मलेरिया : छोटी नहीं, बड़ी मुसीबत
हमारे लिए इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति और क्या होगी कि चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल करने वाला देश आज भी मलेरिया, टीबी और चिकन पॉक्स जैसी बेहद मामूली बीमारियों से जूझ रहा है.
![]() मलेरिया : छोटी नहीं, बड़ी मुसीबत |
देश बेशक आज पोलियोमुक्त है, एड्स की रोकथाम को लेकर भी काफी पैसा खर्च होता है और बड़े-बड़े अभियान चलाए जाते हैं पर अफसोस कि मच्छर के काटने से होने वाली बीमारियों को लेकर संजीदगी दिखाई नहीं देती. यहां तक कि मलेरिया जैसी बीमारी को सांप या कुत्ते के काटने जैसी दुर्घटना तक नहीं माना जाता, जिससे इसके खिलाफ जंग में पैनापन नहीं आ पा रहा है. असल में हुआ यह है कि महाशक्ति बनने की होड़ में नीति-निर्धारकों ने प्राइमरी हेल्थ पर जरूरी ध्यान नहीं दिया. शायद वे भूल गए हैं कि मलेरिया भी स्वस्थ और सशक्त भारत बनाने की राह में एक बड़ी अड़चन है.
असल में, मलेरिया की तरफ हमारा ध्यान हाल के एक घटनाक्रम की वजह से गया है. बीमाधारकों को लाभान्वित करने वाली एक व्यवस्था के तहत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने मच्छर काटने से मलेरिया के शिकार व्यक्ति की मौत को एक दुर्घटना माना है. इस बारे में न्यायमूर्ति वीके जैन की टिप्पणी गौर करने लायक है, जिसमें उन्होंने यह बात जोर देकर कही है कि मच्छर के काटने की वजह से हुई मौत को दुर्घटना नहीं माना जाता है, जबकि यह (मच्छर का काटना) ऐसी घटना है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती. बीमा कंपनियां यह दलील देती हैं कि मच्छर के काटने से हुआ मलेरिया एक बीमारी है, न कि दुर्घटना. मामला असल में मलेरिया को लेकर कायम इस धारणा का है कि वह एक मामूली मौसमी बीमारी है और उसके इलाज आदि पहलुओं को लेकर ज्यादा गंभीर होने की जरूरत नहीं है.
इस सोच की वजह से इसके खिलाफ वैसा माहौल नहीं बन पाया है, जिसमें इससे तत्काल स्थायी मुक्ति पाने की कोई राह दिखाई पड़ती. उल्लेखनीय है कि सालाना हमसे चार गुना ज्यादा बारिश झेलने वाला पड़ोसी श्रीलंका पिछले ही साल मलेरिया मुक्त घोषित हो चुका है. बारिश में मलेरिया को फैलाने वाले मच्छरों की पैदावार और इस कारण मलेरिया फैलने की आशंका कहीं ज्यादा होती है. लेकिन पिछले करीब चार वर्षो में श्रीलंका ने अपने यहां मलेरिया का एक भी मामला पैदा नहीं होने दिया. जिसके आधार पर वि स्वास्थ्य संगठन ने इसे मलेरिया से मुक्त घोषित कर दिया. ऐसी ही उपलब्धि बेहद छोटा पड़ोसी मालदीव भी हासिल कर चुका है. चीन, भूटान, मलेशिया भी इसी राह पर हैं. मगर हमारे देश में लाखों लोग अब भी हर साल मलेरिया और मच्छर काटने से होने वाली अन्य बीमारियों-डेंगू व चिकनगुनिया की चपेट में आ रहे हैं. सिर्फ मलेरिया से ही देश सालाना करीब एक हजार मौतें हो रही हैं.
मलेरिया-डेंगू से निजात पाना आसान नहीं है. आंकड़ों के मुताबिक 20वीं सदी में श्रीलंका सबसे ज्यादा मलेरिया पीड़ित देशों में था. लेकिन यहां की सरकार और प्रशासन ने बाहरी मदद की अपेक्षा किए बिना खुद के बूते पर 90 के दशक से एंटी-मलेरिया कैंपेन की शुरु आत की. मलेरिया परजीवी की पैदावार थामने के लिए चौतरफा कोशिशें की गई और मच्छरों को खत्म करने के कई अन्य अभियान चलाए गए. जैसे पीड़ित इलाकों में मलेरिया की रोकथाम के लिए मोबाइल क्लीनिकों का इंतजाम किया गया, जो न सिर्फ मलेरियारोधी दवाएं देती थीं, बल्कि यह बीमारी पैदा ही न हो- इसके इंतजाम भी करती थीं. अभियान के तहत 24 घंटे हॉटलाइन स्थापित की गई.
इसी तरह स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए जो अभियान चलाया, उसमें मुताबिक बुखार के सभी मामलों में मलेरिया की जांच की गई. मलेरिया से ग्रस्त देशों की यात्रा से आने वाले लोगों में इसके लक्षणों की जांच की गई. शांति मिशन पर तैनात सशस्त्र बलों, प्रवासियों, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की भी नियमित जांच की गई. दो दशक से ज्यादा चले इन अभियानों का सार्थक नतीजा पिछले साल मिला जब पूरे श्रीलंका को मलेरिया-फ्री घोषित कर दिया गया. वैसे तो हमारी सरकार ने 2030 तक देश को मलेरिया से पूरी तरह मुक्त कराने का लक्ष्य रखा हुआ है, पर यह काम आसान नहीं है. इसकी बड़ी वजह यह है कि देश में मच्छर से फैलने वाली बीमारियां तेजी से फैल रही हैं. मच्छर से डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया,जापानी इंसेफेलाइटिस, जीका, पीत ज्वर आदि बीमारियां होती हैं. सवाल यह है कि जब भूटान, चीन, नेपाल या मलयेशिया जैसे देश मलेरिया मुक्त होने के करीब हैं, तो भारत क्यों पीछे है. सोचना होगा.
| Tweet![]() |