लिंग जांच : यह अनदेखी क्यों?

Last Updated 12 May 2017 05:46:34 AM IST

आसपास के माहौल में शोर-शराबा हो तो एक-दूसरे की बातों को नहीं सुन पाते हैं.


लिंग जांच : यह अनदेखी क्यों?

हमारे समाज में किस तरह का शोर बढ़ा है और हम किन बातों को नहीं सुन पा रहे हैं? इस हालात को समझने के लिए एक विज्ञापन का उदाहरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है. इस विज्ञापन को करोड़ों लोगों ने दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिये सुना. लेकिन विज्ञापन को तैयार करने से लेकर विज्ञापन को सुनने तक की एक लंबी प्रक्रिया में करोड़ों लोगों के कान खड़े नहीं हुए. इसका मतलब ये कि शोर-शराबे ने हमारी तर्क की स्वाभाविक क्षमता को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है.  मानवीय सभ्यता के लंबे दौर में शोर-शराबे का सबसे भयानक रूप दिखाई दे रहा है. पहले शोर-शराबे की गति इतनी भी नहीं थी कि वह मानव सभ्यता की सृजनशीलता को प्रभावित करती. यह शोर शराबा अब तक की मानवीय उपलब्धियों को ही नष्ट कर रहा है. 

यह सभी जानते हैं कि महिलाओं के गर्भ धारण से पहले भ्रूण के लिंग की जांच नहीं कराई जा सकती है. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक विज्ञापन की एक दिलचस्प कहानी में यह बात दोहराई जा रही है कि गर्भ धारण से पूर्व लिंग की जांच कराने पर पाबंदी है. ऑल इंडिया रेडियो दूरदर्शन चैनलों पर एक महिला की आवाज में ये विज्ञापन कई दिनों से आ रहा है : एक महत्त्वपूर्ण सूचना. उच्चतम न्यायालय के हाल के निर्देशों के अनुपालन में गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व लिंग चयन विधि-जिससे भ्रूण के लड़का या लड़की होने की पहचान करने में मदद मिल सकती है-के संबंध में इंटरनेट पर ई-विज्ञापनों को विनियमित करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एक नोडल एजेंसी का गठन किया गया है.

जो कोई व्यक्ति ऐसे विज्ञापन को देखता है, वह ई मेल अथवा फोन के माध्यम से नोडल एजेंसी को सूचित कर सकता है. इस विज्ञापन की कहानी की कुछ इस तरह से शुरू हुई. शिकायतें यह मिलने लगी कि इंटरनेट के सर्च इंजनों पर लिंग परीक्षण संबंधी विज्ञापन दिखाए जाते हैं और सुप्रीम कोर्ट में पीसीपीएनडीटी एक्ट (गर्भ धारण एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक-विनियमन और दुरुपयोग अधिनियम) 1994 का इंटरनेट पर विज्ञापनों के जरिये उल्लंघन की शिकायतों को लेकर सुनवाई चल रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान भारत सरकार को निर्देश दिया कि वह स्वास्थ्य मंत्रालय के मातहत एक नोडल एजेंसी का गठन करे. स्वास्थ्य मंत्रालय ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी चेतना चौहान और वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी गीतांजली सिंह को ये जिम्मेदारी दी कि वे लिंग जांच के संबंध में इंटरनेट पर दिए जाने वाले विज्ञापनों के संबंध में लोगों की शिकायतें सुनें और कोर्ट को इसकी जानकारी दें. इस नोडल एजेंसी के साथ ही भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने पीसीपीएनडी (प्री कंसेप्शन एंड प्री नैटल डाइगनॉस्टिक टेक्निक्स एक्ट) सेल को एक विज्ञापन तैयार करने की जिम्मेदारी दी.

