यह आतंकवाद ही है
अमेरिका के लिए अभी तक लास वेगास में हुआ हमला आतंकवादी हमला नहीं है. एक साथ कुछ मिनटों में 58 लोगों की हत्या और 500 लोगों को घायल कर दिया जाना उसके लिए अभी तक सामूहिक नरसंहार मात्र है.
![]() अमेरिका के लास वेगास में हमला (फाइल फोटो) |
हालांकि आइएसआइएस ने हमले के कुछ समय बाद ही कह दिया कि यह हमला उसका है. उसने यह भी कहा कि हमलावर स्टीफन पैडॉक ने कुछ महीने पहले इस्लाम अपना लिया था. लेकिन अमेरिका का संघीय जांच ब्यूरो इसे स्वीकारने को तैयार नहीं है. ऐसा नहीं है कि एफबीआई किसी निष्कर्ष पर पहुंच गई है. उसके लिए अभी तक इस प्रश्न का उत्तर तलाशना कठिन हो रहा है कि आखिर पैडॉक ने ऐसी हिंसा क्यों की?
जांच में अभी तक कोई सूत्र ऐसा हाथ नहीं लगा है, जिससे यह माना जाए की पैडॉक ने फलां कारण से हत्याएं की, या वह मानसिक रूप से विक्षिप्त था या और कुछ... हां, जांच अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्टीफन पैडॉक ने एक झटके में इस कांड को अंजाम नहीं दिया था. अधिकारियों का मानना है कि उसने नरसंहार के लिए काफी समय से हथियार जुटाने शुरू कर दिए थे. पैडॉक की प्रेमिका मारिलोउ डेनेली का कहना है कि उन्हें हमले की योजना की कोई जानकारी नहीं थी. पैडॉक के घर से हथियारों का जखीरा बरामद हुआ है. हमलावर को इतना पता था कि मैंडाले बे रिजॉर्ट एंड कसीनो में तीन दिनों का रूट-91 हार्वेस्ट फेस्टिवल होने वाला है. उसने हमले के लिए अंतिम दिन चुना. मगर सवाल यही कि, उसने ऐसा क्यों किया? पहले उसकी गर्लफ्रेंड की तलाश थी. लगा था कि उससे रहस्य से पर्दा उठ सके. पैडॉक ने घटना के पहले अपने गर्लफ्रेंड के खाते में एक लाख डॉलर स्थानांतरित किया था. यह बात ठीक है कि अमेरिका में सामूहिक संहार की अनेक घटनाएं हुई और एक अंतराल पर यह होती रहती है. किंतु इसके आधार पर हम सारी घटनाओं को एक ही श्रेणी में नहीं मान सकते.
13 जून 2016 को फ्लोरिडा के ऑरलैंडो में गे नाइटक्लब पल्स में शूटिंग की घटना हुई थी. 29 साल के सिक्यूरिटी गार्ड उमर मतीन ने 49 लोगों की जान ले ली थी. इसमें 58 लोग जख्मी हुए थे. उस घटना को भी आरंभ में सामूहिक संहार की माना गया, लेकिन दुनिया ने माना की यह आतंकवादी घटना थी. तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा को कहना पड़ा कि यह आतंकवादी हमला है. हमलावार उमर मतीन ने स्वयं पुलिस को हमले के दौरान ही फोन कर बताया कि वह आईएसआईएस का समर्थक है. वास्तव में आतंकवादी हमला करने के लिए किसी संगठन से जुड़ा होना, उसका प्रशिक्षण लेना आवश्यक नहीं है. आईएस के प्रवक्ता ने कई साल पहले ही यह आह्वान कर दिया था कि आप जहां हो और आपको जो कुछ मिले उसी से हमला करो. उसके बाद से एकल हमले की घटनाएं बढ़ी हैं. इसे ‘लोन वूल्फ’ हमला बोलते हैं. हमने ब्रिटेन में इसी वर्ष ऐसे तीन हमले देखे, जर्मनी में देखा, फ्रांस में देखा और अब कनाडा में भी हुआ है. अमेरिका में ऐसा नहीं हुआ है यह कैसे मान लिया जाए?
