पाकिस्तान : शरीफ की सियासी शहादत या..

Last Updated 03 Aug 2017 02:38:15 AM IST

देश की सर्वोच्च अदालत ने बीती 28 जुलाई को पनामा-कागजात रहस्योदघाटन के मामले में निर्णय सुनाते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पद पर बने रहने के अयोग्य करार दे दिया.


पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ

इसके बाद शरीफ को पद से त्यागपत्र देना पड़ा. पाकिस्तान में पीएम के कार्यकाल को अशिष्टतापूर्वक समाप्त किया जाना नई बात नहीं है. तथ्यात्मक रूप से यह पंद्रहवां मौका है, जब देश के किसी प्रधानमंत्री को समय से पहले ही उसके पद से हटाया गया हो, हालांकि शरीफ के साथ दुर्भाग्यवश ऐसा तीसरी बार हुआ है.
जहां तक न्यायपालिका का प्रश्न है, शरीफ से पहले 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को भी अदालत की अवहेलना करने पर हटना पड़ा था. देश के भीतर और बाहर कानूनी जानकारों और विश्लेषकों के बीच पनामा-कागजात रहस्योदघाटन पर निर्णय को लेकर एकमतता नहीं है. कुछ इसे राजनीतिक उत्तरदायित्व की स्थापना के दृष्टिकोण से एक अहम फैसला मान रहे हैं, कुछ इसे न्यायिक तख्तापलट की संज्ञा दे रहे हैं, तो वहीं कुछ इसके पीछे सैन्य षड्यंत्र की संभावना देख रहे हैं, जो विश्लेषक इसे राजनीतिज्ञों की देश के प्रति उत्तरदायित्व से जोड़कर देख रहे हैं, उनका मानना है कि न्यायपालिका ने जवाबदेही की शुरु आत प्रधानमंत्री के पद पर आसीन व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करके एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना की नींव डाली है, जिसके अंतर्गत किसी भी पद पर आसीन व्यक्ति की जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी.

वहीं दूसरी तरफ जो लोग इसे न्यायिक तख्तापलट मान रहे हैं, उनका कहना है कि न्यायपालिका ने जिस आधार पर शरीफ को पद पर बने रहने के अयोग्य पाया है, यदि उसे सार्वभौमिक रूप से लागू किया जाए तो पाकिस्तान में शायद ही कोई राजनेता होगा जो खुद को किसी पद पर आसीन होने के लायक पाएगा. जो लोग इसके पीछे किसी भी तरह का सैन्य षड्यंत्र देख रहे हैं, उनका मानना है कि पाकिस्तानी सेना किसी भी लोकप्रिय प्रधानमंत्री को अपने हितों की पूर्ति के मार्ग में एक अवरोधक के रूप में देखती है, अत: उसे पद से हटाने कर भरसक प्रयास करती है. यही कारण है कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने से लेकर आज तक केवल जुल्फिकार अली भुट्टो ही ऐसे एकमात्र प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने न केवल अपना कार्यकाल पूरा किया बल्कि पद पर रहते हुए अगला चुनाव कराया और उसमें भाग भी लिया. इसके पश्चात अभी तक किसी प्रधानमंत्री को अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर नहीं मिला. पूर्व में सेना ने अपने इस मिशन में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के अतिरिक्त गवर्नर जनरल और राष्ट्रपति को प्राप्त विशेषाधिकारों का सहारा लिया था. न्यायपालिका ने भी सेना के इस मिशन में भरपूर सहयोग दिया है. जस्टिस इफ्तिखार चौधरी का परवेज मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा खोलना इस संदर्भ में एक अपवाद है.
जहां तक नवाज शरीफ को इस बार हटाए जाने का प्रश्न है, बहुत से विश्लेषकों का यह मानना है कि अपने तीसरे कार्यकाल की शुरु आत से ही शरीफ ने विभिन्न माध्यमों से व्यवस्था में असैनिक निगरानी स्थापित करने का प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रयास किया. शरीफ द्वारा भारत से रिश्ते सामान्य करने के लिए जो कदम उठाए गए, उस पर सेना ने समय-समय पर आपत्ति भी की. उदाहरण के लिए सेना के आतंरिक विरोध के बावजूद शरीफ ने नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत की, कश्मीरी अलगाववादियों से मुलाकात नहीं की, दो-तरफा व्यापार में दिलचस्पी दिखाई, भारत को एमएफएन या अविभेदकारी बाजार अभिगम्यता देने पर सैद्धांतिक सहमति दी, उफा में इस बात पर सहमत हुए कि अगले द्विपक्षीय बातचीत में आतंकवाद एक प्रमुख मुद्दा होगा आदि.
अब चूंकि नवाज शरीफ सत्ता से बेदखल किए जा चुके हैं, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) ने शाहिद खाकन अब्बासी अंतरिम प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिसके बाद अगले चुनाव तक पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) इस दौरान न केवल पूरी तैयारी के साथ शरीफ का मुकदमा लड़ेगी, बल्कि उनके त्यागपत्र को एक ‘राजनीतिक शहादत’ के रूप में पेश भी करेगी. अब्बास के बयान का एक अभिप्राय यह भी है. शरीफ का राजनीतिक भविष्य बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा की बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ अगले चुनाव में किस तरह की नीति अपनाते हैं और जनता का उन्हें कितना समर्थन मिलता है?

आशीष शुक्ला
लेखक


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