मीडिया : पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें

Last Updated 16 Apr 2017 03:44:27 AM IST

रोड शो अपनी राजनीति में नए किस्म का आइटम है, जो आज के मीडिया के साथ बढ़िया तरीके से ‘सिंक’ करता है यानी मेल खाता है.


मीडिया : पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें

रोड शोज का प्रभाव परंपरागत जलसों, मीटिंगों और रैलियों से अधिक गहरा होता है. इसे हम बनारस में मोदी जी के तीन दिन के लगातार तीन रोड शोज के बाद ही जान सके कि उनने क्या गुल खिलाए और क्या परिणाम दिए? इसलिए जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के साथ मोदी जी के भुवनेश्वर में किए जाने वाले रोड शो की खबर आई तो लगा कि हम जान तो लें कि रोड शो सिर्फ तमाशा नहीं होता. तमाशे से कुछ अधिक होता है और समकालीन मुख्यधारा के मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक उसे हाथों-हाथ लेता है. कायदे से किया जाए तो इसका असर कई रैलियों बराबर होता है.
रोड शो की खास बात यह है कि यह ‘दो तरफा लाइव संप्रेषण’ होता है. ‘परफॉरमेटिव’ यानी ‘रूपंकरी’ होता है. कैंब्रिज डिक्शनरी बताती है कि रोड शो ऐसी बहुत-सी घटनाओं का समुच्चय होता है, जो पब्लिक का मनोरंजन करने के लिए या किसी प्रोडक्ट की खबर पब्लिक को देने के लिए एक शहर में विभिन्न ठिकानों पर की जाती हैं. ‘बिजनेस कम्युनिकेशन’ के अनुसार रोड शोज किसी ‘इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग’ (आइपीओ) यानी ‘नए शेयर’ या ‘नई सिक्यूरिटीज’ या ‘नए बिजनेस प्लान’ को शहर में पॉपुलर करके बेचने के लिए आयोजित किए जाते हैं. अमेरिका में यह बहुत होता है. वहां के रॉक म्यूजिक बैंड के शोज भी रोड शोज कहलाते हैं, जिनमें भीड़ें आती हैं, नाचती-गाती हैं.

यह तो मोदी के विरोधी तक मानते हैं कि इस खेल में उनका कोई सानी नहीं है. भुवनेश्वर के रोड शो को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए ताकि बाद में चकित न होना पड़े कि ओडिशा में मोदी लहर कैसे चल गई? रोड शो लहर बनाने का काम भी करते हैं! हमने मीडिया के जरिए मोदी जी की बड़ी रैलियां लाइव देखी हैं, और रोड शोज भी. अन्य नेताओं की रैलियां भी मीडिया के जरिए देखी हैं, और राहुल-अखिलेश के रोड शोज भी. हमने पाया है कि एक घंटे की रैली में मोदी जी अगर चालीस मिनट बोले हैं, तो भी मोदी-मोदी हुआ है, और रोड शोज में भी हुआ. लेकिन जो शोर-शराबा और जै-जैकार मोदी जी के लिए उनकी रैलियों में दिखी है, वह न तो उनके ही दल के किसी अन्य नेता को नसीब हुई है, न विपक्ष के नेताओं को. सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व है मोदी तत्व यानी मोदी-मोदी-मोदी-मोदी का राग जो उनके भाषण के बीच-बीच में कभी भी कहीं भी फूट पड़ता है और देर तक बजता रहता है. लोग इसे ‘आरकेस्टेड’ यानी ‘बनाया हुआ’ भी कहते हैं. मोदी-मोदी तत्व ही वह प्रोडक्ट है, जो भाजपा के अंदर या बाहर किसी भी और के पास नहीं है. यही रोड शोज का बिजनेस प्लान है. सिक्यूरिटी है. शेयर है. यह कुछ नया है. अपरीक्षित है. लेकिन नामी. रोड शोज इस तरह राजनीति के शो मात्र नहीं होते. राजनीति के ‘बिजनेस कम्युनिकेशन’ के प्लान होते हैं. आइडिया मात्र नहीं बेचते. चिह्न बेचते हैं. ब्रांड बेचते हैं.
फिलहाल, मोदी एक महाब्रांड हैं. हर महाब्रांड झूठ या सच, एक ‘भ्रम’ को ‘भरोसे’ की तरह बेचता है कि इसलिए तेरा निवेश डूबने वाला नहीं. रिटर्न गारंटीड है. इसे सिनेमा और टीवी विज्ञापनों के एकल बादशाह अमिताभ बच्चन के महाब्रांड से तोलकर देखें तो बात साफ हो जाएगी. अमिताभ सिर दर्द निवारक तेल बेचें या कंपोस्ट खाद बनाने की प्रविधि.  देखने वाला उनके बेचने के तरीके में एक मजा, एक मनोरंजन देखता है. मोदी भी यही करते हैं, लेकिन राजनीति में. साफ सुथरे, एकदम टाइट, फिट बॉडी के साथ दो-चार घंटे खुली जीप में धूप-ताप में निकलना, सब ओर हाथ जोड़ना, लहराना, इधर-उधर की जनता को नमन करना, जनता और उनके बीच एक पर्सनल टच का जादू पैदा करता ही करता है. पुराने नेता आज तक इस तरह पास से नजर न आए, ये आया है ये कुछ अलग है ये कुछ नया है..!
एक वॉशिंग टिकिया का विज्ञापन आता है, जो टिकिया की सफेदी की ताकत बताते हुए कहता है : ‘चौंक गए क्या?’ फिर कहता है : ‘पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें.’ आप मोदी के आलोचक हों या प्रशंसक, इतना समझ लीजिए कि मोदी जी वही टिकिया हैं, जो पहले कहती है : ‘चौंक गए क्या?’ फिर कहती है : ‘पहले इस्तेमाल करें,  फिर विश्वास करें.’ इसके बाद भी कपड़े साफ न हों तो फिर कोई आएगा रोड शो लेकर लेकिन बेचेगा एक टिकिया ही. वो भी मजेदारी के साथ. मजेदारी ही रोड शो की जान है. रोड शो बन जाने के बाद राजनीति गंभीर नहीं,  मनोरंजक, एंटरटेनर हो जाती है. हम नेता नहीं एंटरटेनर चुनते हैं. पॉप स्टार रॉक स्टार चुनते हैं.

सुधीश पचौरी
लेखक


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