नजरिया : नीयत साफ तो गलतियां भी माफ
तीन सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जो सबसे बड़ी उपलब्धि है वो ये है कि उन्होंने देश के आम लोगों का भरोसा जीतने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने व्यक्तित्व और काम के दम पर एक अलग मुकाम बनाया है, जो उन्हें अन्य प्रधानमंत्रियों से अलग लीग में ले जाता है.
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गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तब विपक्ष एवं भाजपा के कुछ नेताओं ने भी दबे स्वरों में कहा था कि मोदी जी के ज्ञान का स्तर अभी उतना भी विकसित नहीं है कि वह अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ बैठकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श कर सकें. लेकिन तीन सालों में उन्होंने अपने को एक स्वयंसेवक से लेकर भारत ही नहीं, बल्कि विश्व में अपना नाम दमदार नेता के रूप में स्थापित करवा लिया. आज अमेरिका और ब्रिटेन में भी उनको सुनने के लिए 40-50 हजार लोग यों ही चले आते हैं. उनके अंग्रेजी में दिए गए भाषणों से पता चलता है कि खुद को बदलने की दिशा में उन्होंने अपने ऊपर भी कई प्रयोग किए. अहसास कराया कि भाषा से किसी की प्रतिभा की परख नहीं करनी चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल के तीन साल अब पूरे होने जा रहे हैं. जिस तरीके से उनने ‘मन की बात’ के जरिए आम लोगों से अपना संपर्क बनाए रखा है, वह चमत्कार से कम नहीं. भले ही दिल्ली, मुंबई में रहने वाले दो चार करोड़ लोग अपनी व्यस्ततम जिंदगी के कारण ‘मन की बात’ नहीं सुनते हों, लेकिन जब-जब मैं अपने गांव गाजीपुर और शेरपुर जाता हूं, तब-तब मुझे आश्चर्य होता है कि पूरे साल गांव में रहने वाले लोग जो बमुश्किल ही किसी शहर की यात्रा करते हैं, वह भी प्रधानमंत्री से इस कदर जुड़े हुए हैं. प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक रिलिजन बन चुकी है. यही कारण है कि जितनी जगह प्रधानमंत्री ने लोगों के मन-मस्तिष्क में बनाई है, शायद उतनी जगह इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने नहीं बनाई.
जब भी नई सरकार बनती है तो वह अपनी नई-नई योजनाओं के साथ आती है. उनके प्रचार-प्रसार पर करोड़ों खर्च किए जाते हैं. यह न रुकने वाला सिलसिला है जो हमेशा चलता रहेगा, लेकिन कुछ योजनाएं ऐसी भी हैं, जिन्होंने हिंदुस्तान के आवाम की जिंदगी बदलने में महत्त्वपूर्ण भूभिका निभाई है. उन योजनाओं में जन धन खातों का खुलना, गैर सब्सिडी छोड़ने के लिए प्रधानमंत्री का आह्वान, मेक इन इंडिया का नारा, स्वच्छ भारत योजना, सैनिकों के लिए वन रैंक-वन पेंशन, ग्रामीण विद्युतीकरण, क्लीन एनर्जी, स्कील डेवलपममेंट जैसी योजनाओं का जिक्र जरूरी हो जाता है.
दो दिन पहले इंडियन मच्रेट चैम्बर्स के एक फंक्शन के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उनका संबोधन था, जिसमें प्रधानमंत्री की दो-तीन बातें मुझे बेहद अच्छी लगीं. गैस की सब्सिडी पर उन्होंने कहा कि देश में बहुत से लोगों को पता ही नहीं था कि ये सब्सिडी हमें क्यों मिलती है, हमें इसकी जरूरत है भी या नहीं. प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने अपनी ही गरीब माताओं-बहनों के लिए ये आहवान किया जो धुंए के बीच अपना खाना बनाती हैं, उनके लिए जो सक्षम लोग हैं, वे अपनी सब्सिडी छोड़ें. डेढ़ करोड़ लोगों ने सब्सिडी छोड़ी और उसका सीधा फायदा उन गरीब माताओं-बहनों को हुआ जो 40 सिगरेट के बराबर का धुंआ पीकर अपने घर का खाना बनाती थीं. मोदी ने कहा कि डेढ़ करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़ लोगों को गैस सिलिंडर देने का उनका तात्कालिक लक्ष्य है. इंडियन मच्रेट चैम्बर की महिला एसोसिएशन को संबोधित करते हुए पीएम ने यह भी कहा कि माताओं-बहनों को पासपोर्ट में पति के रूप में या पिता के रूप में किसी भी पुरुष का नाम देना अब अनिवार्य नहीं रहा. इससे महिला शक्ति को एक अलग पहचान मिली. कहने का आशय यह कि प्रधानमंत्री देश के 125 करोड़ लोगों के गार्जियन की अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं.
तीन साल के भीतर जिस तरह से भारतीय पासपोर्ट का वजन पूरी दुनिया में बढ़ा है. पहले मैंने ऐसा कभी महसूस नहीं किया था. जब मैं 2014 से पहले विदेश यात्राएं करता था अमेरिका या ब्रिटेन या यूरोप में इमिग्रेशन अफसर सवालों की झड़ी लगा देते थे, लेकिन अब बस यह पूछते हैं कि आप कितने दिन के लिए आए हैं. आपकी यात्रा पर्सनल है, या ऑफिशियल. पहले होटल की बुकिंग से लेकर एयर टिकट तक सब कुछ दिखाना पड़ता था, लेकिन पिछले तीन सालों में मुझे एक बार भी इन चीजों को नहीं दिखाना पड़ा. जिस तरीके से मोदी के आह्वान पर पूरी दुनिया ने संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश पर ‘विश्व योग दिवस’ मनाया, यह भी उनकी बड़ी उपलब्धि है. यूनाइटेड नेशंस की बिल्डिंग पर ‘हैप्पी दिवाली’ का लिखा जाना, दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग बुर्ज खलीफा को तिरंगे के रंग में रंगना बताता है कि भारत की हैसियत अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहले से ज्यादा मजबूत हुई है.
हमारे देश में आने वाले राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत जिस अंदाज में अब मोदी करते हैं, वैसा पहले किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को बराक नाम से पुकारना, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अहमदाबाद में पूरे गुजराती अंदाज में झूले पर बिठाकर उनसे गुफ्तगू करना और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री को अक्षरधाम मंदिर की सीढ़ियों पर बैठाकर अनूठे दोस्ताने अंदाज में बात करना पूरी दुनिया ने देखा. जादू की छड़ी तो किसी के हाथ नहीं आ सकती. पर यह तो सब स्वीकारेंगे कि पीएम के रूप में उनकी मंशा भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाने की है. इसके लिए उन्होंने नोटबंदी, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जैसा माहौल छेड़ने का जो साहस दिखाया है, वह बताता है कि प्रधानमंत्री पद की गरिमा को वह एक नई ऊंचाई तक ले जाना चाहते हैं. इंसान होने के नाते गलतियां प्रधानमंत्री से भी हो सकती हैं. लेकिन नीयत साफ हो तो बड़ी से बड़ी गलती को आम जनता माफ भी कर देती है. जिस तरह से मोदी ने एक बड़ी लकीर खींची है, उसके सामने कोई और बड़ी लकीर खिंच जाए, ऐसी संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती.
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