आम बजट : मांग पैदा करना जरूरी

Last Updated 13 Jan 2017 05:51:26 AM IST

भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने के मद्देनजर सरकार के विकासोन्मुख नजरिये की मैं मुक्तकंठ से प्रशंसा करता हूं.


आम बजट : मांग पैदा करना जरूरी

सो, आगामी बजट के विकासोन्मुख रहने की अपेक्षा करते हैं. कहना न होगा कि निवेशक-अनुकूल नीतियों से उद्यमियों को ज्यादा से ज्यादा निवेश करने के लिए प्रेरित करके अर्थव्यवस्था के रोजगारोन्मुख क्षेत्रों का ठोस विकास किया जा सकता है.

आगामी बजट में गैर-कर राजस्व में बढ़ोतरी की दिशा में सहायक उपाय होने जरूरी हैं. जैसे विनिवेशीकरण, सार्वजनिक बैंकों और बीमा कंपनियों में हिस्सेदारी घटाना, रुग्ण सार्वजनिक उपक्रमों की इकाइयों में फंसी पड़ी परिसंपत्तियों का निपटान तथा सब्सिडी को युक्ति संगत बनाया जाना. करों को सरलीकृत किया जाना भी जरूरी है. सरकार को इस मामले में तीन सी-स्पष्टता (क्लेरिटी), सुनिश्चितता (सर्टेन्टी) तथा अनुरूपता (कंसिटेंसी) पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में करदाताओं का प्रतिशत सर्वाधिक नीचा है. देश की 130 करोड़ की आबादी में मात्र पांच करोड़ करदाता हैं. करों की दरें बढ़ाए जाने की अपेक्षा कर देने वालों की संख्या बढ़ाया जाना बेहतर उपाय है.

मेरा मानना है कि पांच लाख रुपये तक की आय पर कर से छूट दी जानी चाहिए. अभी यह सीमा दो लाख रुपये है. मेरा मानना है कि मानक कटौती को पुन: आरंभ किया जाए. इससे वेतनभोगी वर्ग बड़े पैमाने पर लाभान्वित होगा क्योंकि करदाताओं में बड़ा हिस्सा वेतनभोगियों और पेंशनधारियों का ही होता है. पेशेवरों के अनुमानित कर संबंधी सीमा को बढ़ाकर दो करोड़ रुपये किया जाना चाहिए. अभी यह पचास लाख रुपये है. इसी प्रकार कारोबार के लिए भी अनुमानित कर सीमा को मौजूदा एक करोड़ से बढ़ाकर पांच करोड़ रुपये किया जाना चाहिए. करदाताओं और अधिकारियों के संसाधनों का संरक्षण हो सकेगा. साथ ही, कर संबंधी नियमों की अच्छे से अनुपालना भी हो सकेगी.

जहां तक जीएसटी के कार्यान्वयन का प्रश्न है, मेरा मानना है कि इससे भारत में साझा बाजार विकसित हो सकेगा. माल परिवहन की लागत में कमी आएगी. जटिल कर प्रणाली में चक्रीय प्रभाव का खात्मा हो सकेगा. मेरा मानना है कि जीएसटी लागू होने पर आर्थिक वृद्धि में दो अंकों का सुधार हो सकेगा. कारोबारी माहौल बेहतर होगा. फलस्वरूप रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी. विश्व बैंक के अनुसार भारत कारोबारी-अनुकूलता की दृष्टि से विश्व में 130वें पायदान पर है. जीएसटी लागू होने पर उम्मीद है कि 2019 तक हम पचासवें पायदान से कम पर होंगे.

हमें उम्मीद है कि श्रम सुधार और भूमि अधिग्रहण के मामले में भी हमारी स्थिति में सुधार होगा. सुधारात्मक उपायों खासकर महत्त्वाकांक्षी मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अच्छे परिणामों के लिए शोध एवं विकास को प्रोत्साहन जरूरी है. विनिर्माताओं के स्तर पर शोध एवं विकास को बढ़ावा देने के मद्देनजर आयकर अधिनियम की ग्यारहवीं अनुसूची में उल्लिखित नकारात्मक सूची को निरस्त करके सभी विनिर्माताओं को इन-हाऊस शोध एवं विकास के व्यय पर भारित कटौती का लाभ दिया जाना चाहिए.

सुझाव यह है कि शोध एवं विकास पर उपकर को समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि यह अपनी उपयोगिता साबित नहीं कर पाया है. विदेशी निवेशकों और सहयोगकर्ताओं द्वारा तकनीक उच्चीकरण किए जाने की राह में भी अड़चन साबित हुआ है. नये कंपनी अधिनियम, 2013 तथा नैगम नियमों के तहत किए गए नैगम व्यय को कारोबारी व्यय माना जाना चाहिए ताकि किसी भी संभावित विवाद को टाला जा सके. दीर्घकालिक आधार पर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश आकषिर्त करने के लिए कम से कम पांच साल के लिए धारा 801 (1) के तहत कर लाभ की छूट दिया जाना जरूरी है. यह छूट 31 मार्च, 2017 को समाप्त हो रही है. कृषि, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में उत्पादकता तथा वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की गरज से युवाओं में कौशल विकास बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा मान्यताप्राप्त व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान खोले जाने जरूरी है.

नेशनल स्किल डवलपमेंट कॉरपोरेशन के लिए धन आवंटन बढ़ाया जाना जरूरी है ताकि यह संस्थान युवाओं के प्रशिक्षण और उनके कौशल विकास में अपनी भूमिका का अच्छे से निवर्हन कर सके. ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में लक्षित परिणाम हासिल करने के लिए भौतिक ढांचागत सुधार किया जाना जरूरी है. रेल सेवाओं, पत्तन और नागरिक उड्डयन के विस्तार से कारोबारियों को अपने उत्पादन संभावनाओं वाले मोचरे पर अच्छे से योजना बनाने में सहायता मिलेगी. नवीनीकृत एवं स्वच्छ ऊर्जा स्त्रोतों को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है.

मेरा मानना है कि मांग में कमी देश की संभावित आर्थिक वृद्धि के रास्ते में बड़ी अड़चन है. रोजगार सृजन की कमजोर हालत भी इसी के चलते है. समय आ गया है कि अर्थव्यवस्था में मांग का सृजन किया जाए. साथ ही, अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा कुशल और अदक्ष श्रम के इस्तेमाल और कच्ची सामग्री की लागतों में कमी लाया जाना भी जरूरी है. ब्याज परिदृश्य को तार्किक बनाया जाए क्योंकि हमारी वास्तविक ब्याज दरें उन्नत, विकासशील तथा नई उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में खासी ऊंची हैं. ईएमआई में कमी लाने से लोगों की व्यय करने योग्य आय में बढ़ोतरी होगी जिससे अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर बढ़ेगा.

ऊंची ब्याज दर से उपभोग एवं निवेश प्रभावित हो रहा है. इस करके औद्योगिक वृद्धि में गिरावट आई है. इस स्थिति में मेरा आरबीआई से आग्रह है कि आज उदारीकृत अर्थव्यवस्था के दौर में एसएलआर/ सीआरआर की क्रमश: 21 तथा 4 प्रतिशत की अनिवार्यताओं को समाप्त किया जाए. उम्मीद है आगामी बजट अर्थव्यवस्था को सतत विकास के पथ पर अग्रसर करने वाला साबित होगा. दो अंकीय विकास की राहत को प्रशस्त करने वाला होगा.  
(लेखक पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष हैं)

गोपाल जीवराजका
लेखक


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