प्रकृति का रौद्र रूप
प्राकृतिक आपदाएं उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सहित सभी हिमालयी राज्यों की नियति बनती जा रही हैं।
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली में बादल फटने के कारण खीर गंगा नदी में बाढ़ आ जाने से जो भयंकर विपदा आई उससे पूरा देश सहम गया है। चंद सेकंडों ही में चहल-पहल भरा बाजार और इलाका तहस-नहस हो गया। दूर गांवों में रहने वाले ग्रामीण, जो यह नजारा देख रहे थे, स्थानीय लोगों को सावधान करने और वहां से भागने के लिए चीखते रह गए। पानी और मलबे के शोर में कोई उनकी चेतावनियों को नहीं सुन पाया।
यह सब इतना तेजी से घटा कि किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिल पाया और देखते ही देखते भवन, दुकानें, होमस्टे और होटल बह गए। पूरा धराली बाजार मलबे से पट गया है, और इस कारण हुए जान-माल के नुकसान का पता लगने में लंबा वक्त लगेगा। धराली गंगोत्री धाम से करीब 20 किमी. पहले पड़ता है, और चार धाम यात्रा का प्रमुख पड़ाव है। शांत बहने वाली खीर नदी पहले ग्लेशियर और फिर घने जंगलों से होकर बहती है। इसलिए इसका पानी अत्यंत शुद्ध है।
आगे चल कर यह भागीरथी से मिल जाती है। इसलिए इसे खीर गंगा कहा जाता है लेकिन बरसात में समस्त पहाड़ी नदियों की तरह यह नदी भी उग्र रूप दिखाती है। पहले भी खीर गंगा में भीषण बाढ़ आ चुकी है। इतिहास टटोलें तो खीर गंगा में सबसे भीषण बाढ़ 1835 में आई थी। तब नदी ने सारे धराली कस्बे को पाट दिया था। बाढ़ से यहां भारी मात्रा में मलबा (गाद) जमा हो गया था। कहते हैं कि अभी यहां जो भी बसावट है, वह उस समय नदी के साथ आई गाद पर स्थित है।
1978 में धराली से नीचे डबराणी में एक डैम टूट गया था। इससे भागीरथी में भयंकर बाढ़ आ गई थी और कई गांव बह गए थे। धराली और आसपास के इलाकों में बादल फटने, भूस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन पहली बार इतनी व्यापक क्षति हुई है। वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद लगा था कि राज्य सरकार और प्रशासन ने सबक लिया है, और अब नदी-नाले और इनके किनारे मानवीय हस्तक्षेप से बचे रहेंगे लेकिन दुखद बात है कि गंगा के किनारों का हाल 2013 से भी बुरा हो गया है।
बादल फटना हिमालय क्षेत्र में विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है। इसकी वजह है बहुत कम समय में किसी छोटे इलाके में भारी बारिश का होना। जलवायु परिवर्तन के कारण इन घटनाओं की आशंका लगातार बढ़ रही है। ऐसी आपदाओं से बचना तो मुश्किल है लेकिन नदी घाटियों से तो आबादी को तो दूर रखा ही जा सकता है जिससे बाढ़ और भूस्खलन की मार से बचा जा सके।
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