खाद्य पदार्थ : नकली और मिलावट का कहर
सोशल मीडिया पर अक्सर बाजार में बिक रही नकली चीजों की वीडियो वायरल होती रहती है.
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अब तक हमनें दूध, अण्डे, और तेल जैसे अनेकों चीजों में मिलावट के बारे में सुना और देखा था. जो हर जगह आराम से बिक रहा था. लेकिन अब खबर है कि चीन हमारे देश में प्लास्टिक की अन्य चीजों के साथ ही चावल भी भेज रहा है. ऐसे ही कुछ दिनों से बाजार में प्लास्टिक के चावल बिकने की अफवाह जोर पकड़ रही है. इस अफवाह ने तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड सहित कई राज्यों के लोगों को डरा दिया है. हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस ने अपने टेस्ट में इस तरह की अफवाहों को झूठा करार दिया है.
सच्चाई का पता लगाने के लिए यूनिवर्सिटी में देश के विभिन्न हिस्सों से उन चावलों के सैंपल भेजे थे, जिन्हें प्लास्टिक का कहा जा रहा था. वहीं दूसरी ओर राइस मिल संगठनों का कहना है कि सामान्य तौर पर 40-50 रुपये किलो बिकने वाले चावल को अगर प्लास्टिक का बनाया जाए तो एक किलो चावल की लागत 200 रुपये बैठेगी. ऐसे में कोई क्यों चार गुना घाटा सहकर नकली चावल बेचेगा? दूसरी ओर दिल्ली के फूड डिपार्टमेंट ने भी विभिन्न जगहों से चावलों के 27 सैंपल लेकर जांच की. डिपार्टमेंट ने कहा कि चावलों में प्लास्टिक नहीं पाई गई. हालांकि, इनमें मिलावट जरूर पाई गई.
गौर करने वाली बात यह है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल पैदा करने वाला देश है. चीन चावल पैदा तो करता है, लेकिन विश्व का सिर्फ 1.9 फीसद चावल एक्सपोर्ट यानी बाहर भेजता है और भारत तो चीन से न के बराबर चावल खरीदता है. यह ठीक है कि चीन में कई फैक्टरियां हैं, जहां ‘फेक राइस’ बनता है. इससे पहले चीन नकली अंडा, पत्तागोभी जैसे फूड प्रॉडक्ट्स भी बना चुका है. जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं. यों कहें आज बाजार में बिक रही हर चीज में मिलावट है. दाल, अनाज, दूध, घी से लेकर सब्जी और फल तक कोई भी चीज मिलावट से अछूती नहीं है. ये मिलावट इतनी बारीकी से की जाती है कि मूल खाद्य पदार्थ और मिलावट वाले खाद्य पदार्थ में भेद करना काफी मुश्किल हो जाता है. मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में मिलावटखोर खाने-पीने की हर चीज में मिलावट करने में लगे हैं. इतना ही नहीं, कई स्थानों पर तो कई नामी कंपनियों की पैकिंग तक की जा रही है. खैर, इस स्थिति को महज व्यावसायिक या व्यवस्थागत समस्या मान कर समाधान की खोज सही नहीं होगी.
यह देश और देश के लोगों के जीवन के लिए एक खतरनाक स्थिति है. देश में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का बाजार साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है. अक्सर देश में दूध के मिलावटी होने के खबर आती रहती है. दूध के 70 फीसद नमूने गुणवत्ता के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं. लेकिन फिर भी दूध कंपनियों का कारोबार जारी है. मामला सामने आने के बाद दिखावे की कार्रवाई की जाती है और फिर स्थितियां जस की तस हो जाती हैं. कंपनियां चाहे देशी हो या विदेशी, कोई भी तय मानकों का पालन नहीं करती है. देश की सोच में भी मिलावटी खाद्य पदार्थों को लेकर जागरूकता का अभाव दिखता है. सरकारों का रवैया इसे लेकर हमेशा निराशाजनक रहा है.
देश में निवेश की बात होती है. लेकिन निवेश सिर्फ सड़क, बिजली और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने तक सीमित रहा है. खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर निवेश की बात नहीं की जाती है. चीन में प्रति दो लाख आबादी पर एक प्रयोगशाला उपलब्ध है, जबकि भारत में 9 करोड़ लोगों पर एक प्रयोगशाला की सुविधा है. विकास के पैमाने पर हम अक्सर चीन से तुलना करते हैं. भारत के मुकाबले चीन में अधिक विदेशी पूंजी निवेश होता है, लेकिन वह खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता से समझौता नहीं करता है. भारत में खाद्य पदार्थों की मिलावट करने पर अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है. साफ है, मिलावट वाले खाद्य पदार्थ देश के लोगों के सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं और इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए. विदेशी पूंजी और रोजगार की आड़ लेकर इन कंपनियों की गलत हरकत को किसी भी कीमत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. देश में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ ही लोगों का सही मायने में विकास कर सकते हैं. इसके लिए सख्त कानून के साथ ही राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी. इस बात में कोई शंका नहीं है कि देश में खाद्य सुरक्षा की प्रक्रिया काफी लचीली है. खाद्य मानकों को कंपनियां ठीक से पालन नहीं करती है.
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