अमेरिकी नागरिक रिजवान फारूक और उसकी नई नवेली पाकिस्तानी पत्नी तशफीन मलिक ने 2 दिसम्बर 2015 को कैलिफोर्निया के सान बर्नार्डिनो स्पेशल सर्विसेज सेंटर में चल रही पार्टी में घुसकर और 14 लोगों की हत्या कर दी, जबकि 22 लोग इस हमले में घायल हुए. इन दोनों को ही बाद में पुलिस ने गोली मार दी थी. उसे भी अमेरिका ने आतंकवादी घटना नहीं माना, जबकि दुनिया के अनेक विश्लेषक इसे आतंकवादी घटना ही मानते रहे. अल बगदादी ने अमेरिका के घर में घुसकर हमला करने की धमकी दिया हुआ है. उसके बाद से उसके समर्थक अमेरिका पर हमले की फिराक में लगातार रहे हैं. चूंकि वर्तमान घटना का हमलावर मारा जा चुका है, इसलिए अब अमेरिकी पुलिस जो कहेगी वही सच माना जाएगा. लेकिन जब तक आप कोई ठोस तथ्य नहीं देते तब तक हम नहीं मान सकते कि यह आतंकवादी हमला नहीं था. प्रश्न उठता है कि आखिर एक व्यक्ति किसी बड़े हमले के लिए इतनी बड़ी तैयारी क्यों कर रहा था? उसकी प्रेरणा का स्रेत क्या था? वह ऐसी किसी धार्मिंक संस्था से भी जुड़ा हुआ नहीं था, जो पल्रय की कल्पना में अपने को भी खत्म करते हैं और लोगों को भी.
क्या अमेरिका इस बात को नकारेगा कि यह 11 सितम्बर 2001 के बाद हताहतों की दृष्टि से सबसे बड़ी घटना है? आखिर आतंकवाद किसे कहते हैं? भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवाद की परिभाषा तक करने की मांग यों ही तो नहीं कर रहा है. एक बार परिभाषा तय हो जाए फिर कौन घटना आतंकवादी है और कौन नहीं इसे स्पष्ट करना आसान हो जाएगा. अमेरिका को तो इसकी ज्यादा चिंता होनी चाहिए क्योंकि वहां बंदूक या अन्य हथियार खरीदना या रखना उतना ही आसान है जितना हमारे यहां लाठी-डंडा रखना. जब 15 दिसम्बर 1791 को अमेरिकी संविधान में दूसरा संशोधन हुआ तो उसमें बंदूक रखने को एक बुनियादी अधिकार माना गया. अमेरिका का संविधान कहता है कि एक नियंत्रित नागरिक सेना स्वतंत्र राज्य की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है. इसलिए लोगों को हथियार रखने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. अमेरिका की दुनिया की आबादी में 5 प्रतिशत हिस्सेदारी है, लेकिन दुनिया भर में लाइसेंसी हथियारों के मामले में इसकी हिस्सेदारी 35 से 50 प्रतिशत है.
यहां 88.8 प्रतिशत लोगों के पास बंदूकें हैं, जो दुनिया में प्रति व्यक्ति बंदूकों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा आंकड़ा है. करीब 46 हजार वहां हथियारों की दूकानें हैं. आईएस या इससे प्रभावित होकर कोई जो वहां का नागरिक है, हमला करने की योजना बना सकता है और उसमें सफल भी हो सकता है. ‘लोन वूल्फ’ हमले के लिए अमेरिका सबसे मुफीद जगह है. यह बात अलग है कि अभी वह इसे आसनी से स्वीकार करने को तैयार नहीं है. लेकिन उसके स्वीकारने या न स्वीकारने से दुनिया की धारणा नहीं बदल सकती. वर्तमान हमले को कम से कम संदिग्ध आतंकवादी हमले की श्रेणी में तो रखना ही होगा.
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