परत-दर-परत : आधुनिक औषधि विज्ञान का यथार्थ
पहले जब मैं इवान इलिच तथा अन्य गैर-पारंपरिक विचारकों द्वारा आधुनिक औषधि विज्ञान की सख्त आलोचना पढ़ता था, तब मुझे यकीन नहीं होता था.
![]() राजकिशोर, लेखक |
मुझे लगता था कि यह फालतू की नुक्ताचीनी है. लेकिन अब जिंदगी और मौत के थपेड़ों के बीच से गुजरते हुए मुझे लगता है कि जिसे एलोपैथी कहा जाता है, उसके बारे में शक करने की पूरी गुंजाइश है. अधिकांश मामलों में वह स्वस्थ करने का भ्रम पैदा करती है, स्वस्थ करती नहीं है.
इसका मैंने अपना एक प्रिय उदाहरण बनाया है, जो शायद अनुपयुक्त नहीं है. मेरा मानना है कि अगर कोई वैज्ञानिक मधुमेह और उच्च रक्तचाप को ठीक करने वाली दवा का आविष्कार कर ले, तो इसकी भनक मिलते ही उसकी हत्या कर दी जाएगी. इन दोनों विव्यापी बीमारियों का वि बाजार अरबों नहीं, खरबों रुपयों का होगा. लेकिन इनका कोई इलाज नहीं है, सिर्फ मैनेजमेंट है. जब तक दवा खाते रहेंगे, आप ठीक महसूस करेंगे.
जैसे ही आप ने दवा छोड़ी, आप धड़ाम से बिस्तर पर जा गिरेंगे. कहने का मतलब यह है कि आधुनिक दवा उद्योग के आर्थिक हित में यह जरूरी है कि इन दोनों रोगों का सदा के लिए इलाज करने वाली कोई दवा न निकल आए. ऐसी दवा दुनिया भर में खूब बिकेगी. लेकिन अगर इस दवा को कुछ दिन लेने से मधुमेह या उच्च रक्तचाप चला जाएगा, तो खरबों रु पयों के उस व्यवसाय का क्या होगा जो इसलिए चल रहा है, क्योंकि इनकी दवा उम्र भर खानी पड़ती है. ऐसी दवा की खोज में दवा उद्योग पैसा क्यों लगाएगा, जिससे उसकी अपनी ही रोजी-रोटी पर प्रहार होता हो?
यही बात हृदय रोग, सांस रोग, एसिडिटी, मनोरोग, गठिया इत्यादि की दवाओं पर भी लागू होती है. एक बार आप को इनमें से कोई रोग हो गया, तो दवा कंपनियों के लिए आप करुंका खजाना हो गए. जब तक आप आखिरी सांस न ले लें, तब तक हर महीने आप को इन मुनाफाखोर दवा कंपनियों का कर्ज चुकाते रहना होगा. सुना है, अर्थशास्त्र की किताबों में बड़े पैमाने के उद्योगों के कुछ बड़े लाभ पढ़ाए जाते हैं. लेकिन दवाओं का उत्पादन जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, उनकी कीमतें भी बढ़ती जाती हैं.
बेशक कुछ दवाओं का दाम गिरा है, लेकिन इनका उत्पादन बढ़ाने में किसी की दिलचस्पी नहीं है. कल ही पता चला कि दिल्ली में दवा के थोक व्यापारी फुटकर विक्रेताओं को 50 प्रतिशत तक छूट देते हैं. पहले मैं सोचता था कि होटल उद्योग में ही सब से ज्यादा मार्जिन है. लेकिन अब दवाओं और परीक्षणों की कीमतें और अस्पतालों का खर्च देख कर लगता है कि दवा उद्योग उससे बहुत आगे निकल गया है. ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने के लिए अस्पतालों को तीन, चार और पांच सितारा होटलों की तरह चमकाया जा रहा है और अनावश्यक तथा बेहूदा सुविधाएं दी जा रही हैं. मेरा खयाल है, उच्च शिक्षा उद्योग भी इसी तरफ बढ़ रहा है.
ऐसा नहीं है कि आधुनिक औषधि विज्ञान ने कुछ चमत्कारिक काम नहीं किए हैं. लेकिन इनका बड़ा हिस्सा एंटी-बायोटिक्स का है. लेकिन इस क्षेत्र में भी अब समस्याएं पैदा होने लगी हैं. कीटाणु एंटी-बायोटिक्स के अंधाधुंध इस्तेमाल से इनके आदी होते जा रहे हैं और अब इनसे डरते नहीं. अत: बहुत-से एंटी-बायोटिक्स अब निष्प्रभावी हो रहे हैं. लेकिन वैज्ञानिक भी कम नहीं हैं. वे रोज नये-नये, पहले से ज्यादा हत्या-कुशल और पहले से ज्यादा महंगे एंटी-बायोटिक्स का आविष्कार कर रहे हैं. लेकिन कोई भी मानव-निर्मिंत चीज अंतहीन कैसे हो सकती है? क्या एक दिन ऐसा नहीं होगा कि कीटाणुओं की जीवनी शक्ति के आगे हमारे सारे एंटी-बायोटिक्स फेल हो जाएंगे? तब क्या होगा?
अभी भी दो चीजों का जिक्र बाकी है-सर्जरी और रिप्लेसमेंट. निश्चय ही सर्जरी के क्षेत्र में आधुनिक विज्ञान ने बहुत बड़ा कमाल किया है. लेकिन सर्जरी ऐसी कला है, जिसका संबंध सभी चिकित्सा विज्ञानों से है. जर्राह अब भी कहीं-कहीं होते हैं और महत्त्वपूर्ण सर्जरी भी करते हैं. लेकिन एलोपैथी में सर्जरी का जैसा विकास किया है, वह अद्भुत है. फिर भी सर्जरी जर्राह ही है. यह दवा विज्ञान नहीं है. सर्जन कटे-फटे-सड़े को काट कर निकाल देता है. बस.
यही बात प्रतिस्थापन यानी रिप्लेसमेंट विज्ञान के बारे में भी सच है. यह भी उपचार की कोई पद्धति नहीं है, शरीर में जो चीज नहीं बन रही है, उसकी सप्लाई बाहर से कर देना. थायरायड में, इंसुलिन की कमी में तथा अन्य अनेक प्रकार की हारमोन समस्याओं में रिप्लेसमेंट थेरेपी ही काम आती है. यही कौशल लीवर, किडनी, हृदय, रक्त विकार आदि में भी दिखाया जाता है. किडनी खराब हो गयी, बदल दो. हृदय काम नहीं कर रहा है, बदल दो. घुटने बेकार हो चुके हैं, नए घुटने लगा दो. कहने की जरूरत नहीं कि यह भी सर्जरी का ही विस्तार है.
स्पष्ट है कि आधुनिक औषधि विज्ञान में वास्तविक प्रगति कम ही दिखाई देती है. जरूरत इस बात है कि सभी देशों में इस उद्योग का समाजीकरण किया जाए और उपचार की नई और कारगर प्रणालियां खोजी जाएं. स्वास्थ्य इतना महत्त्वपूर्ण मामला है कि इसे व्यक्तिगत पूंजी के हाथ में नहीं छोड़ा जा सकता.
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