अमरनाथ यात्रा : हमले के बाद..
कोई भी हत्याकांड किसी भी सभ्य और संवेदनशील समाज को झिंझोड़ता है. उसकी चूलें हिलाकर रख देता है.
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तात्कालिक सदमे और सहज प्रतिक्रिया के बाद आप उन परिस्थितियों, कारणों और संबंधित ब्योरों की पड़ताल में लग जाते हैं और निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास करते हैं. इस दृष्टि से अनंतनाग कश्मीर में हाल ही में 10 जुलाई 2017 को अमरनाथ यात्रियों पर हुए बर्बर आतंकवादी हमले में मरे सात तीर्थयात्रियों और 19 घायलों के बाद जो परिदृश्य बना है, उसमें नये सिरे से समाज, सरकार और सुरक्षा नीतिकारों सहित देश के बुद्धिजीवी वर्ग को कई ज्वलंत सवालों का सामना करना होगा.
यह एक आस्ति है कि इस हत्याकांड की जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देशभर में र्भत्सना हुई है. यहां एक उल्लेखनीय बात यह थी कि जम्मू शहर में भाजपा-मुर्दाबाद के नारे भी खूब लगे. भाजपाई कह सकते हैं कि जम्मू बंद का आह्वान चूंकि कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, पैंथर्स पार्टी, जम्मू चैम्बर ऑफ कॉमर्स सहित अनेक गैर भाजपा दलों ने किया था, इसलिए भाजपा विरोधी नारे लगना स्वाभाविक था. भाजपा के लोगों का ऐसा सोचना खुद को भुलावे में रखने की बात है. इस जम्मू बंद के दौरान शहर में किसी भी जगह कोई भी छोटा बड़ा भाजपा नेता क्यों नहीं सड़क पर समर्थन में आने की हिम्मत जुटा सका? सूत्रों के हवाले से एक स्थानीय अंग्रेजी समाचार पत्र में तो खबर थी कि संघ के मुख्यालय से विहिप और बजरंग दल को इस बंद को समर्थन न देने के आदेश दिए गए थे. अमरनाथ यात्रियों पर हमले की बात रहने भी दें तो भी जम्मू प्रांत में भाजपा का संपूर्ण जनाधार उससे इतना ज्यादा नाराज है कि यहां भाजपा का दोबारा सत्ता में आना मुश्किल लगता है. अब तो यह स्पष्ट है कि कश्मीर में जो चल रहा है वह न तो मात्र आतंकवाद है, न कोई कथित आजादी की लड़ाई है.
सीधे शब्दों में कहें यह जिहाद है. इसीलिए कश्मीर को तेजी से सीरिया और अफगानिस्तान में बदला जा रहा है. तमाम हुर्रियत नेता तो एक ही मुंह से ‘निजामे मुस्तफा’, ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’, ‘जनमत संग्रह’ के साथ-साथ ‘आजादी बराए इस्लाम’ (इस्लाम के लिए आजादी) की बात करते हुए भी इसके राजनीतिक समाधान की बात भी करते थे. इसके परोक्ष समर्थन में कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टयिां भी बोलती थीं. अब स्थिति तेजी से बदल रही लगती है. कश्मीर में पाकिस्तान ने आईएस द्वारा युवाओं के एक बड़े वर्ग को लुभाकर या गुमराह कर उन्हें आईएस की तरफ मोड़ने की पहल की. यह पत्थरबाजों की फौज का तैयार किया जाना और स्कूल जला डालने की घटनाएं इसी साजिश का हिस्सा है.
यह भी खबरें आ रही हैं कि अब कश्मीर घाटी के अंदर ही ‘जिहादियों की भर्ती’ किए जा रहे हैं. इसलिए पाकिस्तान से संचालित यह अलगाववादी आतंकवाद न रहकर एक जिहाद का रूप ले चुका है. हिजबुल मुजाहिदीन के नये कमांडर चालीस वर्षीय यासीन इत्तू ने 6 जुलाई 2017 को साफ शब्दों में कहा, ‘कश्मीर संघर्ष का आधार इस्लाम है और शुरू से ही द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की तरह हमारे संघर्ष के पीछे धर्म एक प्रेरक तत्व रहा है.’ इससे पूर्व कुछ ही समय पहले ‘तालिबान-ए-कश्मीर’ नामक जिहादी संगठन के मुखिया जाकिर मूसा की वह खुली धमकी याद करें, जब उसने कहा कि हम लाल चौक में सैयद अलीशाह गिलानी सहित उन सभी कश्मीरी अलगाववादी नेताओं का इसलिए गला काटकर मार डालेंगे क्योंकि ये नेता कश्मीर के राजनीतिक हल की बात करते हैं.
कश्मीर एक इस्लामी मसला है और इसका हल इस्लामी है. तालिबान-ए-कश्मीर के इस नेता ने खुले शब्दों में कहा कि गैर-मुस्लिमों के लिए तीन रास्ते हैं. वे इस्लाम कबूल कर लें या जजिया देकर रहें या फिर मरें अथवा मारें. इस तरह कश्मीर को घोषित रूप से उस खिलाफत का हिस्सा बनाने की भयंकर साजिश चल रही है, जिसकी सीमा इराक, यमन, मोसुल से होते हुए अफगानिस्तान, पाकिस्तान के रास्ते कश्मीर के जम्मू और पंजाब से दिल्ली के लाल किले तक रुकेगी बताया जाता है. ऐसी पृष्ठभूमि में अमरनाथ यात्रियों पर हमले को देखे जाने की जरूरत है. इसे मात्र आतंकवाद कहना पूरे देश के भविष्य को खतरे में डालने का पाप करने जैसा है. और यही सब होता आया है. कांग्रेस हो, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी या कम्युनिस्ट पार्टी हो, सब पार्टयिां बरसों से इसे या तो कानून व्यवस्था या भू-राजनीतिक जनाकांक्षा आदि गोलमोल शब्दावली तक सीमित करती आई हैं.
इसके वास्तविक रूप को झुठलाने में अर्ध अलगाववादी पीडीपी के साथ गठबंधन कर अब भाजपा को भी देखा जाना चाहिए. अमरनाथ यात्रियों पर हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए इसीलिए भाजपा नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री डॉ. निर्मल सिंह ने उन अभागे यात्रियों को ही प्रकारांतर से बिना रजिस्र्टड बस में कश्मीर जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया. यह इस दुर्घटना का एक तकनीकी पहलू है और यह सुरक्षा के बंदोबस्त की अक्षम्य कमी है और इसकी त्वरित जांच अपेक्षित है कि कैसे यह सब हुआ? ड्राइवर की बहादुरी का समुचित सम्मान करना तो होगा ही होगा.
उससे यह तो पूछना वाजिब बनता है कि उसने पहिए में पंचर के समय कन्वाय से पीछे छूटने पर सुरक्षाबलों की गाड़ी को रु कने को न कहकर या फिर घटनास्थल तक रास्ते में कहीं पर भी किसी पुलिस कैंप पर बस रोककर उन्हें आगे सूचित करने को क्यों नहीं कहा? जहां तक राज्य के उप मुख्यमंत्री के बयान का संबंध है तो वह क्या कहना चाहते हैं कि कश्मीर में कोई भी भारतीय नागरिक बिना प्रशासन या सुरक्षाबलों की अनुमति के कोई नहीं जा सकता? अमरनाथ यात्रियों पर हमले के इधर अनेक कारण गिनाए जाते हैं. जैसे एक वर्ष पहले मारे गए बुरहान वानी या इसी महीने बडगाम में लश्कर के आतंकी बशीर लश्करी का बदला था.
यह प्रधानमंत्री मोदी के इस्रइल जाने का बदला था. इस हमले के बाद प्रशासन और सुरक्षाबलों के नीतिकारों को जिहादी आतंकियों की उस धमकी को भी हलके में नहीं लेना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि कश्मीर में रासायनिक हथियारों से हमले होंगे. कश्मीर की वर्तमान स्थिति की भयावहता को देखते हुए प्रधानमंत्री को कश्मीरी नीति की समीक्षा करनी चाहिए. जम्मू और लद्दाख के साठ लाख देशभक्त बौद्धों, हिन्दुओं, सिखों सहित राष्ट्रभक्त मुसलमानों की भावनाओं को ठंडे बस्ते में डालने की गलती नहीं करनी चाहिए.
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