में हमारे सामने आई, जिन पर भ्रष्टाचार के इल्जाम में संसद में महाभियोग की प्रक्रिया भी चली. इसी परिप्रेक्ष्य में पहले संप्रग सरकार और बाद में राजग सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून 2014 और इससे जुड़े 99वें संविधान संशोधन कानून, 2014 के जरिए कॉलेजियम सिस्टम बदलने की कवायद की. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने लंबी सुनवाई के बाद अक्टूबर, 2015 में इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था. 

जाहिर है कि इस कानून के रद्द होने के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके स्थानांतरण की पुरानी कॉलेजियम व्यवस्था फिर से बहाल हो गई. अलबत्ता कानून रद्द करते वक्त अदालत ने इस बात को जरूर माना था कि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए और सुधार की जरूरत है. साल 1993 में कॉलेजियम व्यवस्था के पक्ष में फैसला देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस जेएस वर्मा और जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर से लेकर जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस चेल्मेर आदि अब यह बात मानते हैं कि कॉलेजियम व्यवस्था की गंभीर समीक्षा की जरूरत है. इसमें पारदर्शिता, जवाबदेही, वस्तुनिष्ठता और विसनीयता बढ़े, इसके लिए इसमें सुधार की जरूरत है.

 

जाहिद खान


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