वैश्विकी : संबंधों को परखने का दौरा
आगामी 26 जून को दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों के नेता रोनाल्ड ट्रंप और नरेन्द्र मोदी के बीच पहली व्यक्तिगत मुलाकात होने जा रही है.
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जाहिर है दोनों एक दूसरे के व्यक्तित्व को आंकने के साथ ही आपसी विश्वास और समझदारी बनाने की कोशिश करेंगे. वैश्विक राजनीति में दोनों देशों की प्राथमिकताएं क्या हैं, इसे भी समझा-बूझा जाएगा. हालांकि ट्रंप ने अमेरिकी विदेश नीति में जो बदलाव किए हैं, उससे तो यही जाहिर होता है कि नई दिल्ली में तैनात भारतीय मूल के अमेरिकी राजदूत र्रिचड वर्मा के इस्तीफे के बाद से अभी तक अमेरिका ने अपना नया राजदूत नियुक्त नहीं किया है. फिर भी उम्मीद की जा रही है कि प्रधानमंत्री मोदी एशिया-प्रशांत में सुरक्षा सहयोग, पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद और द्विपक्षीय हितों के मसलों पर आपसी सहयोग बढ़ाने की दिशा में ट्रंप का मन टटोलेंगे.
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रचार अभियान के दौरान यह वादा किया था कि वह अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव करेंगे और दुनिया के बारे में नई साझेदारी और नई नीति अपनाएंगे. राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद उन्होंने इस पर अमल करना भी शुरू कर दिया है. उन्होंने अपने पश्चिमी सहयोगी देशों के साथ सुरक्षा से संबंधित प्रतिबद्धताओं में बदलाव भी किया है, और कटौती भी की है. अमेरिका सीरिया सहित मध्य-पूर्व के देशों में आपसी भूमिका को सीमित कर रहा है. एक तरह से दूसरे देशों के मामलों में दखलंदाजी करने वाली दादागिरी की भूमिका से अलग हो रहा है. घरेलू और विदेशी मोच्रे पर जारी दोहरे संरक्षणवाद की नीति के तहत अमेरिका अब दूसरों की मदद उसी सीमा तक कर सकता है कि उसके ऊपर आर्थिक बोझ का दबाव न पड़े. इस पृष्ठभूमि के आलोक में भारत अमेरिका के भावी कूटनीतिक-राजनीतिक संबंधों की बुनियाद रखे जाने की उम्मीद की जानी चाहिए. ट्रंप और मोदी के बीच आतंकवाद, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रक्षा सहयोग और आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि बातचीत के मुख्य मुद्दे होंगे. यह सच है कि अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़ती भूमिका का सबब है. इसलिए आने वाले दिनों में वहां अमेरिका अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकता है.
भारत चाहेगा कि अमेरिका काबुल में अपने रक्षा दायित्व को पूरा करे. ट्रंप और मोदी के बीच इस मसले पर सहमति बनती है, तो यह भारत के हित में होगा. तालिबान को नियंत्रित करने के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ने की गुंजाइश दिखाई दे रही है. लेकिन ओबामा प्रशासन के दौरान भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए जो सुरक्षा ढांचा खड़ा किया गया था, उसके बारे में ट्रंप का नजरिया सामने आना बाकी है. मोदी परमाणु आपूर्ति समूह में भारत की सदस्यता के मसले पर अमेरिका का समर्थन प्राप्त करने की भी कोशिश करेंगे. लेकिन चीन के बारे में ट्रंप की कोई स्पष्ट नीति नहीं है. इसमें उतार-चढ़ाव देखा गया है. पहले ट्रंप ने एक चीन नीति को खारिज किया था, लेकिन चीन के विरोध के बाद पीछे हट गया. इसलिए नहीं कह सकते कि चीन के बिगाड़ करके इस मसले पर अमेरिका भारत का समर्थन करेगा. फिर भी उम्मीद की जाती है कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा से दोनों देशों के बीच संभावनाओं और सहयोग के नये द्वार खुलेंगे.
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