अर्थव्यवस्था : मंदी के बावजूद
जैसी आशंका थी, वैसा सामने आ रहा है. भारतीय अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी 2016-17 में 7.1 प्रतिशत की दर से विकास दर्ज होने की संभावना है.
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यह अनुमान सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने जारी किये हैं. इस आंकड़े की खास बात यह है कि इस आंकड़े में नोटबंदी के असर शामिल नहीं हैं, क्योंकि विकास का यह आंकड़ा 2016-17 के पहले सात महीनों के विकासक्रम पर आधारित है. 2016-17 वित्तीय वर्ष के पहले सात महीने यानी-अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर तक के विकासक्रम पर आधारित है.
यानी नवम्बर की नोटबंदी और उसके असर इस 7.1 प्रतिशत विकास दर में प्रतिबिंबित नहीं हो रहे हैं. इसके बावजूद भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था का करीब सात प्रतिशत की दर से विकास महत्त्वपूर्ण है. खासकर तब जब, पूरी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी या बहुत ही धीमी गति के विकास की रिपोर्ट कर रही हैं. सात प्रतिशत की विकास दर के बावजूद चीन के विकास दर से ज्यादा रहेगी भारत की विकास दर. पर मसला यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के आठ से दस प्रतिशत होने की बातें कुछ समय पहले की जा रही थीं. यानी 2016-17 की अनुमानित विकास दर 7.1 प्रतिशत नोटबंदी के तमाम असरों से पहले की है. नोटबंदी के बाद तो निश्चित तौर पर इस दर में कमी की ही आशंका है, क्योंकि नोटबंदी के बाद आर्थिक गतिविधियों में रु कावट दर्ज की गई है. तमाम कारोबारों ने मंदी रिपोर्ट की है. 2016-17 की अनुमानित विकास दर 7.1 प्रतिशत 2015-16 की विकास दर 7.6 प्रतिशत के मुकाबले दशमलव पचास बिंदु कम है, नोटबंदी के असरों को शामिल किए बगैर. तमाम क्षेत्रों में अलग-अलग विकास दर का अनुमान है.
कृषि क्षेत्र में 2016-17 में कृषि की विकास दर 4.1 प्रतिशत अनुमानित है, 2015-16 में कृषि का विकास दर 1.2 प्रतिशत रही थी. गत वर्ष के मुकाबले कृषि विकास की दर तीन गुनी से भी ज्यादा होने की उम्मीद है. यह आंकड़ा उन खबरों से भी मेल खाता है, जो बताती हैं कि नोटबंदी के बाद फसल बुआई नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं हुई. मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 2016-17 में 7.4 प्रतिशत विकास दर संभावित है. 2015-16 में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 9.3 प्रतिशत विकास दर्ज किया गया था. मैन्युफैक्चरिंग में कमी के दो आशय हैं-एक मांग में मजबूती नहीं हैं, दो नई मैन्युफैक्चरिंग की जरूरत नहीं पड़ रही है, पुराने स्टॉक से काफी काम चल रहा है. ये दोनों स्थितियां सकारात्मक नहीं है. मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र के आखिरी आंकड़े कुछ ज्यादा गिरावट दिखा सकता है.
कंस्ट्रक्शन ऐसा क्षेत्र है, जिसमें बहुत ऐसे लोगों को रोजगार मिलता है, जो पढ़े-लिखे नहीं होते. इस क्षेत्र में मंदी की आशंका है. 2016-17 में कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में 2.9 प्रतिशत का विकास दर्ज किए जाने की उम्मीद है, 2015-16 में यह 3.9 प्रतिशत रहा था. इसमें मंदी का असर पक्के तौर पर रोजगार सृजन पर पड़ता है. टूरिज्म से जुड़े होटल के कारोबार में भी मंदी के आंकड़े सामने आए हैं. ट्रेड, होटल आदि में 2016-17 में 6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी संभावित है. 2015-16 में यह विकास दर 9 प्रतिशत थी.