स्वास्थ्य विभाग के पीसीपीएनडी सेल ने एक मसविदा तैयार किया और अंग्रेजी और हिन्दी भाषा में रेडियो व टेलीविजन के चैनलों के लिए एक स्पॉट तैयार कराया गया. इस स्पॉट की स्क्रिप्ट दूरदर्शन की एक जानी-पहचानी एंकर ने पढ़ा है. मंत्रालय के मीडिया विभाग ने आम लोगों के लिए 10 अप्रैल 2017 को यह विज्ञापन रेडियो व दूरदर्शन पर प्रसारित करने के लिए जारी कर दिया. विज्ञापन में गर्भधारण से पहले लिंग की जांच के बारे में कहा जा रहा है. इसके दो पहलू पर समाज में संवाद करने के पूरे ढांचे को लेकर गौर करने की जरूरत है. पहली बात, तो ये कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इस विज्ञापन को तैयार करने से लेकर लोगों के बीच ले जाने में कई लोग लगे. लेकिन सरकारी कर्मचारियों में किसी को भी ये नहीं लगा कि विज्ञापन में गर्भधारण से पूर्व लिंग जांच की बात अवैज्ञानिक है. दूसरी बात, कि विज्ञापन तैयार करने से लेकर लोगों के बीच प्रसारित करने तक की प्रक्रिया में अहम भूमिकाओं में महिलाएं हैं.

पीसीपीएनडी सेल की निदेशक बिंदू शर्मा हैं और उन्हीं की देख-रेख में इस विज्ञापन की स्क्रिप्ट तैयार कराई गई. नोडल एजेंसी में गीताजंली सिंह ने भी बताया कि उन्होंने इस विज्ञापन को टेलीविजन पर सुना है. जाहिर है, नोडल एजेंसी के सभी अधिकारियों ने इस विज्ञापन को देखा व सुना होगा. लेकिन उन्हें इसमें कोई खटकने वाली बात नहीं लगी. भाषा के जानकार बताते हैं कि अंग्रेजी में पीसीपीएनडी एक्ट का नामकरण किया गया है. एक्ट के नामकरण पहले प्री शब्द के इस्तेमाल होने से स्क्रिप्ट तैयार करने वालों ने मसविदे में भी गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व की जांच की बात दोहरा दी है. विज्ञापन का मसविदा पहले अंग्रेजी में तैयार किया गया और बाद में उसका हिन्दी अनुवाद किया गया.

हिन्दी अनुवाद की हालात यह दिखती है कि उसे इंटरनेट के किसी टूल से अंग्रेजी से हिन्दी में किया गया इसीलिए प्री कंसेप्शन एंड प्री नैटल डॉइगनॉस्टिक टेक्निक्स यानी दो प्री शब्द के लिए दो बार पूर्व शब्द-गर्भ धारण पूर्व व प्रसव पूर्व हुआ है. यह एक्ट बने दस वर्ष से ज्यादा हो चुके हैं मगर पहले इसका हिन्दी में अनुवाद गर्भाधान व प्रसव पूर्व निदान तकनीक के रूप में किया जाता रहा है.
यानी पहला अनुवाद की नौकरी की मानसिकता एक भय पैदा करती है और वह स्वाभाविक तर्क को भी निष्क्रिय कर देती है. दूसरा, नौकरी का ढांचा इस कदर निरंकुश हो गया है कि अवैज्ञानिक बातों की तरफ भी ध्यान नहीं जाता है. मौजूदा हालात ये है कि कुछ शब्द इस कदर शोर-शराबे पर हावी हो गए हैं कि वह केवल डर पैदा करते हैं, असुरक्षा बोध पैदा करते हैं और उनका सीधा हमला तर्कशीलता पर ही है.

इसीलिए संवाद का एक ऐसा ढांचा बन रहा है जिसमें शोर-शराबा करने वाले लोग जब अपनी किसी बात को सुनाना चाहते हैं तो शोर-शराबे का वॉल्यूम कम कर देते हैं और फिर दूसरी किसी भी तर्कशील व बुनियादी बात के शुरू होने से पहले ही शोर-शराबे की नाली खोल देते हैं. इसीलिए आमतौर पर ये अनुभव किया जाता है कि जिस तरह पहले लेकर चीजों के दाम व किराया बढ़ने पर तुरंत लोग सड़कों पर उतर आते थे अब बुनियादी अधिकारों पर हमले के हालात पर भी प्रतिक्रिया जाहिर करने से चूक जाते हैं.

अनिल चमड़िया
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment