अर्थव्यवस्था : अब रफ्तार जरूरी

Last Updated 23 Sep 2017 12:49:30 AM IST

सितम्बर 21 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार को गति देने के लिए सरकार द्वारा आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में विकास के साथ-साथ रोजगार बढ़ाने से संबंधित कदम उठाए जाएंगे.


अर्थव्यवस्था : अब रफ्तार जरूरी

गौरतलब है कि 19 सितम्बर को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) रिसर्च ग्रुप द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सितम्बर,  2016 से धीमी गति से आगे बढ़ रही है. अब यदि अर्थव्यवस्था में गतिशीलता नहीं बढ़ाई गई तो अर्थव्यवस्था में सुस्ती की आशंका बढ़ेगी. इससे निपटने के लिए अब सार्वजनिक खर्च बढ़ाना जरूरी हो गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार को सार्वजनिक व्यय बढ़ाने के लिए राजकोषीय घाटा बढ़ाने का भी कदम उठाना चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक व्यय बढ़ने के कारण वैश्विक क्रेडिट रेटिंग घटने की चिंता नहीं की जानी चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार राजकोषीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन अधिनियम की उस उपधारा का इस्तेमाल कर सकती है, जिसके तहत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में 0.5 फीसद गिरावट की अनुमति है. इस रिपोर्ट ने सरकार को छोटी अवधि की अतिरिक्त उधारी की गुंजाइश भी टटोलने की सलाह दी है. इस बारे में कहा गया है कि छोटी अवधि की उधारी बढ़ाई जा सकती है. निस्संदेह इस समय देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाना जरूरी है. हाल ही में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में विकास दर घटकर 5.7 फीसद रह गई, जो पिछली तिमाही के 6.1 फीसदी से भी कम है.

ऐसे में अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने और विकास दर घटने के ऐसे परिदृश्यय को बदलने और विकास को गति देने के लिए भारत को सतत सुधार की जरूरत है. नया आर्थिक माहौल और नई आर्थिक रणनीति विकसित करना आवश्यक है. लेकिन सरकार को बड़े लक्ष्यों को पाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग, कृषि और सेवा क्षेत्र के योगदान के मौजूदा स्तर को बढ़ाना होगा. अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसर पैदा करना होंगे. यह भी जरूरी है कि नोटबंदी और जीएसटी लागू होने से पैदा हुई शुरुआती परेशानियों और उसके कारण सुस्त हुई अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए. निश्चित रूप से अब अर्थव्यवस्था को ऊंचाई देने के लिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की अहम भूमिका बनाई जानी होगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ योजना को गतिशील करना होगा. उन ढांचागत सुधारों पर भी जोर दिया जाना होगा, जिससे निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके. ऐसा किए जाने से भारत में आर्थिक एवं औद्योगिक विकास की नई संभावनाएं आकार ग्रहण कर सकती हैं. 

पिछले दिनों प्रकाशित विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देकर भारत चीन और पश्चिमी देशों को पीछे छोड़कर दुनिया का नया कारखाना बन सकता है. यद्यपि इस समय दुनिया के कुल उत्पादन का 18.6 फीसद उत्पादन अकेला चीन करता है. लेकिन कुछ वर्षो से चीन में आई लगातार सुस्ती एवं युवा कार्यशील आबादी में कमी और बढ़ती श्रम लागत के कारण चीन में औद्योगिक उत्पादन में मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में उत्पादन गुणवत्ता के मामले में चीन से आगे चल रहे भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आगे बढ़ने की अच्छी संभावनाएं मानी जा रही हैं. ख्यात वैश्विक शोध संगठन स्टैटिस्टा और डालिया रिसर्च द्वारा मेड इन कंट्री इंडेक्स 2016 में उत्पादों की साख के अध्ययन के आधार पर कहा गया है कि गुणवत्ता के मामले में मेड इन इंडिया, मेड इन चाइना से आगे है. इस सव्रेक्षण के तहत लिये गए मानकों में उत्पादों की गुणवत्ता, सुरक्षा मानक, कीमत वसूली, विशिष्टता, डिजाइन, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, भरोसा, टिकाऊपन, सही उत्पादन और प्रतिष्ठा शामिल हैं.

यूरोपीय संघ और दुनिया के 49 बड़े देशों को लेकर जारी इस इंडेक्स में उत्पादों की साख के मामले में चीन भारत से सात पायदान पीछे है. देश में प्रभावी मांग बढ़ाने और तेज विकास दर के लिए ऐसे प्रयास किए जाने होंगे, जिससे आम आदमी की मुट्ठी में कुछ अधिक धन आए और उसकी क्रयशक्ति क्षमता बढ़े. प्रभावी तरीके से महंगाई रोकना होगी. महंगाई बढ़ाने वाले मध्यस्थों का दुष्चक्र रोकना होगा. एक ओर हमें शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े युवाओं को कौशल विकास से लबरेज करना होगा. रोजगारोन्मुखी पाठय़क्रमों से शिक्षित करना होगा, वहीं गांवों में जो गरीब, अशिक्षित और अर्धशिक्षित लोग हैं, उन्हें अर्थपूर्ण रोजगार देने के लिए निम्न तकनीक विनिर्माण जुटाना होगा. इनके साथ-साथ श्रम सुधार, बैंकिंग सुधार, वित्तीय सुधार की डगर पर भी आगे बढ़ना होगा. नई पीढ़ी को हमें नए आर्थिक माहौल के अनुरूप पल्लवित-पुष्पित करना होगा.

आर्थिक स्थायित्व और विकास दर बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा पिछले तीन वर्षो में जो विभिन्न ऐतिहासिक नीतिगत फैसले लिये गए हैं, उन्हें जल्द-से-जल्द कार्यान्वित किया जाना होगा. साथ ही, संसद में पारित कराए गए अभूतपूर्व आर्थिक सुधारों को कारगर तरीके से लागू किया जाना होगा. इन सबके साथ-साथ यह भी जरूरी है कि वित्त मंत्रालय सरकार की आय और खर्च का खाका तैयार करने के साथ सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्धि दर में गिरावट पर लगाम लगाने के उपायों के बारे में प्रमुख मंत्रालयों के साथ त्वरित रूप से विचार मंथन करे. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय पिछली परियोजनाओं को गतिशील करने और नई परियोजनाओं को शीघ्र लागू करने की दिशा में आगे बढ़े.

अब अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए विकास के लक्ष्यों के लिए नीति आयोग द्वारा पिछले माह 29 अगस्त को प्रस्तुत सुधारवादी एजेंडे पर ध्यान दिया जाना होगा. इस एजेंडे में विनिर्माण, छोटे एवं मझौले उद्योग, निर्यात, कृषि और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नीतियों की अहम भूमिका की बात कही गई है. हम आशा करें कि नरेन्द्र मोदी सरकार नीति आयोग के सुधारवादी एजेंडे को कार्यान्वित करने के लिए कारगर प्रयास करेगी. इससे देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार दी जा सकेगी.

जयंती लाल भंडारी


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