कुल मिलाकर चिंता का मसला यह है कि ये सारे आंकड़े नोटबंदी के असर को समाहित नहीं करते. वित्तमंत्री अरु ण जेटली ने कुछ समय पहले बहुत आत्मविश्वास से कहा कि कर संग्रह के अंतिम आंकड़े उम्मीदों के मुकाबले बेहतर होंगे. जितने कर के संग्रह की उम्मीद की गई थी, आखिर में कर उससे ज्यादा जुटाया जाएगा. संक्षेप में केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सर्विस टैक्स, आयात कर से अप्रैल-नवम्बर 2016 में करीब 5 लाख 52 हजार करोड़ रुपये जमा किए गए, यानी पिछले साल की इस अवधि के मुकाबले 26.2 प्रतिशत ज्यादा थे, जबकि पूरे साल में 10.8 प्रतिशत ज्यादा संग्रह की उम्मीद थी.
19 दिसम्बर, 2016 तक आयकर-संग्रह में 23.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, उम्मीद यह की गई थी कि पूरे साल में करीब 18 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी. यानी करों के ये आंकड़े वित्तमंत्री को यह कहने का भरोसा दे रहे हैं कि आखिर में कर-संग्रह उम्मीद के मुकाबले ज्यादा होंगे. यानी संसाधनों का टोटा नहीं होगा. आंकड़ों को देखें, तो साफ होता है कि नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्थाओं में आशंकाएं गहरी हुई हैं. 2016 में अगर स्टाक बाजार सूचकांकों को देखें, तो निवेशकों ने लगभग कुछ नहीं कमाया. मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक सेंसेक्स पूरे 2016 में करीब 2 प्रतिशत उठा यानी जिसने साल के शुरू में 100 रुपये लगाये थे, साल के अंत में उसे दो रुपये ऊपर 102 रुपये मिले. नेशनल स्टाक एक्सचेंज के सूचकांक निफ्टी ने पूरे साल में तीन प्रतिशत का रिटर्न दिया यानी जिसने 2016 के शुरू में 100 रुपये लगाये थे, उसे साल के अंत में सिर्फ 103 रुपये मिले.
यह रिटर्न बहुत खराब है; क्योंकि इस रिटर्न को बढ़ती महंगाई ही खा गई. महंगाई की दर औसतन पांच फीसद रही है. कर संग्रह भले ही सरकार बेहतरीन कर ले पर इससे अर्थव्यवस्था में आशंकाएं खत्म नहीं हो जातीं. नोटबंदी के बाद लोग खर्च करने में कतरा रहे हैं, यह भी एक सचाई है. नोटों को अपने पास रखने की प्रवृत्ति के चलते लोग खरीदेंगे, नहीं तो सेल नहीं होगी.
2016-17 की विकास दर को एक संस्थान ने 3.5 प्रतिशत आशंकित किया है. 3.5 प्रतिशत विकास दर यानी जितना सरकार बता रही है उसकी आधी दर. तमाम कंपनियों ने अपनी सेल में कमी रिपोर्ट की है. देश की दो महत्त्वपूर्ण दोपहिया वाहन बनानेवाली कंपनियों ने ग्रामीण क्षेत्रों से सेल में कमी रिपोर्ट की है. देखना यह है कि यह कमी लगातार बनी रहती है या आनेवाले वक्त में हालात सुधरते हैं. अगर छह से बारह महीनों में हालात एकदम सामान्य हो जाते हैं, तो फिर दो-तीन महीनों के वक्त को भुलाने में अर्थव्यवस्था ज्यादा वक्त नहीं लगाएगी. पर देखने की बात यह है कि नोटबंदी के चलते जो आशंकाएं पैदा हुई हैं, उन्हे खत्म करना सरकार का काम है. सरकार फरवरी में आनेवाले बजट में इस मौके का इस्तेमाल कर सकती है.
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