मनसा देवी मंदिर में मची भगदड़ घोर लापरवाही
हरिद्वार के प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर में मची भगदड़ में आठ श्रद्धालु मर गये तथा तीस से अधिक गंभीर घायल बताए जा रहे हैं।
![]() Stampede in Mansa Devi temple due to gross negligence |
यह मंदिर पहाड़ी पर है, जहां पहुंचने के लिए आठ सौ सीढ़ियां हैं। मृतकों में चार उप्र के व एक-एक बिहार व उत्तराखंड के बताए जा रहे हैं। सावन माह में मंदिर में भारी भीड़ होती है।
बताया जा रहा है कि मंदिर से करीब सौ मीटर पहले ही धक्का-मक्की के चलते करीब लटक रहे तार को सहारे के लिए लोगों ने पकड़ने की कोशिश की, जिससे करेंट लगने से अफरा-तफरी मच गई। हड़बड़ाहट में कुछ लोगों के गिरते ही भगदड़ मच गई।
हरिद्वार की शिवालिक पहाड़ियों पर बना यह मंदिर बिल्व पर्वत पर पौड़ी से तीन किलोमीटर दूर है। महंत इसे मंदिर परिसर के भीतर नहीं हुई घटना कह कर हाथ झाड़ रहे हैं और सरकार ने मुआवजा घोषित कर रस्म अदा कर दी। इसी समय उप्र के बाराबंकी के औसानेर मंदिर में मची भगदड़ में दो की मौत हो गयी। मृतक के भाई का आरोप है, वहां तार सुलगते देखा गया था।
पूजास्थलों में चढ़ावा और श्रद्धालुओं को बटोरने की होड़ किसी से छिपी नहीं है। स्थानीय प्रशासन या राज्य सरकारें श्रद्धालुओं की भीड़ को संभालने का जिम्मा सलीके से लेने में क्यों असफल हैं। महीना भर पहले ही पुरी में रथ-यात्रा के दौरान मची भगदड़ में तीन भक्तों की मौत हुई है।
उससे पहले गोवा में भंदिर उत्सव में भगदड़ में छह मरे थे और इसी जनवरी में तिरुपीति में भी छह श्रद्धालु कुचल कर मारे गए थे। देश के विभिन्न धर्मस्थलों में प्रतिवर्ष होने वाले इन धार्मिक आयोजनों के बारे में सबको पहले से खबर होती है। दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला मुल्क अपने बाशिंदों की जान को लेकर कितना संवेदनहीन हो रहा है।
खासकर धर्म को अपना मुख्य एजेंडा बनाने वाली सत्ताधारी पार्टी का जिम्मा है कि वह भक्तों की सुरक्षा के प्रति लापरवाह रवैया बदले। किसी भी बड़े धार्मिक उत्सव/त्योहार को लेकर आयोजकों, मंदिर व्यवस्थापकों व स्थानीय प्रशासन व पुलिस को चेतावनी देनी होगी।
समाज में धर्मपरायण व मान्यताओं के प्रति अगाध श्रृद्धा रखने वालों की संख्या का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। विशेष अवसरों पर पूजा-अर्चना करने वालों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती ही है।
प्रशासन व पुलिस को भीड़ संभालने का प्रशिक्षण दिया जाए। भगदड़ जैसी घटनाएं घोर लापरवाही की श्रेणी में आती हैं। मुआवजों के भरोसे व्यवस्था नहीं सुधारी जा सकती। इस पर केंद्र को स्पष्ट निर्देश देने चाहिए।
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