वैश्विकी : पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव
इस बात की भविष्यवाणी करना जोखिम भरा है कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ चलाये गए सफल अभियान के बाद इस्लामाबाद का हृदय परिवर्तन हो जाएगा.
पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव |
लेकिन यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि भारत ने इस मसले पर वैश्विक समुदाय की सहानुभूति अर्जित करके पाकिस्तान को शर्मसार कर दिया. ब्रिक्स, इब्सा, लातिन अमेरिकी और शंघाई सहयोग संगठन के देशों ने भारत के पक्ष में खड़ा होते हुए आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त प्रस्तावना पर अपनी सहमति जताई. निश्चित ही यह पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के लिए सुखद अनुभव नहीं रहा होगा. यह पाकिस्तान और उसके द्वारा पोषित आतंकवाद के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आक्रामक कूटनीति का परिणाम है. ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे वैश्विक मंच रहे हों या दूसरे देशों के शीर्ष नेताओं के साथ प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत मुलाकात, हर मौकों पर उन्होंने पाकिस्तान को बेनकाब करने की पूरी कोशिश की. यही वजह है कि आज पाकिस्तान का विस्त मित्र चीन भी कश्मीर के सवाल पर उसे बेसहारा छोड़ दिया.
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान द्वारा उठाये गए कश्मीर-मुद्दे पर चीन के रुख में बदलाव आया है. उसने इसे द्विपक्षीय मुद्दा बता कर भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के साफ संकेत दिया है. डोकलाम के बाद भारत-चीन के रिश्तों में आये इस बदलाव से लगता है कि दक्षिण एशिया की इन दो बड़ी शक्तियों के बीच इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने के मसले पर मतैक्य कायम हो रहा है. दरअसल, चीन कश्मीर मुद्दे के साथ अपने को नत्थी करके भारत के साथ अपने व्यापारिक और आर्थिक हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता है. इससे पहले उसने ब्रिक्स सम्मेलन के संयुक्त घोषणापत्र में पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठनों की आलोचना करके अपना इरादा साफ कर चुका था.
भारत की पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक कूटनीति की वजह से उसे अब वैश्विक दबावों का सामना करना पड़ रहा है. आतंकवाद को शह देने की नीति के चलते वह अपने पड़ोसियों के साथ भी अलग-थलग पड़ता जा रहा है. पाकिस्तान में आयोजित होने वाला 2016 का सार्क सम्मेलन इसकी मिसाल है. जब भारत का साथ देते हुए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान ने सम्मेलन का बहिष्कार किया और अंतत: इसे रद्द करना पड़ा. इस साल भी सार्क सम्मेलन के होने की उम्मीद नहीं है.
भारत का रुख इस मसले पर कड़ा और साफ है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों में शामिल रहेगा, उसके साथ किसी भी तरह के रिश्ते नहीं रहेंगे. लेकिन विश्व राजनीति में यह सवाल महत्त्व रखता है कि पाकिस्तान के साथ लम्बे समय तक संबंध-विच्छेद रखना क्या भारत के हित में होगा. इसका जवाब समय ही देगा. अगर भारत की इस कूटनीति से पाकिस्तान के रुख में कोई बदलाव नहीं आया तो आगे क्या आ जाएगा? यह भी बड़ा सवाल है. और क्या तब इसका एक मात्र हल युद्ध है? इस पर विचार करने से पहले भारत को यह भी याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान एक आणविक क्षमता से लैस देश है. अत: भारत को फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा.
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