सोशल मीडिया पर मौत का खेल
पिछले दिनों मुंबई के एक किशोर ने पिछले दिनों एक बहुमंजिला इमारत की पांचवीं मंजिल से छलांग लगाकर जान दे दी.
![]() सोशल मीडिया पर मौत का खेल (फाइल फोटो) |
किशोर-किशोरियों की आत्महत्याओं की खबरें आती रहती हैं, लेकिन यह खबर खास तौर पर चिंताजनक इसलिए है कि इसका संबंध इंटरनेट के जरिए खेले जाने वाले एक अजीबोगरीब खेल से है, जिसका नाम है-ब्लू व्हेल चैलेंज. इस खेल में दूर बैठे कुछ क्यूरेटर या एडमिनिस्ट्रेटर इंटरनेट के जरिए ऐसे किशोर-किशोरियों तक पहुंचते हैं, जो मानसिक रूप से कमजोर, निराश, कुंठित या अवसादग्रस्त हैं. इन्हें खेल में कुछ इस कदर तल्लीन कर दिया जाता है कि वे अपने आसपास की दुनिया से कट जाते हैं और इस खेल को अपनी जिंदगी की पटकथा के रूप में लेने लगते हैं.
किसी दूसरे देश में बैठे क्यूरेटर एक-एक कर उन्हें कुछ टास्क (काम) देते हैं और दुनिया-जहान को भूल बैठे बेचारे किशोर सम्मोहित-सी हालत में उनके हर निर्देश का पालन करते चले जाते हैं. इस खेल में आखिरी निर्देश होता है-आत्महत्या कर लो. दुनिया में 130 से ज्यादा बच्चे और किशोर-किशोरियां अब तक ब्लू व्हेल गेम या ब्लू व्हेल चैलेंज में हिस्सा लेते-लेते जान दे चुके हैं. फेसबुक पर अनेक लोगों द्वारा अपनी आत्महत्याओं का लाइव प्रसारण करने की दर्जनों घटनाओं के बाद यह चिंताजनक घटनाओं का नया सिलसिला है, जिसका ताल्लुक सोशल मीडिया से है. कई सरकारों ने इस खेल को प्रतिबंधित कर दिया है. सन 2013 में इस खेल को ईजाद करने वाले रूसी युवक फिलिप बुदेकिन को एक महीने पहले गिरफ्तार कर रूस की जेल में डाला जा चुका है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि अबोध बच्चों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं का सिलसिला अब भी नहीं रुका है.
यह खेल यूरोपीय सोशल मीडिया वेबसाइट वीकोन्टकटे के जरिए खेला जाता रहा है, जो काफी हद तक फेसबुक जैसी है और रूस में बहुत लोकप्रिय है. इस वेबसाइट पर अकाउंट बनाने और ‘ब्लू व्हेल गेम’ के नाम से सर्च करने पर बच्चे एक पेज पर पहुंच जाते हैं, जिसे ब्लू व्हेल नेटवर्क द्वारा संचालित किया जाता है. खेल का नाम ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ इसलिए रखा गया है क्योंकि व्हेल के समुद्री किनारे पर आने का मतलब आत्महत्या की प्रवृत्ति से लगाया जाता है. ये बच्चे भी जब इस खेल में शामिल होते हैं तो एक तरह से उनके मन में यह भावना पैदा की जाती है कि दुनिया के बर्ताव और जीवन की निराशाओं के समुद्र से छुटकारा पाकर ये लोग अब किनारे पर आ गए हैं. खेल कुल 50 दिन चलता है, जिसे खेलने वालों को हर दिन एक चुनौती दी जाती है. खिलाड़ियों से कहा जाता है कि जब भी वे कोई चुनौती पूरी करें, अपनी तस्वीर गेम के क्यूरेटरों को भेजें. उन अनेक चुनौतियों में खिलाड़ियों को किसी-न-किसी रूप में अपने आपको नुकसान पहुंचाने के लिए कहा जाता है, जैसे ब्लेड या किसी दूसरे धारदार औजार से अपने शरीर पर ब्लू व्हेल का चित्र उकेरना, अपने शरीर में सुइयां चुभोना आदि-आदि.
यह खेल सोशल मीडिया के दुरु पयोग का ज्वलंत उदाहरण है, जिस पर किसी भी व्यक्ति द्वारा की जाने वाली हरकतों की जांच या समीक्षा की कोई स्वचालित व्यवस्था नहीं है. हालांकि, क्लाउड और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकों के कारण आने वाले कुछ समय में ऐसी कसौटियां तैयार हो जाएंगी, जो बिना मानवीय हस्तक्षेप के भी ऐसी हरकतों को पहचान सकेंगी. लेकिन फिलहाल इस तरह के अपराधों की रोकथाम बहुत हद तक लोगों द्वारा सूचित किए जाने और जरूरी निवारक कदम उठाए जाने पर निर्भर करती है. दुर्भाग्य से वीकोन्टकटे के मामले में ऐसी सतर्कता दिखाई नहीं दी है. एक ओर जहां सरकारी एजेंसियों को ऐसे मामलों में तुरंत कदम उठाते हुए खतरनाक वेबसाइटों को प्रतिबंधित करने की जरूरत है, वहीं इंटरनेट सर्च इंजन और सोशल मीडिया साइटें भी इन्हें हतोत्साहित करने में योगदान दे सकती हैं.
मिसाल के तौर पर ऐसे पेजों का सर्च नतीजों पूरी तरह से ब्लैकआउट कर दिया जाना. स्कूल-कॉलेजों को समय-समय पर सोशल मीडिया से उभरने वाली इस तरह की चुनौतियों के बारे में बच्चों को सतर्क करते रहने की जरूरत है तो अभिभावकों को न सिर्फ उन्हें ऐसे खतरों से आगाह करते रहना चाहिए बल्कि उनकी गतिविधियों पर नजर भी रखनी चाहिए. सोशल मीडिया का विस्तार अभी होते जाना है इसलिए ऐसी, बल्कि इससे भी अधिक गंभीर समस्याएं भविष्य में आती रहेंगी. जरूरत है कि साइबर अपराधों में एक भी जान जाने से पहले हमारी सरकारें और जांच एजेंसियां उन्हें रोकने में सक्षम बनें.
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