मकर संक्राति : ज्ञान, विज्ञान और धर्म का संगम
मकर संक्रांति का पर्व अपने आप में विज्ञान व धर्म के समन्वयन का अनोखा संगम है, जिसमें धर्म की महक भी है और विज्ञान का तर्क भी.
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यह नक्षत्रों के परिक्रमण के परिक्रमण का परिणाम भी है साथ-ही-साथ प्राचीन पौराणिक मिथक मान्यताओं का पोषक भी है.
मकर संक्रांति का पर्व समाज में दान की महिमा व दया के भाव को संस्थापित करता है और दरिद्रनारायण को दिए गए दान के माध्यम से दुआएं दिलवाता है और मृत्यु के बाद मोक्ष के द्वार खोलता है. दरिद्रों व जरूरतमंद की मदद करवाकर मानवतावाद का परचम भी लहराता है.
बेशक यह पर्व परंपरा व आधुनिकता का अद्भुत संगम व प्रतीक है. संकांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश यानी संक्रमण करना. जनवरी के माह में भी सूर्य धनु राशि से मकर राशि में संक्रमण करता है, इस दिन से सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाता है, जिससे उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु का प्रकोप कम होता जाता है, भूगोल के नजरिए से देखें तो भारत में शीत ऋतु का घटना आज से ही शुरू हो जाती है और तिल-तिल करके हर दिन-दिन का समय चार मिनट बढ़ने लगता है.
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति मोक्षदायी पर्व है, कहा जाता है कि महाभारत के यु़द्ध में अर्जुन के बाणों से घायल हो कर पितामह भीष्म शरशैय्या पर पड़े थे और उनके प्राण निकलना चाहते थे पर सूर्य उस समय दक्षिणायण था और हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सूर्य के दक्षिणायण होने की स्थिति में मृत्यु होने पर मुक्ति नहीं मिलती है, सो भीष्म ने अपने तप के बल पर सूर्य के उत्तरायण होने तक प्राण नहीं त्यागे. एक मिथक यह भी है कि आज के ही दिन भगवान विष्णु ने वामन के वेश में राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी थी और तीन कदम में ही उन्होंने धरती व आकाश नाप कर पृथ्वी को दैत्य मुक्त कर वामन को पाताल का राज्य दिया था.
दान , स्नान व सूर्य उपासना के त्योहार के रूप में मकर संक्रांति का पर्व एक ओर जहां भारत का ऐसा एकमात्र हिंदू पर्व है, जो सौरवर्ष के आधार पर मनाया जाता है. ध्यान रहे कि बाकी सारे ही पर्व इस देश में चंद्र कलाओं के आधार पर मनाए जाते हैं. इसी वजह से अंग्रेजी महीनों में ये अलग-अलग तिथियों को पड़ते हैं. यहां तक कि कई बार तो इनके महीने तक बदल जाते हैं, पर मकर संक्रांति का पर्व हर बार 14 जनवरी को ही मनाया जाता है. मकर संक्रांति का पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत का पर्व है. जानने योग्य बात यह है लगभग इसी समय में दक्षिण में केरल तमिलनाड़ु व कर्नाटक आदि में पोंगल मनता है और पंजाब में लोहड़ी. उत्तरी भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति का संकरात कहा जाता है. इस क्षेत्र में उड़द की काली दाल व चावल से बनी खिचड़ी के दान का यह पर्व लगभग पूरे उत्तर भारत में अलग-अलग रंग व ढंग से मनाया जाता है.
मकर संक्रांति से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को पंजाब में लोहड़ी का पर्व जोशो-खरोश के साथ सम्पन्न होता है, जो किसान नई फसल के आने की खुशी में नाच गाकर, भंगड़े डाल कर व गिद्धा गाकर मनाते हैं. हालांकि, इस बार लोहड़ी दो दिन पहले मनेगा. उधर, तमिलनाडु में पोंगल का पर्व भी लगभग इसी समय मनाया जाता है, जिस पर वहां रंगबिरंगी नौकाओं की दौड़ होती है, जिसे देखना बड़ा ही मनलुभावन होता है. कहा जाता है कि मकर संक्रांति से प्रत्येक दिन, दिनों-दिन एक-एक तिल बढ़ने लगता है. वैसे भूगोल के नियम से तो ग्लोब पर एक मैश या ग्रिड़ बढ़ने पर पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर 4 मिनट का समय बढ़ता है. मकर संक्रांति पर तिल का खास महत्त्व होता है.
आज के दिन तिल के लड्डू बनाए जाते हैं, तिल का दान किया जाता हैं और व्यंजनों में खास तौर पर तिल के तेल का ही उपयोग करने की परम्परा है. इसे सूर्य की उपासना का पर्व भी माना जाता है और मान्यता है कि मकर संक्रांति पर सूर्यनमस्कार करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. महिलाओं में इस पर्व के प्रति खास उत्साह देखा जाता है. वे बड़ी उमंग के साथ आज के दिन व्रत, जप, तप दान व धर्म के काम करती हैं और अपनी संतान के सुख समृद्धि, सुरक्षा व कल्याण की कामना करती हैं. कहा जाता है कि आज के ही माता यशोदा ने कृष्ण को पुत्र रूप में पाने के लिए व्रत किया था. पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए मकर संक्रांति का पर्व अति शुभ माना जाता है.
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