चोटी कांड : खुले बालों की इच्छाएं
जिन दिनों औरतों की चोटी कटने की अंधविश्वासी खबरें मीडिया में हंगामा किए हुए हैं, उन्हीं दिनों टीवी पर एक विज्ञापन ऐसा भी आता है जो अंधविश्वास का मजाक उड़ाता है : चौबे जी ने बनवाया मकान.
![]() चोटी कांड : खुले बालों की इच्छाएं |
एक दिन धरती हिली तो चौबे जी भी हिल गए. पहले वे फोटोज में लटके अपने पूर्वजों से प्रार्थना किए कि बचाओ! बचाओ! फिर रत्नखचित अंगूठियों के भरोसे रहे, फिर नींबू-हरी मिर्च वाली दस रुपये की माला का भरोसा किया जिसे बरांडे में लटकाया था. अंत में चौबे जी बच गए. विज्ञापन का वाचक उनका मजाक उड़ाता कहता है कि चौबे जी समझे कि नींबू-मिर्ची ने बचाया जबकि घर को एक खास ब्रांड के लोहे के सरियों ने बचाया.
लेकिन इन्हीं दिनों अंधविश्वास के लटकों-झटकों से भरपूर एक ‘चोटी कांड’ की कथाएं भी चैनलों में खूब आ रही हैं और ‘अफवाहों पर ध्यान न दें’ की चेतावनी के बावजूद चोटी कांड की कहानियां फैलती ही जा रही हैं. कारण यह कि अफवाहों का अपना मजा होता है. उनमें ‘जन-रस’ होता है. वे ‘पब्लिक एंटरटेनमेंट’ वाली होती हैं. और अफवाह अंधविश्वास से जुड़ी हो डबल मजा देने वाली बन जाती है. लेकिन कई बार अंधविश्वास सिर्फ ‘अंधविश्वास’ नहीं होता. वह एक किसी चीज की एक ‘ओट’ या परदा भी होता है, और ‘रहस्य रोमांच’ से भरपूर होता है. इसीलिए ‘मल्टीप्लाई’ होता जाता है. इसीलिए हमारा मीडिया चाहे अंधविश्वास को कितना ही कूटे, मीडिया में खबर बनकर वह कई बार अनुकरणीय जैसा बन जाता है क्योंकि वह एक धड़ाकेदार खबर बन कर आता है, और ऐसी खबर में हर कोई रहना चाहता है.
समकालीन ‘चोटी कांड’ पहले हरियाणो के कुछ इलाकों से खबर बना. फिर उसने दिल्ली के कांगनहेड़ी गांव से खबर बनाई. फिर ‘चोटी कांड’ यूपी समेत पांच राज्यों में फैल गया. हिंदी चैनलों ने इस चोटी कांड को हर दिन खबर बनाया. इस भूत-बाधा को दूर करने के लिए लोगों ने टोटके करने शुरू कर दिए. दरवाजों पर नीम की पत्ते और दीवारों पर हल्दी के हाथों के छापे लगने लगे. मीडिया कहता रहा कि अफवाहों पर ध्यान न दें, लेकिन चोटी कांड का दायरा बढ़ता गया. मीडिया में आकर अफवाह भी आकषर्क हो उठती है. इन चोटी कांडों की कहानी एक जैसी रही : कि मैं घर में अकेली सो रही थी या कहीं जा रही थी कि अचानक सिर में तेज दर्द उठा और मेरी चोटी कट गई. ये देखो! औरतों को टीवी में बयान देने का मौका मिलता है, लेकिन ‘चोटी-हानि’ पर वे कोई खास दुख मनाती नहीं दिखीं.
कुछ बरस पहले के इसी मौसम में दिल्ली की छतों पर उत्पात मचाने वाले किसी काले बंदर यानी ‘मंकीमैन’ की कहानी कई दिनों तक हिट हुई थी. यही सड़ी गरमी वाली रातें. छतों पर सोए लोग. अचानक कोई ‘बंदर’ आता है. इस-उस को छेड़ कर भाग जाता है. लोग रात में पहरा देने लगे. लेकिन जब-जब कैमरों ने पूछा कि क्या किसी ने वह बदमाश बंदर देखा तो कहते कि अंधेरे में देख नहीं सके. वह भाग गया. वह बंदर एक ‘प्रेम-बंदर’ था, जो ‘छत पर आजा गोरिए’ के गाने वाले प्रेम का शौकीन था. भारतीय छतों पर प्रेम पला करता है, और पकड़े जाने के डर से प्रेमी अचानक बंदर हो जाता है. ऐसा ही कुछ रहा होगा.
लेकिन ‘चोटी कांड’ का ‘खलनायक’ बंदर नहीं है, बल्कि सड़ी गरमी, सबाल्टर्न फेमिनिज्म और टीवी का मिक्स है. बॉलीवुड और सीरियलों की हीरोइनों, खबर पढ़नेवालियों में से किसी की तो चोटी नहीं होती. इनको देख किस दर्शक स्त्री का मन न करता होगा कि वह भी चोटी त्याग खुले बालों में आ जाए? सड़ी गरमी. घर में न पानी, न हवा और सिर पर गूंथी चोटी. उधर, टीवी में एक से एक बॉब कट लेडीज. कस्बाती औरतें क्यों न चाहें बॉब कट? कटवाने कोई देगा नहीं तो क्यों न बाल ‘कट’ करो और गरमी से निजात पाओ. कोई पूछे तो कहो सिर दर्द हुआ, पता नहीं किसने काटे?
हमारी समझ में ‘चोटी कांड’ कस्बाती सबाल्टर्न यानी हाशिये पर रहने वाली औरतों का नया फेमिनिज्म है, जो महानगरीय ‘मेट्रो फेमिनिज्म’ से अलग है. वे मेट्रो वाली ब्यूटी पार्लर में बाल कटवा सकती हैं तो क्या ये अपने आप काट कर ‘मॉडर्न लेडीज’ होने की इच्छा भी पूरी नहीं कर सकतीं? घरवाले पूछेंगे तो कह देंगी कि अचानक तेज सिर दर्द हुआ और किसी ने बाल काट दिए. अरे भई कटने दो न चोटी. तुम ब्लंट कट बॉब कट में एंकरों हीरोइनों को दिखाओ तो वे उन जैसी मॉडर्न क्यों नहीं दिख सकती? वे टीवी की सबसे बड़ी दर्शक हैं.
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